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पहले तीरंदाजी में मेडल जीती, अब द्रोणाचार्य बन नए टैलेंट को विकसित कर रही झारखंड की Reena Kumari मिसाल हैं

कहा जाता है कि जिंदगी अपना रुख कब बदल लेती है कुछ पता नहीं चलता है। कभी-कभी ऐसा होता है कि हम करना कुछ और चाहते हैं और हो कुछ और ही जाता है। सभी को बचपन से एक लक्ष्य होता है जिसे प्राप्त करने के लिए लोग जी तोड़ मेहनत करते हैं, परंतु कभी-कभी ऐसा भी हो जाता है कि हम बनना कुछ और चाहते हैं और जिंदगी एक ऐसा मोड़ लेती है कि हम बन कुछ और जाते हैं। उस चीज के बारे में कभी हमने कल्पना भी नहीं की होती है।

आज हम आपको एक ऐसे ही शख्स की कहानी बताएंगे जिनका अपनी जिंदगी का लक्ष्य कुछ और था परंतु उनके जिंदगी में एक ऐसा मोड़ आया कि वह किसी दूसरे लक्ष्य की तरफ चल दिए। वही लक्ष्य इनकी जिंदगी में वरदान बन कर आया और इन्होंने सिर्फ देशों में ही नहीं बल्कि विदेशों में भी अपना नाम रोशन किया और अपनी एक अलग पहचान बनाई। तो आईए बताते हैं मूल रुप से बिहार की रहने वाली रीना कुमारी (Reena Kumari) के बारे में।

रीना कुमारी (Reena Kumari)

रीना कुमारी बिहार (Bihar) के नवादा (Nawada) जिले के रहने वाली हैं परंतु यह अपने पूरे परिवार के साथ झारखंड (Jharkhand) के हजारीबाग (Hazaribagh) जिले के घाटो (Ghato) में रहती थीं। इनके पिता कपिल देव प्रसाद टाटा स्टील (Tata Steel) कंपनी में एक सुपरवाइजर थे। रीना कहती हैं कि मेरी पढ़ाई हजारीबाग के श्रमिक विद्या निकेतन में हुई है।वह कहती है कि- मैं पढ़ने में काफी अच्छी थी और मैं सभी सब्जेक्ट में अव्वल रही हूं। पढ़ाई को देख करके पापा को लगता था कि जो मेरा सपना था कि मैं आगे चलकर के कुछ बन जाऊंगी। मैं आगे पढ-लिख करके डॉक्टर बनूं और अपने भाई-बहनों के साथ-साथ अपने परिवार के लिए भी कुछ करूं। परंतु मेरी किस्मत को कुछ और ही मंजूर था। जिसके बारे में मैंने पहले कभी भी नहीं सोची थी।

डॉक्टर बनने की सपने को छोड़कर मैं किसी और रास्ते पर चल पड़ी। साल 1998 में जब में दसवीं क्लास में पढ़ाई कर रही थी तो उस समय टाटा स्टील एकेडमी में एक कैंप लगा था। मुझे बचपन से स्पोर्ट में काफी दिलचस्पी रही है। जब मैंने देखा कि स्पोर्ट के लिए यहां कैंप लगाया गया है तो मुझे ऐसा लगा कि मैं भी इसमें एक बार प्रयास करूं। जिसके बाद मैंने एक ट्रायल दे दिया। और मेरी किस्मत अच्छी रही कि यह ट्रायल मेरे लिए काफी अच्छा रहा। ट्रायल होने के बाद अब सेलेक्शन होना था, जिसमें मुझे चुना गया और टाटा आर्चरी एकेडमी (Tata Archery Academy) से बुलावा आ गया।

