Tuesday, December 12, 2023

भारत की वो वीरांगनाएं, जिन्होंने स्वतंत्रता के लिए लगा दी थी जान की बाजी

ऐसी चर्चाएं हर बार सामने आती हैं कि समय के साथ महिलाएं सशक्त हो रही हैं और हर क्षेत्र में सफलता का परचम लहरा रही हैं। इसका यह कतई मतलब नहीं कि पहले की महिलाएं सशक्त नहीं थी। इतिहास में ऐसी कई महिलाओं का नाम दर्ज है जिन्होंने अपनी वीरता का उत्कृष्ट उदाहरण पेश किया है।

आज हम भारत के कुछ ऐसी बहादुर महिलाओं के विषय में बात करेंगे, जिन्होंने अपने देश के लिए अपनी जिंदगी तक की परवाह नहीं की। – Brave daughters of India, who contributed immensely in India’s independence.

भारत के आजादी में था महिलाओ का बहुमूल्य योगदान

यह तो हम सब जानते हैं कि भारत लंबे समय तक अंग्रेजों का गुलाम रहा है। इस गुलामी को आजादी में बदलने के लिए बहुत से वीरों ने अपना बलिदान तक दिया है। इस सफर में भारत की बेटियां भी पीछे नहीं थी। साल 1857 के पहले स्वातंत्र्य समर से लेकर 1947 में देश आजाद होने तक यह महिलाएं डटी रहीं और जब आजाद भारत की अपनी लोकतांत्रिक सरकार बनी उस वक्त भी उन्होंने अपना योगदान दिया।

आज हम कुछ ऐसे वीरांगनाओं की बात करेंगे, जिनके बलिदान और देश-निर्माण में योगदान को देश कभी भूल नहीं सकता। – Brave daughters of India, who contributed immensely in India’s independence.

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  1. रानी चेन्नम्मा (Rani Chennamma), कित्तूर (kittur)

रानी चेन्नम्मा उन भारतीय शासकों में से एक थी, जिन्होंने देश की स्वतंत्रता के लिए सबसे पहली लड़ाई लड़ी थी। सन् 1857 के विद्रोह से 33 साल पहले ही दक्षिण के राज्य कर्नाटक में शस्त्रों से लैस सेना के साथ रानी चेन्नम्मा ने अंग्रेजों का सामना किया और वीरगति को प्राप्त हो गई। रानी चेन्नम्मा को आज भी कर्नाटक की सबसे बहादुर महिला माना जाता है।

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  1. झांसी (Jhansi) की रानी, लक्ष्मीबाई (Laxmi Bai)

भारत में जब भी महिलाओं के बहादुरी की बात होती है, तो महान वीरांगना रानी लक्ष्मीबाई की चर्चा ज़रूर होती है। हम सब उनकी बहादुरी भरे कारनामे सुनते-सुनते बड़े हुए हैं। झांसी की रानी सन 1857 के विद्रोह में शामिल रहने वाली प्रमुख शख्सियत थीं। उनकी अप्रतिम शौर्य से चकित होने वाले अंग्रेजों ने भी उनकी प्रशंसा की थी। रानी लक्ष्मीबाई आज भी अपनी वीरता के लिए जानी जाती है।

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  1. बेगम हजरत महल (Begum Hazrat Mahal)

बेगम हजरत महल 1857 के विद्रोह के सबसे प्रतिष्ठित चेहरों में से एक हैं। उन्होंने मटियाबुर्ज में जंगे-आज़ादी के दौरान नजरबंद किए गए वाजिद अली शाह को छुड़ाने के लिए लार्ड कैनिंग के सुरक्षा दस्ते में भी सेंध लगा दी थी। बाद में वह लखनऊ पर कब्ज़ा कर अपने बेटे को अवध का राजा घोषित किया। इतिहासकारों की माने तो बेगम खुद हाथी पर चढ़ कर लड़ाई के मैदान में फ़ौज का हौसला बढ़ाती थीं।

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  1. ऐनी बेसेंट (Annie Besant)

थियोसोफिकल सोसाइटी और भारतीय होम रूल आंदोलन में अपनी भागीदारी निभाने वाली ऐनी बेसेंट का जन्म 1 अक्टूबर, 1847 को तत्कालीन यूनाइटेड किंगडम ऑफ ग्रेट ब्रिटेन एंड आयरलैंड के लंदन शहर में हुआ था। भारत आने के बाद भी वह महिला अधिकारों के लिए लड़ती रहीं। महिलाओं को वोट जैसे अधिकार दिलाने के लिए ऐनी बेसेंट लागातार ब्रिटिश सरकार को पत्र लिखती रहीं। ऐनी बेसेंट ने स्वराज के लिए चल रहे होम रूल आंदोलन में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।

