हाल ही में इंदौर शहर में निराश्रित बुजुर्गों को जबरन बाहर निकालने (Senior citizens violated in Indore) की घटना सामने आई थी। इस बाबत एक वीडियो भी सामने आया। जिसमें नगर निगम के कुछ कर्मचारी एक बुजुर्ग महिला और एक पुरुष बुजुर्ग को गाड़ी से उतारते और बैठाते हुए दिख रहे हैं। गाड़ी में कुछ और बुजुर्ग व उनका सामान नजर आ रहा है। ये वीडियो शिप्रा के आसपास का बताया जा रहा है।इस मामले को लेकर विरोध प्रदर्शन होने के साथ कई नामचीन आवाजें मुखर भी हुई।
उम्र के इस पड़ाव पर बुजुर्ग क्या सोचते हैं?
2011 की जनगणना के अनुसार देश में 5 करोड़ 10 लाख बुजुर्ग पुरुष और 5 करोड़ 30 लाख बुजुर्ग महिलाएं हैं। देश में बुजुर्गो की संख्या बहुतायत है। लेकिन क्या वें आम जिन्दगी जी रहें हैं? मेरे नजरिए में ज्यादातर बुजुर्ग घर के किसी कोने में अपनी अंतिम घड़ियां गिन रहे होते हैं। कुछ निराश्रितों को ओल्ड ऐज होम का सहारा मिल जाता है। कुछ ऐसे भी हैं जो आर्थिक तौर पर मजबूत हैं लेकिन उम्र के इस चौथेपन में जब अकेलापन महसूस होता है तो स्तिथि अवसाद वाली ही होती है।
आजादी के जश्न का हक़ हम सभी को है
ऐसे में मुझे कोलगेट का ऐड (Colgate ad) याद आता है। शायद उसे आप लोगों ने भी देखा हो। ऐड में एक उम्रदराज महिला अपने पूरे परिवार के साथ रेस्तरां में लंच पर गई होती हैं। जहां वह बार – बार किसी के इन्तज़ार में दरवाज़े की ओर देखती हैं। तभी अचानक एक उम्रदराज व्यक्ति उनके कंधे को संभालते हैं। इसके बाद वह अपने हाथ में अंगूठी दिखाते हुए बच्चों की ओर देखकर स्माइल करती हैं। यानी कि उनकी मांगनी हो चुकी है। पहले तो सभी आश्चर्य में पड़ जाते है फिर बाद में खुशी मनाते है। ऐड की आखिरी लाइन होती है – “आजादी का जश्न”
पर कुछ सवाल मन में उठते हैं!
मन में ख्याल आया कि क्या ऐसा वास्तविक जीवन में भी मुमकिन है? क्या दो लोग उम्र के इस पड़ाव पर आकर (जब लगभग सरी जिम्मेदारियां पूरी हो जाती हैं) जिंदगी की नई शुरुआत कर सकते हैं? क्या हमारा समाज इसकी गवाही देगा? अपको हैरानी हो सकती है लेकिन मुझे इसका जवाब हां में मिला।
यहां बुजुर्गो की कराई जाती है शादियां
गुजरात में अहमदाबाद का संघठन – “बिना मूल्य अमूल्य सेवा” (Bina Mulya Amulya Seva) बुजुर्गो को जीने के लिए नई वजह दे रहा है। वो ऐसे की ये संघठन सम्मेलन आयोजित करवाता है। जहां कई बुजुर्गों का आपस में परिचय कराया जाता है। यदि किसी को कोई पसंद आता है तो वह शादी या लिव इन रिलेशनशिप में रहने का फैसला ले सकते हैं। यह पूरी तरह से उन पर निर्भर करता है कि वह किसी के साथ बाकी की जिंदगी बिताना चाहते है या नहीं।
हर साल बढ़ते जा रहें है आवेदन
कई बार तो खुद बच्चे अपने पेरेंट्स को यहां लाते हैं। मीडिया रिपोर्ट के अनुसार संगठन को चलाने वाले नाथूभाई लाल पटेल का कहना है कि “हर साल बुजुर्गो की ओर से आने वाले प्रार्थनापत्र की संख्या बढ़ती जा रही है। पहले साल भर में तीन हजार प्रार्थनापत्र मिलते थे पर अब संख्या पांच हजार हो चुकी है। वह इसके लिए देशभर से आयोजन करवाते रहते हैं।”
समाज का बदलता स्वरूप परिवर्तन की ओर इशारा कर रहा
इससे यह साफ हो रहा है कि समाज में लोगों की सोच का दायरा बढ़ रहा है। खुश रहने का अधिकार सभी को है। जिंदगी में अकेलेपन को दूर करने के लिए किसी न किसी के सहारे की जरूरत होती है ताकि बातचीत कर के सुख दुख आपस मेंबांटा जा सके। ऐसे में यह संस्था बुजुर्गों के के लिए नई आशा बन कर उभर रही है।