इसके बाद मैं इस सोंच में डूबी थी कि मुझे घर से इसके लिए जाने देंगे या नहीं क्योंकि इन सब चीजों के लिए हमें छूट नहीं दी जाती थी। घरवालों का सिर्फ यही कहना था कि तुम या तो पढ़ाई करो या फिर खेलो। तुमने इसे पहले कभी ट्रैक सूट तो देखा ही नहीं। तो फिर इस स्पोर्ट तीर-धनुष का खेल कैसे कर पाओगी। इन्हीं सब चीजों को लेकर के मैं काफी परेशान रहती थी। जिसके बाद मेरे स्कूल के टीचर अपने मुझे काफी समझाया और उन्होंने बताया कि तुम खेल को ही अपना कैरियर बनाओ और इसी से तुम आगे बढ़ो। यह तुम्हारी शुरुआत है और आगे चलकर के तुम्हें काफी मौका मिलेगे। मैं इसी सब सोच में पड़ी थी कि उधर से कॉल लेटर आ गया।

कॉल लेटर देखने के बाद मुझे याद आया कि मेरे टीचर आरएन सिंह ने कहा था कि यह मौका तुम्हारे लिए काफी अच्छा है और यह तुम्हारे दरवाजे तक खुद चलकर आया है। तुम इस मौका को गवाना नहीं। परंतु मुझे डर तो अपने घरवालों से था, जिसके लिए एकेडमी वालों ने मेरे पापा को काफी समझाया। जब पापा को इसके बारे में अच्छे से पता चला तो उन्होंने मुझे एकेडमी ज्वाइन करने को कह दिया। जिसके बाद मैंने साल 1998 के अक्टूबर में एकेडमी ज्वाइन कर ली। जब पता चला कि एकेडमी जाने के लिए मुझे जमशेदपुर (Jamshedpur) जाना है तो अंदर से काफी खुश हुई। खुशी इस बात की थी कि मुझे घूमने का काफी शौक था इसके साथ-साथ मेरी बड़ी बुआ जमशेदपुर में ही रहती थी। मैं ट्रेनिंग के लिए जमशेदपुर चली गई और मेरी ट्रेनिंग वहां जाते ही शुरू हो गई। जब वहां पहुंची तो मुझे ऐसा लगा कि मेरी दुनिया ही बदल गई है।

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पहले टूर्नामेंट में मिली जीत

जमशेदपुर में ट्रेनिंग के दौरान मैंने तीरंदाजी में काफी मेहनत और लगन के साथ कर रही थी। मेरे अंदर धीरे-धीरे आत्मविश्वास बढ़ता जा रहा था। राजस्थान के जयपुर में एक टूर्नामेंट होने जा रहा था। साल 1999 के जनवरी में बेसिक में सभी जूनियर टूर्नामेंट होने जा रहा था। इस टूर्नामेंट में मैंने भी भाग लिया और अपनी मेहनत और काबिलियत के दम पर इस टूर्नामेंट में जीत हासिल कर चैंपियन बन गई। इस जीत को लेकर के मेरे अंदर से एक अलग ही खुशी हो रही थी मुझे ऐसा लग रहा था कि पहले ही बार में मैं चैंपियन बन गई। इस जीत से मुझे अब आगे का रास्ता खुल गया और मैं सोंचने लगी कि अब मुझे आर्चरी में ही रह करके तीरंदाजी में अपना कैरियर बनाना है। जिसके बाद मैंने और भी मेहनत करने लगी और अब मेरा पूरा फोकस तीरंदाजी पर हो रहा था।

दसवीं में आया थर्ड डिवीजन

रीना बताती है कि जब मैं तीरंदाजी की ट्रेनिंग कर रही थी तब मेरा ध्यान पूरा इसी खेल पर था। जिसके कारण मेरा पढ़ाई धीरे-धीरे खराब होती चली गई। हालांकि इसे पहले मेरी पढ़ाई कितनी अच्छी थी कि मैं स्कूल में हमेशा टॉपर आती थी। परंतु यहां आने के बाद पढ़ाई काफी कम हो गई थी। जब साल 1999 के मार्च में मुझे दसवीं का रिजल्ट आया तो उसमें थर्ड डिवीजन से पास की। इस रिजल्ट को देखकर मैं काफी रोई थी। और परेशान से रहने लगी। जिसके बाद मैंने घर वालों को कहा कि मैं फिर से दसवीं की परीक्षा देना चाहती हूं और इस बार मैं अच्छे नंबर से पास करूंगी।