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  1. भीकाजी कामा (Bhikaji Cama)

भीकाजी कामा को प्रेरक और क्रांतिकारी भाषणों के लिए तथा भारत और विदेश दोनों में लैंगिक समानता की वकालत करने के लिए जाना जाता है। वह एक वरिष्ठ नेता की तरह कुछ महत्वपूर्ण सामाजिक मुद्दों पर दुनिया का ध्यान आकर्षित की थी। 22 अगस्त 1907 को स्टटगार्ट, जर्मनी में अंतर्राष्ट्रीय सोशलिस्ट सम्मेलन में भीकाजी कामा ने ध्वज फहरा कर बोली की यह आजादी का प्रथम ध्वज है।

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  1. सुचेता कृपलानी (Sucheta kripalani)

भारत छोड़ो आंदोलन में शामिल होने वाली सुचेता गांधीजी के करीबियों में से एक थीं। वह कई लोगों को स्वतंत्रता संग्राम में हिस्सा लेने के लिए प्रेरित करने में सफल रहीं थी। उन्होंने सन् 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान स्वतंत्रता संग्राम में तथा 1946-47 में विभाजन के दंगों के दौरान सांप्रदायिक तनाव शमन में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, यहां तक कि उन्होंने भारतीय संविधान सभा में ‘वंदे मातरम’ भी गाया था।

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  1. सरोजिनी नायडू (Sarojini Naidu)

सरोजिनी नायडू आज भी कई महिलाओं के लिए प्रेरणा का स्त्रोत बनी हुई हैं। भारत कोकिला के नाम से प्रख्यात श्रीमती नायडू ने एक उत्साही स्वतंत्रता कार्यकर्ता और एक कवि के रूप में सन 1930-34 के सविनय अवज्ञा आंदोलन में भाग ली थी। सन् 1905 में वह स्वतंत्र भारत की पहली महिला गवर्नर बनी। उनकी अंग्रेजी में कविताओं के संग्रह आज भी महत्वपूर्ण भारतीय लेखन में मिलते है।

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  1. अरुणा आसफ अली (Aruna Asif Ali)

कांग्रेस पार्टी की सक्रिय सदस्य रह चुकीं अरुणा आसफ अली देश की स्वतंत्रता के लिए लड़ने के साथ-साथ तिहाड़ जेल के राजनैतिक कैदियों के अधिकारों की लड़ाई भी लड़ी। उन्होंने नमक सत्याग्रह में भाग लेकर लोगों को अपने साथ जोड़ने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा की। अंग्रेजों द्वारा कैद होने के बावजूद भी वह जेल में रह कर कैदियों की स्थिति को सुधारने के लिए तिहाड़ जेल के अंदर ही विरोध प्रदर्शन व हड़तालें के जरिए तिहाड़ के कैदियों की हालत में सुधार लाई।

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  1. कमला नेहरू (Kamala Nehru)

कमला विवाह के बाद इलाहाबाद में एक सामान्य कम उम्र की नई नवेली दुल्हन की तरह रहती थीं, लेकिन समय आने पर यही शांत स्वाभाव की महिला लौह स्त्रीव साबित हुई, जो धरने-जुलूस में अंग्रेजों का सामना की। भूख हड़ताल करती और जेल की पथरीली धरती पर सोती थीं। नेहरू के साथ-साथ कमला नेहरू और फ़िर इंदिरा की प्रेरणाओं में देश की आज़ादी ही सर्वोपरि थी। कमला नेहरू ने स्वतंत्रता संग्राम में अपने पति जवाहरलाल नेहरू का पूरा साथ दिया। कमला असहयोग आंदोलन और सविनय अवज्ञा आंदोलन में भी शामिल रह चुकी है।

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  1. डॉ. लक्ष्मी सहगल (Dr. Lakshmi Sehgal)

पेशे से डॉक्टर रह चुकी लक्ष्मी सहगल ने भारत के स्वतंत्रता संग्राम के साथ-साथ सामाजिक कार्यकर्ता के तौर पर प्रमुख भूमिका निभाई थी। नेताजी सुभाष चंद्र बोस की अटूट अनुयायी के तौर पर इंडियन नेशनल आर्मी में शामिल हुईं थीं। उनकी बहादुरी को देखते हुए सन् 1998 में उन्हें पद्म विभूषण से सम्मानित किया गया।

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  1. दुर्गा बाई देशमुख (Durga Bai Deshmukh)

दुर्गा बाई देशमुख महात्मा गांधी के विचारों से प्रभावित होकर उनके सत्याग्रह आंदोलन में भाग ली और भारत की आजादी में एक वकील, समाजिक कार्यकर्ता, और एक राजनेता की भूमिका निभाई।

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