Wednesday, December 13, 2023

इस गांव में होली खेलने से हो जाती है मौत, पिछले 100 सालों से नहीं उड़े अबीर गुलाल

होली रंगों का त्योहार है, जिसे हर धर्म के लोग पूरे हर्ष और उत्साह के साथ मनाते हैं। यह पर्व फाल्गुन मास की पूर्णिमा को मनाया जाता है। भारत में इसे बहुत ही धूम-धाम से मनाया जाता है। एक तरफ जहां होली (Holi) के दिन बुराई को भुलाकर प्यार की ओर बढ़ने का दिन है, वहीं भारत में अभी भी कुछ ऐसे गांव हैं, जहां होली (Holi) का जश्न फीका रहता है।

आपको जानकर हैरानी होगी कि एक ऐसा गांव भी है, जहां 100 वर्षों से होली का त्योहार नहीं मनाया गया है। उस गांव की एक ऐसी मान्यता है कि जिसने भी होली (Holi) का त्योहार मनाया, उसकी मृत्यु निश्चित है।

Holi is not celebrated in these villages since 100 hundred years

एक ऐसा गांव जहां 100 वर्षों से नहीं मनी होली

उत्तर भारत के राज्य झारखंड का एक ऐसा गांव है, जहां लोगों को रंगों से डर लगाता है। वहां के रहने वाले बुजुर्गों के अनुसार, दुर्गापुर के बोकारो के कसमार ब्लॉक में 1000 से अधिक जनसंख्या है, लेकिन वहां होली नहीं मनाई जाती है। यह परंपरा 100 वर्षों से चली आ रही है। वहां यह माना जाता है कि यदि किसी ने होली (Holi) खेली, तो उसकी मृत्यु निश्चित है। इसके पीछे का एक किस्सा काफी प्रचलित है।

Holi is not celebrated in these villages since 100 hundred years

क्यों नहीं मनाया जाता होली का त्योहार?

वहां के स्थानीय बुजुर्गों के अनुसार, कई दशकों पहले दुर्गा प्रसाद नाम के राजा का राज था। उस राजा ने एक बार होली (Holi) का पर्व बेहद हर्ष-उल्लास के साथ मनाया। इसका परिणाम यह हुआ कि होली (Holi) के दिन ही राजा के बेटे की मृत्यु हो गई। उसके बाद राजा की मौत भी होली के दिन हो गई। उस राजा ने मरने से पहले गांव वालों से होली नहीं मनाने की अपील की, जिसके बाद से इस गांव में कभी रगं-गुलाल नहीं उड़े। इसके अलावा ग्रामीणों का मानना है कि यदि किसी ने होली (Holi) खेली तो राजा का भुत कहर ढा देगा। इसके साथ ही भुखमरी, अकाल और महामारी भी फैल सकती है। यह मान्यता दर्गापुर गांव की है लेकिन डर के मारे गांव के आस-पास के लोग भी रंगों का पावन त्योहार नहीं मनाते हैं।

Holi is not celebrated in these villages since 100 hundred years

ऐसे दो गांव उत्तराखंड में भी

उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग नाम से एक ज़िला है, जहां अलकनंदा और मंदाकिनी नदी का संगम होता है। इस ज़िले के कुरझां और क्विली नाम के दो ऐसे गांव हैं, जहां 150 वर्षों से होली (Holi) का पर्व नहीं मनाया गया है। यहां मान्यता है कि क्षेत्र की प्रमुख देवी त्रिपुरा सुन्दरि का वास है और उन्हें शोरगुल बिल्कुल पसंद नहीं है। इसी वजह से वहां के लोग रंगों से दूर रहते हैं।

भारत विविधताओं से भरा देश है, जहां हर मान्यताओं का सम्मान किया जाता है।