फिलहाल के कुछ सालों में मीट और अंडे की खपत अधिक हो चुकी है। डिमांड बढ़ने की वजह से इसका व्यवसाय अधिक हो रहा है। लोग बत्तख या मुर्गियों का पालन-कर रहे हैं। वैसे इस बात से सभी परिचित हैं कि अगर कोई मुर्गी अंडे देगी तो वह प्रतिवर्ष 150-200 अंडे देगी लेकिन आज हम आपको ऐसे पक्षी के विषय में जानकारी देंगे, जो साल में लगभग 300 अंडे देती है। साथ ही स्वास्थ्य के लिए लाभदायक भी है।
जापानी बटेर
जापानी बटेर के विषय में अधिक जानकारी उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh) के गोरखपुर (Gorakhpur) में स्थित महायोगी गोरखपुर कृषि विज्ञान केंद्र (Mahayogi Gorakhpur Agriculture Science Center) के वैज्ञानिक डॉ. विवेक प्रताप सिंह (Vivek Pratap Singh) ने दिया है। उन्होंने यह जानकारी दिया कि मुर्गी पालन की अपेक्षा जापानी बटेर का पालन बहुत ही आसानी के साथ कम जगह और कम पैसे में होता है। पहले तो लोग बटेर का पालन मीट के लिए करते थे, लेकिन जैसे-जैसे व्यपार बढ़ने लगा और डिमांड अधिक होने लगी, तब लोगों ने बटेर से अच्छे पैसे कमाने शुरू कर दी।
आखिर बटेर के कौन-से किस्म का पालन करें?
उन्होंने बताया कि बटेर का विभाजन उनके पंखों के तौर पर हुआ है, जैसे टिक्सडो, फराओ इंग्लिश सफेद माचूरियन गोल्डन और ब्रिटश रेज। जब जापानी बटेर हमारे देश में आया तब किसानों को इससे बहुत सारे फायदे के आसार नजर आने लगे। इसके द्वारा पौष्टिक एवं स्वादिष्ट आहार भी उपलब्ध हैं। सबसे पहले बटेर का पालन बरेली के केंद्रीय पक्षी अनुसंधान संस्थान इज्जतदार में प्रारंभ हुआ। वहां आज भी इस पर सर्च कर कार्य जारी है। बटेर में बहुत से महत्वपूर्ण गुण मौजूद हैं, जिस कारण इसके मीट और अंडे अधिक लाभदायक सिद्ध हो रहे हैं।
मात्र 45 दिन की उम्र में करती है अंडे देना प्रारंभ
जापानी बटेर मात्र 45 दिनों में ही अंडे देना प्रारंभ कर देती है। यह लगभग 3 से 4 पीढ़ियों को जन्म देती है। मात्र 1 माह में यह पूर्ण उत्पादन का रूप ले लेती है, अगर इन्हें अनुकूल वातावरण मिले तब यह लंबे समय तक अंडे का उत्पादन करती रहेंगी। उन्होंने यह जानकारी दिया कि प्रतिवर्ष बटेर लगभग 280 से 300 तक अंडे दे सकती है।
कम स्थान की होती है ज़रूरत
उन्होंने यह जानकारी दिया कि जिस स्थान पर हम एक मुर्गी को रखेंगे, वहां लगभग 8-10 बटेर का पालन हो सकता है। इनका आकार छोटी होता है, जिस कारण इन्हें आसानी से स्थान प्राप्त हो जाता है। आकार छोटा होने के कारण यह भोजन भी कम करते हैं। लगभग 5 हफ्ते के होने के बाद यह अधिक खाने योग्य हो पाते हैं।
मिलने वाले पोषक तत्त्व
इनके मांस और अंडे में विटामिन्स, अमीनो अम्ल वसा के साथ अन्य पोषक तत्व भी मौजूद होते हैं, जिस कारण हमारा स्वास्थ्य इनसे अधिक स्वस्थ रहता है। आय दिन हम यह सुनते रहते हैं कि मुर्गियों में संक्रमण का बीमारी फैला हुआ है, लेकिन वही बटेर में ऐसी कोई समस्या कम होती है और ना ही उन्हें आगे किसी संक्रमण से बचने के लिए इंजेक्शन की ज़रूरत है। इनमें प्रजनन की क्षमता ज़्यादा होती है, साथ ही अंडे को सेने में भी माहिर होती हैं।