बिहार की कृषि में बदलाव की वाहक बन रही है आवाज एक पहल !
बिहार में आज भी कृषि ही आजीविका का मुख्य स्रोत है। राज्य में एक करोड़ किसान परिवार रहते हैं जिनमें से ज्यादातर छोटे और सीमांत किसानों की श्रेणी में आते हैं। परंपरागत खेती कर अपना गुजारा करने वाले इन परिवारों की स्थिति बहुत अच्छी नहीं है। राज्य में मुख्य रूप से धान, गेहूं मक्के के अलावे चंपारण जैसे इलाके में
(जहां चीनी मिले बची हुई है ) गन्ने की खेती की जाती है।
बिहार के किसान परिवारों की औसत मासिक आमदनी देश में सबसे कम, हालात काफी संघर्षपूर्ण और मुश्किल
केंद्र सरकार की एक रिपोर्ट के मुताबिक, बिहार के किसान परिवारों की औसत मासिक आमदनी महज 3558 है जो देश में सबसे कम है। केंद्र सरकार की एक और रिपोर्ट कहती है कि कमोबेश एक किसान परिवार में तकरीबन 5 सदस्य होते हैं। इस महंगाई के दौर में 3558 रुपए एक 5 सदस्यीय किसान परिवार के गुजारें के लिए नाकाफी है। इसी कारण से पिछले कुछ समय से राज्य के बहुत सारे लोग खेती-बाड़ी छोड़ अन्य व्यवसाय अपना रहें हैं। हालात काफी संघर्षपूर्ण और मुश्किल है। ऐसे मुश्किल दौर में बिहार में एक सामाजिक संस्था ‘आवाज एक पहल’ किसानों की स्थिति और खेती में बदलाव के लिए प्रयासरत है।
आवाज एक पहल है क्या?
आवाज एक पहल बिहार में काम कर रही एक सामाजिक संगठन है जिससे जुड़े 5000 से भी अधिक युवा बिहार की खेती में मूलभूत परिवर्तन ला रहे हैं।
2016 के गर्मियों में गठित इस संस्था शुरुआती दौर में पर्यावरण और शिक्षा सुधार के काम करती थी। निःशुल्क शिक्षा केंद्रों के संचालन के संस्था द्वारा लाखों की संख्या में वृक्षारोपण भी किया गया था। समय-समय पर जरूरतमंदों की सहायता, बाढ़ राहत सामग्री के वितरण जैसे सकारात्मक कार्यो की बदौलत संस्था से कुछ ही सालों में हजारों युवाओं की समूह जुड़ गई हैं।
संगठन ने 2018 में किसान सम्मान समारोह का आयोजन कराया था। बिहार और आसपास के तकरीबन 3000 से भी अधिक किसान इस समारोह में शामिल हुए थे । संस्था के संस्थापक सदस्य लव कुश बताते हैं कि इस समारोह के आयोजन के दौरान हम लोगों ने पूरे प्रदेश की यात्रा की थी ।इस दौरान हमने बिहार के किसानों की बेबसी भी देखी साथ ही हमें बदलाव के अनेकों समाधान भी नजर आए। बिहार की मिट्टी की फर्टिलिटी, यहां उपलब्ध वाटर रिसोर्सेज की बहुलता, खेती के लिए अनुकूल क्लाइमेटिक कंडीशन और मानव संसाधन की उपलब्धता के बाद हमें लगा कि हम लोग इस क्षेत्र में बहुत कुछ चेंज ला सकते हैं।
संस्था दे रहे इनोवेटिव फार्मिंग को बढ़ावा।
लवकुश बताते हैं कि हम बिहार में परंपरागत खेती के उलट इनोवेटिव फार्मिंग को बढ़ावा दे रहे हैं। बाजार की समझ के अनुसार तकनीक के साथ आधुनिक कृषि उत्पादों की खेती से किसानों को बेहतर आमदनी प्राप्त हो रही है। संस्था किसानों को प्रोडक्शन, प्रोसेसिंग और मार्केटिंग हर स्तर पर मदद करती हैं।
उदाहरण के तौर पर आवाज एक पहल के माध्यम से काले चावल और काले गेहूं की खेती पूरे प्रदेश भर में कराई जा रही है। अनाजों की ये नई वैरायटी सेहतमंद गुणों से भी परिपूर्ण है जिसे कारण बाजार में इसकी अच्छी खासी डिमांड है।संस्था के बहुत सारे सदस्य मार्केटिंग में लगे रहते हैं जिसे आसानी से किसानों को उत्पाद बाजार तक पहुंच जाते हैं और उनकी आमदनी परंपरागत धान-गेहू की खेती के से काफी ज्यादा होती है। संस्था कृषि गोष्टी, चौपाल और अनेक तरह के आयोजनों के माध्यम से किसानों के बीच जागरूकता फैलाने का काम करती है जिसका नतीजा है कि बिहार के किसान और परंपरागत खेती से निकल के आधुनिक खेती की ओर अग्रसर हो रहे हैं।धान गेहूं की खेती तक सिमटे बिहार में अब खेती के हर क्षेत्र में प्रगति कर रहा है। यहां सफलतापूर्वक ड्रैगन फ्रूट, स्टोबेरी, कीवी, मोती उत्पादन, बटेर पालन जैसे खेती में किसान संग्लन हैं।
खेती के परंपरा और दुर्लभ अनाजों को भी बचाने की है तैयारी!
संस्था सिर्फ इनोवेटिव फार्मिंग पर ही फोकस नहीं करती बल्कि बिहार की मूल अनाजे और खेती की परंपरा को बचाने पर भी जोड़ देती है। कोदो, मडुआ, चिन्ना बाजरा जैसे मोटे अनाज जो मानव स्वास्थ्य के लिए श्रेष्यकर माने जाते हैं बाजार के अभाव में दम तोड़ रहे हैं। संस्था ईन विलुप्त प्राय होते जा रहे हैं अनाजों का संरक्षण और संवर्धन का काम कर रही है। इसके अलावा खेती से जुड़े हुए पर्व त्योहार व रीति-रिवाजों को भी जीवित रखने की कवायद चल रही है।
एग्री पार्क बनाना है ड्रीम प्रोजेक्ट!
संस्था बिहार में एक एग्री पार्क बनाने के लिए काम कर रही है। लव कुश बताते हैं कि यह एक ऐसी जगह होगी जिसमें बिहार की खेती के तमाम संभावनाओं और विविधताओं को प्रदर्शित किया जाएगा। यहां की मिट्टी और जलवायु में संभव कृषि उत्पादों को जमीन पर उतारा जाएगा। मत्स्य पालन, पशुपालन के विभिन्न आयामों और बिहार के धरोहर फल और अनाज जैसे जर्दालू आम, मालभोग चावल, मखाना को यहां उत्पादन और बिक्री की व्यवस्था की जाएगी। यहां खेती के पुराने परंपराओं और तकनीकों को प्रदर्शित किया जाएग । इसको बनाने का मुख्य उद्देश्य लोगों को ग्रामीण जनजीवन और किसी के प्रति आकर्षित करना है।