Wednesday, December 13, 2023

Padmashri Award: दूसरों के घर मे झाड़ू-पोंछा और मैला ढोने वाली दुर्गा बाई व्योम को मिला पद्मश्री सम्मान

50 वर्षीय महिला दुर्गा बाई व्योम (Durga Bai Vyom) जो कि मध्य प्रदेश के आदिवासी जिला डंडोरी गांव सोनपुरी की रहने वाली हैं। दुर्गाबाई के जीवन में एक ऐसी अवस्था आई की जब उन्हें अपने परिवार को चलाने के लिए दूसरों के घरों में बर्तन साफ करने पड़े थे। पर जीवन में कभी भी परिस्थितियां एक जैसी नहीं रहती हैं, अब उनके जीवन में ऐसी अवस्था है की उनको पूरा भारत इनकी गोल्ड कला की वजह से जानता है।

केंद्र सरकार ने दुर्गाबाई को उनके गोण्ड कला और उनकी बेहतरीन मेहनत करने के लिए पद्म श्री अवॉर्ड (Padma Shri Award to Durga bai Vyom) से सम्मनित किया हैं। दुर्गाबाई को पदम श्री से सम्मामित आदिवासी क्षेत्र की गोंडी भित्तीय चित्र कला के माध्यम से मिला है। इसी के साथ अब दुर्गाबाई इस समय आदिवासी क्षेत्र में गोण्ड कला की प्रधान है। दुर्गाबाई व्याम का सफर पदम श्री तक आसान नहीं था। उनको इस सफर में बेहद मुश्किलों का अकेले सामना करना पड़ा हैं।

किन परिस्थितियों का सामना किया दुर्गाबाई ने

दुर्गाबाई दिनभर में करीब 7-8 बड़ी कोठियों में बर्तन साफ करने का काम किया करती थी, जिसके बदले उन्हें ₹500-₹600 महीने में मिल जाते थे। लेकिन इस कठिन दौर में दुर्गाबाई के जीवन में यह कला ऐसा बदलाव लाई कि वो पद्मश्री श्री जैसे प्रतिष्ठित सम्मान की हकदार बन गई। अपनी इस चित्रकला के बदौलत दुर्गाबाई अनपढ़ होने के बावजूद भी अमेरिका, लंदन सहित दूसरे दर्जनों देशों का सफर तय कर चुकी हैं। साल 1996 में अपने तीन बच्चों का भरण पोषण करने के लिए दुर्गाबाई गांव से निकलकर भोपाल की कोटरा सुल्तानाबाद पहुंची थी।

Durga bai vyom awarded with padma shri for art

दुर्गाबाई को कहा से मिली गोल्ड कला की प्रेरणा (Durga Bai Vyom Gold Artist)

पिछले कई सालों से दुर्गाबाई सूरजकुंड के मेले में इस कला की दुकान लगाया करती थी, लेकिन इस बार कुछ परिस्थितियों के कारणवश दुर्गाबाई की जगह उनके बेटे मानसिंह दुकान संभाल रहे हैं। दरअसल उनके बड़े बेटे मानसिंह एक बीमारी से पीड़ित है। जिसके इलाज के लिए दुर्गाबाई को भोपाल आना पड़ा।

डॉक्टर ने कहा कि उनके बेटे मानसिंह के इलाज में अच्छा खासा समय लगेगा ऐसे में उनके सामने घर चलाने का संकट सामने आ खड़ा हुआ। दुर्गाबाई के एक भाई जो कि पहले से ही गोण्ड आर्ट के चित्रकार थे और जब उन्होंने दुर्गाबाई को चित्रकारी करते हुए देखा तो वो उसकी कला देख अचंभित हो गए और दुर्गाबाई को गोण्ड आर्ट में चित्रकला करने के लिए प्रेरित और समर्थ किया।

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कैसे की गोल्ड कला की शुरुवात

दुर्गाबाई के पति मजदूरी का काम करते थे। बर्तन साफ करने के अलावा दुर्गाबाई दूसरों के घरों में लिपाई के दौरान दीवारों पर चित्रकारी भी किया करती थी। क्योंकि उस समय गांवो में कच्चे मकान हुआ करते थे और वो मकानों की दीवारों पर वो गोण्ड आर्ट बनाया करती थी। उसके बाद दुर्गाबाई ने गोल्ड आर्ट को कपड़े पर बनाना शुरू कर दिया।

कुछ समय बाद दुर्गाबाई ने चित्रकारी कैनवास पर करना शुरू कर दिया और यहीं से उनके जीवन में बदलाव आया। दुर्गाबाई के बेटे मानसिंह का कहना है कि, उनकी माता जी ने सबसे पहले पारंपरिक कथाओं के विवरण को अपनी कला का आधार बनाया। शुरुआत में जब वह कैनवस पेपर पर चित्रकारी किया करती थी तो उनको सिर्फ ₹200 ही मिला करते थे।

Durga bai vyom awarded with padma shri for art
Durga Bai Vyom (दुर्गा बाई व्योम)

इसके आगे मानसिंह ने बनाया की जैसे जैसे दुर्गाबाई ने कला को बढ़ावा दिया वैसे ही उनको अपनी कला के बदौलत भोपाल के संग्रहालय में चित्रकारी का काम मिल गया।

साल 1997 दुर्गाबाई व्योम (Durga Bai Vyom) को जीवन में पहली बार भारत भवन पेंटिंग करने का अवसर प्रदान हुआ था। उस समय भारत भवन में जनजातीय चित्रकारी का शिविर लगा था। दुर्गाबाई ने दीपावली के दिन लक्ष्मी गणेश की चित्रकारी बनाई थी। चंडीगढ़ से आए एक कदरदान ने दुर्गाबाई की चित्रकारी को ₹10,000 में खरीदा था।

दुर्गाबाई चित्रकारी को फैब्रिक कलर से कैनवास पर उतारती हैं और उनके हाथ की बनाई चित्रकारी की कीमत ₹3500 से लेकर ड़ेढ लाख रुपए से ज्यादा तक की है। दुर्गाबाई ने कई पुस्तकों पर भी चित्रकारी की है। इनमें सबसे अधिक प्रसिद्ध पुस्तक डॉक्टर बी.आर अंबेडकर की जीवन चरित्र पर आधारित भीमायना है। दुर्गबाई इस कला को जीवित रखकर आदिवासी बस्ती में रहने वाले लोगों को गोण्ड कला के प्रति जागरूक कर रही है और प्रशिक्षण दे रही है।

इनकी विशिष्ट कला से प्रभावित होकर भारत सरकार ने इन्हें पद्मश्री सम्मान (Padma Shri Award) से नवाजा जिसे इनका मान और बढ़ गया।

The Logically के लिए इस लेख को मेघना ने लिखा है

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