जब मैंने यह बात अपनी मां को बताई तो उन्होंने कहा कि अब तुम आर्चरी पर ही अपना पूरा ध्यान दो जिसमें आगे चलकर तुम्हारा एक अच्छा कैरियर बन जाएगा। इसके साथ-साथ मेरे को संजीवा सिंह ने भी मुझे काफी सपोर्ट किया। उन्होंने मुझे क्रिकेट के भगवान कह जाने वाले सचिन तेंदुलकर का उदाहरण देते हुए समझाए। मैंने लोगों की बात मानकर मैं आगे बढ़ने लगी और फिर आर्चरी में रहकर ही इंटर और फिर आगे आर्ट्स में ग्रेजुएशन की डिग्री हासिल की। इसके बाद तीरंदाजी में मैं मेहनत करने लगी।

जब पीटी उषा से मिली

जब मैं आर्चरी में ट्रेनिंग कर रही थी तब साल 1999 के नवंबर में उड़न परी के नाम से मशहूर पीटी उषा एकेडमी आई थी। इसी एकेडमी में मेरी मुलाकात पीटी उषा से हुई। जब मैंने पीटी उषा (P. T. Usha) को अपनी नग्न आंखों से खुद के सामने पाई तो मुझे यकीन ही नहीं हो रहा था क्योंकि मैंने इनके बारे में किताबों में पढ़ा था या फिर इन की फोटो देखी थी। जब मेरे सामने थी तो वह समय मेरे लिए काफी भावुक हो गई थी। उस समय मैं भूपति और लिएंडर पेस का मैच देखती थी। परंतु मेरे लिए यह पहली शख्सियत थी जिनमें कभी किताबों में देखी और पड़ी थी वो आज प्रत्यक्ष रुप से मेरे सामने थी। पीटी उषा को देखकर मेरे अंदर और भी एनर्जी आ गई। और इनसे मिलकर के मैं काफी इंस्पायर हुई। यह दिन मेरे लिए काफी बड़ा दिन था।

Journey of jharkhand archery coach reena kumari winning medal to teaching Archer

देश से लेकर विदेशों तक खेला

रीना बताती है कि मैं मन लगाकर की तीरंदाजी कर रही थी। मैं जब एकेडमी ज्वाइन की थी तो 2 साल के अंदर ही मैंने अपने देश की कई पटियाला, विजयवाड़ा, शिलौंग, मेरठ, कोलकाता, गुवाहाटी जैसे जगहों पर टूर्नामेंट खेल और जीत भी हासिल की। इसके बाद मैं इंटरनेशनल लेवल पर भी खेली हूं। मैं सबसे पहले इंटरनेशनल खेल चाइनीज ताइपे टूर्नामेंट खेला। उस टूर्नामेंट में टीम को ब्रॉन्ज मेडल मिला था। इसके बाद फिर मुझे इंटरनेशनल पर खेलने के लिए दूसरा मौका भी मिल गया और फिर में इसी साल ट्रेनिंग के लिए जर्मनी का दौरा किया। जर्मनी में नाईट सेशन की हुआ। इसके इसके बाद मैं अपने एकेडमी वापस आ गई और साल 2002 तक मैं एकेडमी में ही रही। इंटरनेशनल लेवल पर खेलने का मजा ही कुछ और था और यह जर्नी मेरे लिए काफी अच्छी रही।

एकेडमी से बाहर निकलने के बाद हुई परेशानी

रीना बताती है कि मैं साल 2002 तक आर्चरी में ही रही। इसके बाद मैं एकेडमी से बाहर आ गई। जब मैं एकेडमी से बाहर आई तो मुझे काफी परेशानियों का सामना करना पड़ा। सबसे पहले तो मुझे किट मिलने में परेशानी हो रही थी। इस परेशानी को मैंने काफी झेला तब जाकर के मैं रांची यूनिवर्सिटी के प्रो वीसी आनंद भूषण से मिली। जिसे बाद इन्होंने मेरी मदद करते हुए स्पोर्ट्स कोर्ट से चार लाख की खेल सामग्री दिलवाई। जिसके बाद मुझे नेशनल कैंप के लिए चुना गया। जिसने 17 दिनों की प्रैक्टिस करवाई गई। इस नेशनल कैंप के कोच कोरिया के लीन चे वोंक थे। इस 17 दिन की प्रैक्टिस के बाद मुझे तीन महीने के लिए इंडियन टीम में सेलेक्ट कर लिया गया।

