देश के सबसे प्रतिष्ठित शिक्षण संस्थान भारतीय प्रबंधन संस्थान (IIM) के बारें में तो आप जानतें ही है। इस संस्था में पढ़ाई के बाद युवाओं को देश ही नहीं बल्कि विदेशों से भी नौकरी के ऑफ़र आते है। आजकल के दौर में मैनेजमेंट और टेक्नोलॉज़ी के क्षेत्र में रोजगार का विस्तार हो गया है। अधिकतर युवा इसी फील्ड में जाना चाहते हैं। देश के प्रसिद्ध संस्थानों से पढ़ाई करने के बाद देश के युवा अच्छी पैकेज वाली कम्पनियों में काम करना चाहतें हैं, या फिर ख़ुद का व्यवसाय आरंभ करतें हैं। वहीं कुछ युवा अपने समाज में वैसे लोगों के लिये काम करतें हैं जो दिन-रात हाथ ठेले पर सब्जियों को बेचकर अपना और अपने परिवार का पेट भरते हैं।
आज हम आपको ऐसे ही एक इन्सान के बारें में बताने जा रहें हैं जिसने IIMA से पढ़ाई ही नहीं बल्कि स्वर्ण पदक जितने के बाद भी उसने नौकरी नहीं की।
कौशलेन्द्र कुमार (Kaushalendra Kumar) बिहार (Bihar) के नालंदा (Nalanda) जिले के मोहम्मदपुर गांव के रहनेवाले हैं। इनके माता-पिता गांव के स्कूल में शिक्षक है। कौशलेन्द्र अपने सभी भाई-बहनों में सबसे छोटे हैं। कौशलेन्द्र पढ़ाई में बहुत होशियार थे। जब वह 5वीं कक्षा की पढ़ाई कर रहे थे, उसी समय उनका नवोदय स्कूल में नामांकन हो गया। इस स्कूल में छात्रों को खाना, कपड़ा, रहने की व्यव्स्था सब उपलबध कराया जाता है। अगर कोई छात्र आर्थिक स्थिति से कमजोर है और प्रतिभावान है तो इस विद्यालय का छात्र की पारिवारिक स्थिति से कोई मतलब नहीं हैं। इस स्कूल में छात्रों को सारी सुविधा दी जाती है।
![](https://thelogically.in/wp-content/uploads/2020/09/WhatsApp-Image-2020-09-11-at-10.55.35-PM.jpeg)
कौशलेन्द्र कुमार (Kaushalendra Kumar) नवोदय विद्यालय से पढ़ाई पूरी करने के बाद IIT से B.Tech की पढ़ाई करना चाहतें थे। लेकिन कहा जाता है न कि कभी-कभी इन्सान जो सोचता है वह नहीं होता है। कौशलेन्द्र भी IIT से B.Tech नहीं कर पाएं। उन्होनें इंडियन काउंसिल ऑफ़ एग्रीकल्चर रिसर्च (ICAR) जूनागढ़ से B.Tech की पढ़ाई पूरी की। पढ़ाई के दौरान कौशलेन्द्र गुजरात (Gujarat) के समृद्ध लोगों को देखकर बहुत प्रभावित हुयें। वहां के समृद्ध लोगों को देखकर उन्हें अपने गांव के मजदूर याद आते थे जो रोजगार के लिये गुजरात जातें थे। यह सब देखने और सोचने के बाद कौशलेन्द्र ने निश्चय किया कि वह बिहार के लोगों के लिये रोजगार का विस्तार करेंगे जिससे उनकी भी स्थिति अच्छी हो सके।
यह भी पढ़े :-
इस इंजीनयर ने अपने खाली समय का उपयोग कर लगा दिए 400 से भी अधिक पौधे, घर को बना दिया बगीचे जैसा खूबसूरत
