Wednesday, December 13, 2023

बच्चों का मॉल: गरीब और कमजोर तबके के बच्चों के लिए रांची के इस महाबाज़ार मे मॉल की व्यवस्था है

स्कूल में हम बहुत सारी बातें सीखते हैं और पढ़ते हैं। पर ऐसे बहुत कम बच्चे होते हैं जिनके मन में यह ख़्याल आता है कि इसे अपनी जिंदगी में भी उतार कर देखा जाए। झारखंड के रांची के रहने वाले पांच दोस्तों ने स्कूल में गिविंग इट बैक टू सोसाइटी का कांसेप्ट पढ़ा था और इसे अपनी जिंदगी में उतारने की भी कोशिश की। आज उनकी इस पहल का नतीजा है कि गरीब तबके से आने वाले बच्चे शिक्षित हो रहे हैं और आज के जमाने के साथ चलने के लायक बन रहे हैं।
30 वर्षीय रजत विमल(Rajat Vimal) उस समय दसवीं कक्षा में थे जब उन्होंने एक संगठन का निर्माण किया। इस संगठन का निर्माण रजत ने अपने चार दोस्त आयुष बुधिया(Ayush Budhiya), सौरव चौधरी(Saurabh Chaudhary), विवेक अग्रवाल(Vivek Aggrawal) और ऋषभ ऋतुराज(Rishav Rituraj) के साथ मिलकर 2014 में किया था।

संगठन का उद्देश्य

रजत विमल ने इस संगठन का 2014 में निर्माण किया था। उनका उद्देश्य संगठन का निर्माण करने की पीछे लोगों की मदद करना था। वह चाहते थे कि गरीब और अनाथआश्रम में पलने वाले बच्चों को शिक्षित बनाया जाए, आज के जमाने के लायक बना जाए ,उन्हें डिजिटल तौर पर साक्षर किया जाए और उन्हें अपना एक उज्जवल भविष्य बनाने में मदद की जाए।

इवेंट्स ऑर्गनाइज कर के बच्चों को सिखाते हैं

इन पांच दोस्तों का ग्रुप इन बच्चों को अलग-अलग तरह के इवेंट ऑर्गेनाइज करके जमाने के साथ चलना सिखाते हैं। यह ग्रुप डिजिटल क्लासरूम, मॉक मॉल एक्सपीरियंस जैसे प्रोग्राम से बचो को सिखाते है। यह लोग बच्चों के पर्सनल काउंसलिंग सेशन भी ऑर्गनाइज करते हैं। यह अलग-अलग तरह के फन एक्टिविटीज करवाते हैं। जिससे बच्चे आसानी से खेल खेल में सीखें। रजत बताते हैं कि यहां पर बच्चों को फुटबॉल की ट्रेनिंग भी दिलवाई जाती है और कई बच्चों को तो पेंटिंग वर्कशॉप के लिए भी भेजा जाता है।

शाम की पाठशाला

इस संगठन के द्वारा एक शाम की पाठशाला नाम के प्रोग्राम का आयोजन किया जाता है। इसमे बच्चों को डिजिटल क्लासरूम के माध्यम से पढ़ाया और सिखाया जाता है। इसमें सिर्फ बच्चों को पढ़ाया ही नहीं जाता बल्कि कार्टून और ज्ञानवर्धक फिल्में भी दिखाई जाती है। इससे बच्चे देखकर सीख सकें।
इस संगठन के लोगों की कोशिश होती है कि वह बच्चों की इंटरेस्ट वाले क्षेत्र को पहचान कर उसी में उनकी करियर बनाने में मदद करें।

महाबाज़ार- मॉक मॉल एक्सपीरियंस

यह एक खास तरह का प्रोग्राम है। इसमे बच्चों के लिए हर साल यह संगठन महाबाज़ार लगाता हैं। इसमे बच्चों के लिए ज़रूरत के हिसाब से सभी सामान रहते है जैसे कपड़े, जूते, किताब-कॉपी आदि। इन बच्चों को एक नकली डेबिट कार्ड दिया जाता है डेबिट कार्ड की लिमिट 1000रुपये की होती है। इन बच्चों को कहा जाता है कि उन्हें इसी 1000 रुपए में अपनी जरूरत के हिसाब से सामान खरीदने हैं। इस तरह से बच्चों को मनी मैनेजमेंट करना सिखाया जाता है। बच्चों के पास 1000 रुपए ही रहता है इसलिए वह ध्यान से उन पैसों को अपनी जरूरत की चीजों पर ही खर्च करते हैं।
मॉल में बच्चों के लिए बहुत सारे आकर्षक ऑफर्स भी रहते हैं। बच्चे अपने अलावा अपने माता-पिता के लिए भी सामान खरीद सकते हैं।

महाबाज़ार के सारे समान प्रबंधन यह संगठन करता हैं

रजत बताते हैं कि महा बाजार के सारे सामान का प्रबंध उनकी पूरी टीम करती हैं। इसकी तैयारी वह सभी कुछ महीने पहले से ही शुरु कर देते हैं। सारी जरूरत की चीजें यह सभी ड्राइव्स कर के इकट्ठा करते हैं। इनकी मदद के लिए कुछ लोग आगे आते हैं। इन्हें ड्राइव्स में पुराने सामान के साथ-साथ नए सामान भी कभी-कभी मिल जाते हैं। पुराने कपड़ों आदि को वह लोग धोकर , आयरन करके तब बाजार में बेचने के लिए लाते हैं।

अपनी पॉकेट मनी से फंडिंग करते हैं

रजत और उनके अन्य साथी इस संगठन की फंडिंग अपनी पॉकेट मनी और अन्य समर्थकों की मदद से करते हैं। इसी फंडिंग के पैसों से बच्चे की बच्चों की सारी जरूरतों के सामान्य से कॉपी किताब जूते कपड़े पेन पेंसिल इत्यादि जुटाते हैं।

रजत बताते हैं कि जब वह और उनके दोस्तों ने इस संगठन की शुरुआत की थी तो वह लोग 15-16 साल के थे और सब को लगा था कि यह बस एक शौक है जो कुछ दिनों में खत्म हो जाएगा। जब वह इस काम में आए तो बस आगे बढ़ते चले गए। आज इस संगठन से 70 युवा जुड़े हैं और वह सब इन बच्चों का भविष्य उज्जवल बनाने में मदद कर रहे हैं।

रजत और उनकी टीम की इस काम में मदद करना चाहते हैं तो उनसे फेसबुक पर जुड़ सकते हैं या फिर 8797515825 पर संपर्क कर सकते हैं।