वर्ल्ड चैंपियनशिप में ली भाग

रीना बताती है कि जब मुझे इंडियन टीम में सेलेक्ट कर लिया गया तो जिसके बाद साल 2003 में मैंने काफी सारे इंटरनेशनल टूर्नामेंट में भाग लिया। जिसे बाद मैंने फ्रांस गई और यहां पर यूरोपियन ग्रांड प्रिक्स मैं खेली। यह साल मेरे लिए काफी खास रहा। फ्रांस में यूरोपियन ग्रांड पिक्स खेलने के बाद मुझे एक बहुत बड़ा एक्सपोजर मिल गया। जो मैं न्यूयॉर्क में वर्ल्ड चैंपियन खेलने गई, यह मेरे लिए बहुत बड़ा दिन था। जब मैं वर्ल्ड चैंपियन खेलकर आई तो अगले ही साल मुझे 28वां एथेंस ओलंपिक (Athens Olympic) खेलना था। इस एथेंस ओलंपिक खेल को खेलों का महाकुंभ कहा जाता है। आर्चरी भारत की सबसे पहली महिला टीम ओलंपिक में गई थी। इस टीम में मेरे साथ सुमंगला शर्मा और डोला बनर्जी थी।

इस ओलंपिक में खेलने के लिए मैं काफी उत्साहित थी और काफी खुश थी। परंतु जब मैं इंडिविजुअल कैटेगरी मे प्री क्वाटर फाइनल में पहुंच तो मुझे हार का सामना करना पड़ा जो मेरे लिए काफी निराशाजनक था। जब ओलंपिक स्टार्ट होने वाली थी उसके चार महीने पहले ही हम लोगों के कोच को बदल दिया गया था। हम लोगों का जो कोच कोरिया के थे उनकी जगह बुल्गारिया के कोच को रखा गया। जो हम लोगों के टीम के लिए काफी नुकसानदायक सिद्ध हुआ। टीम को अच्छे से प्रैक्टिस नहीं होने के कारण और एथेंस मैं खराब मौसम के कारण टीम अच्छे से परफॉर्म नहीं कर पाई। यह समय मेरे लिए काफी निराश जाना कर रहा।

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बीजिंग ओलंपिक

रीना बताती है कि मैं अपनी तरफ से लगातार परिश्रम और मेहनत करती रही। जिसके बाद फिर साल 2008 में मुझे बीजिंग ओलंपिक (Beijing Olympic) ट्राइल के लिए चुना गया। परंतु इस बार मेरे साथ काफी ज्यादती की गई। मैं एक अच्छे खिलाड़ी होने के बावजूद भी इस बीजिंग ओलंपिक में चुनने के बाद भी मुझे इस ओलंपिक से हटा दिया गया। क्योंकि मेरी जगह पर एक जूनियर प्लेयर को आगे बढ़ाने के लिए मेरे साथ राजनीति खेली गई। यह मेरी जीवन का सबसे बड़ा धक्का लगा। जिसकी वजह से मैं डिप्रेशन में चली गई। मैंने इसके लिए अपनी तरफ से आवाज भी उठाई। लेकिन कहते हैं ना कि जहां राजनीति खेली जाती है वहां हम जैसों को निकाल दिया जाता है और मेरे साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ। आवाज उठाने के बावजूद भी लोगों को कोई फर्क नहीं पड़ा। जिसके कारण मुझे 3 महीने के लिए साइकेट्रिस्ट से इलाज करवाना पड़ी। यह दौर मेरे लिए काफी दर्दनाक रहा। और उन लोगों के सामने मैं कुछ नहीं कर पाई।

