अश्वगंधा का नाम आप सब ने तो सुना हीं होगा। आयुर्वेद शास्त्र के अनुसार अश्वगंधा में प्रचुर मात्रा में औषधीय गुण पाया जाता है। इस औषधी में एंटीऑक्सीडेंट और एंटीइंफ्लेमेटरी गुण पाए जाते हैं जिसके कारण यह ह्रदय रोग, डायबिटीज और एनीमिया बीमारी के लिए असरकारक औषधी है। यह औषधी बहुत महंगी होती है और हर घर के लिए महत्वपूर्ण भी। ऐसे में आज हम आपको बताने जा रहे हैं कि कैसे आप अश्वगंधा जैसी महंगी औषधी घर पर अपने गमले में उगा सकते हैं।
अश्वगंधा एक ऐसा गुणकारी औषधीय पौधा है जिससे हमें कई बीमारियों में लाभ मिलता है। इसकी खेती राजस्थान, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, बिहार आदि राज्यों में की जाती है। उसी संदर्भ में हैदराबाद की रहने वाली दर्शा साई लीला नाम की एक महिला हैं जिनके द्वारा अपनी छत पर की गई अश्वगंधा की खेती किसी प्रेरणा से कम नहीं। उन्होंने खुद के द्वारा की जाने वाली अश्वगंधा की खेती के बारे में विस्तार से बताया है। आइए जानते हैं…
अश्वगंधा की खेती के लिए गर्मी का मौसम अनुकूल माना जाता है। इसकी खेती के लिए ज्यादा पानी की आवश्यकता नहीं होती है इसलिए गर्मी के मौसम में भी इसकी खेती करना आसान होता है। गमले में अश्वगंधा की खेती के लिए सबसे पहले गमले में लगाने लायक अश्वगंधा के पौधों को तैयार करना पड़ता है। बाजार के लगभग हर बीज और कीटनाशक दुकान में इसका बीज मिलता है। सबसे पहले अश्वगंधा के बीज को कहीं सतह पर लगाया जाता है और ऊपर से एक हल्की परत बालों की भी डाली जाती है जिससे इसके पौधे के अंकुरण में आसानी हो। एक सप्ताह में इसके बीज अंकुरित होकर बाहर निकल आते हैं तथा लगभग 4 सप्ताह बाद अश्वगंधा का पौधा इतना बड़ा हो जाता है कि उसे गमले में आसानी से लगाया जा सकता है।
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गमले में अश्वगंधा का पौधा लगाने के फक्त एक पौधे से दूसरे पौधे की दूरी लगभग 60 से 65 सेंटीमीटर की रखें ताकि हर पौधे को समान पोषण मिल सके और उसकी बढ़ोतरी में कोई बाधा उत्पन्न ना हो। साथ में यह भी ध्यान रखा जाए कि गमले में ज्यादा पानी इकट्ठा ना हो पाए नहीं तो इसके पौधे के सूखने का डर होता है। ज्ञात हो कि इसकी खेती के लिए ज्यादा पानी की आवश्यकता नहीं होती है। ग्रीष्म ऋतु में औसतन तापमान 30 से 40 डिग्री के आसपास होता है तो ऐसे में तापमान के अनुसार 5 से 10 दिन में एक बार इसकी सिंचाई करनी पड़ती है। यदि मिट्टी थोड़ी कम उपजाऊ है तो उसमें खरपतवार व गोबर वाली का खाद व वर्मी कम्पोस्ट भी डाली जा सकती है जो पौधे की वृद्धि में सहायक होता है। कीटनाशक के तौर पर नीम ऑयल का प्रयोग किया जा सकता है।
अश्वगंधा का फसल पूरा होने में लगभग 6 महीने का वक्त लगता है। जब इसकी पत्तियां सूखने लगे और इसका फल लाल होने लगे तो यह समझ लेना चाहिए कि इसकी कटाई का वक्त आ गया है। कटाई के वक्त यह ध्यान रखना होता है कि इसकी जड़ें गीली हों ताकि उसे आसानी से उखाड़ा जा सके। जड़ों को काट कर रख लिया जाता है और फलों को भी की आगे की खेती के लिए संरक्षित कर लिया जाता है।
इस तरह की खेती कर हैदराबाद की दर्शा उन्नत कृषि की इबारत लिख रही है। वे अपनी छत पर 500 से भी अधिक अश्वगंधा के पौधे उगाती हैं। उनके द्वारा अश्वगंधा की खेती के लिए बताए गए टिप्स लोगों को भी प्रेरित कर रहे हैं। अश्वगंधा की सफल खेती के लिए The Logically दर्शा साई लीला जी की भूरी-भूरी प्रशंसा करता है।