साल 2013 में हुई शादी

रीना बताती है कि साल 2013 एक आर्मी कोच अनिल सिंह जो लखनऊ के रहने वाले हैं उनसे मेरी शादी हो गई। वो आर्मी कोच के साथ-साथ आर्चर भी है। जब मेरी शादी हुई ठीक उसके 20 दिन बाद मैं नेशनल कैंप में आ गई और फिर इंडियन टीम में पहुंच गई।

कोच के रूप में ज्वाइन किया

रीना बताती है कि मैं खेलने के साथ-साथ कोच भी बन गई। जिस साल मेरी शादी हुई उसी साल 21 मई 2013 को स्पोर्ट्स अथॉरिटी ऑफ इंडिया में कोच के रूप में ज्वाइन कर लिया। जब मैं कोच बनी थी उस समय स्पोर्ट्स मिनिस्टर अजय माकन थे। इन्होंने मेरी काफी मदद किए। अजय मकान कहते हैं कि ओलंपियन को क्यों ना कोच के रूप में रखा जाए। जिसके बाद यहां से मेरी जिंदगी का एक नया सफर शुरू हो गया।

शादी से पहले मैं रेलवे में 9 साल तक रही थी। आज मैं साई में छोटे बच्चे जो लगभग 12 से 16 साल के हैं, उन बच्चों को मैं ट्रेनिंग देती हूं। और इससे पहले यहां से काफी सारे बच्चे नेशनल से लेकर के इंटरनेशनल टूर्नामेंट में हिस्सा ले चुके हैं और टूर्नामेंट खेल चुके हैं। अब मैं इन्हीं सब छोटे बच्चे को ट्रेनिंग दे रही हूं जिससे यह बच्चे आगे चलकर के अपने भविष्य और अपने करियर बनाएं और अपने परिवार के साथ-साथ अपने देश का भी नाम रोशन करें।

प्रेग्नेंसी की वजह से नहीं जा सकी कोलकाता

रीना बताती है कि मुझे कोलकाता जाने का मौका मिला था परंतु उस समय प्रेग्नेंसी की वजह से मैं कोलकाता नहीं जा पाई। यह मौका खेलो इंडिया के तहत सरकार ने आर्चरी में रह रहे बच्चों को ट्रेनिंग के लिए दो केंद्र बनाया गया है। जिसमें एक केंद्र सोनीपत और दूसरा केंद्र कोलकाता में बना है। इसी कोलकाता केंद्र में मुझे जाने का एक बेहतरीन मौका मिला था। आज मैं कोलकाता में ही रहकर और यहीं आर्चरी में ही डिप्लोमा का कोर्स कर रही हूं।

लड़कियां खुद की ताकत को पहचाने

रीना कहती हैं कि मैं उन सभी लड़कियों से यही कहना चाहती हूं कि उन्हें अपनी जिंदगी में अगर कुछ बनना है तो सबसे पहले आप अपने अंदर की ताकत को पहचाने और आपका जो लक्ष्य है उस पर अपना ध्यान केंद्रित करें। आपको जिस चीज में इंटरेस्ट हो उसी चीज को अपना लक्ष्य मानकर आगे बढ़ते रहें, चाहे वह खेल ही क्यों न हो। और अगर आपके लक्ष्य में आप के परिवार वाले साथ दे देते हैं तो आपको अपनी कामयाबी तक पहुंचने में कोई नहीं रोक सकता। आप उस ऊंचाई तक जरूर पहुंच जाएंगे।

प्रेरणा

रीना कुमारी से हम लोगों को यह प्रेरणा मिलती है कि अगर जिंदगी में आगे बढ़ना है तो हमें संघर्ष जरूर करना पड़ेगा। तभी जाकर के आप एक सफल इंसान बन पाएंगे। बिना संघर्ष की हुए हमें सफलता नहीं मिलती है। आप अपनी अंदर की काबिलियत को बाहर निकाले और उसे एक बार अवश्य मौका दें।

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