B.Tech की पढ़ाई पूरी करने के बाद कौशलेन्द्र को 2003 में सिंचाई के लिए उपकरण बनाने वाली फर्म में 6000 की नौकरी मिली। कौशलेन्द्र ने कुछ दिनों बाद ही नौकरी छोड़ दिया। मैनेजमेंट के पढ़ाई के लिये उनहोंने CAT(कैट) की तैयारी शुरु की। परिणामस्वरुप उन्होनें IIMA (Indian Institute of Management Ahmedabad) में टॉप करने के उपलक्ष में इन्हें गोल्ड मेडल से सम्मानित भी किया गया। IIMA से टॉप करने के बाद बहुत युवाओं का सपना होता है कि वह अच्छी-खासी नौकरी कर के अपना जीवन ऐश-आे-आराम से व्यतीत करें। लेकिन कौशलेन्द्र ने नौकरी नहीं करने का निश्चय किया। उन्होंने किसानों और वेंडरों को जोड़कर एक संगठित व्यवसाय बनाने का विचार किया। कौशलेन्द्र अपने भाई के साथ “कौशल्या फाउंडेशन” का स्थापना किए। हालांकि पैसों के कमी की वजह से उन्हें शुरुआती दिनों में काफी मुश्किलें आई। IIMA में टॉप करने के बाद भी उनकी बेरोजगारी पर कुछ लोगों ने उनका बहुत मजाक भी बनाया। इन सब के बावजूद भी कौशलेन्द्र कुमार के कदम अपने लक्ष्य से नहीं डगमगायें और वह अपनी मंजिल को पाने की राह पर चलतें रहें।
कौशलेन्द्र कुमार ने वर्ष 2008 के फरवरी माह में “समृद्धि” परियोजना आरंभ किया। समय के साथ इस योजना के तहत 20 हज़ार से ज्यादा की संख्या में किसान जुड़ गयें। इस कंपनी में 700 से अधिक लोग काम कर रहें हैं। बिहार (Bihar) में तीतर-बितर हुए सब्जी उत्पादकों और बेचने वालों को आपस में जोड़ने के लिये कौशलेन्द्र ने “फ्रॉम फ्रेश प्रोड्यूस(FFP)” रिटेल सप्लाई चेन का मॉडल अपनाया हैं। इस योजना से जुड़े हुयें कर्मचारी किसानों से सब्जी को लेकर बेचने वालों के पास पहुंचातें हैं। इसकी सहायता से किसानों को कृषि से संबंधित सभी प्रकार की मदद और सलाह दी जाती है। कौशलेन्द्र एक ऐसा फर्म बनाना चाहतें हैं जहां किसान बाजार के रिटेल में एफ.डी.आई और मोलभाव का सामना करने में कुशल हो।
![](https://thelogically.in/wp-content/uploads/2020/09/WhatsApp-Image-2020-09-11-at-10.56.10-PM.jpeg)
सब्जियां हो या फल ये जब तक खेतों में रहते हैं तब तक ही ताजे रहतें है। खेतों से निकलने के बाद सब्जियां और फल जल्द ही सुखने लगते है और कुछ दिनों में खाने योग्य भी नहीं रहते। सब्जियों की ताजगी बनी रहें इसके लिये कौशलेन्द्र कुमार ने “आइस कोल्ड” पुश आर्ट (हाथ ठेला) बनाया हैं। “आइस कोल्ड” पुश आर्ट कौशल्या फाऊंडेशन पटना और नालंदा के पतली गलियों के लिये काफी उपर्युक्त है। यह पुश आर्ट फाईबर से तैयार किया गया है। इस पुश आर्ट में भार सहने की योग्यता 200 kg है। इसमें लगभग 5 से 6 दिन तक सब्जियां ताजी और हरी-भरी रह सकती है। इसके साथ ही इसमें इलेक्ट्रानिक तराजू भी लगाएं है जिससे किसानों को मदद मिलें। फाईबर पुश आर्ट की 40 हजार रुपये से 50 हजार रुपये तक कीमत है। यह पुश आर्ट दूसरे बड़ी रिटेलर के कंधा से कंधा मिलाने के लिये यह ग्राहकों के घरों तक सस्ती और ताजी सब्जियां पहुंचाने का कार्य करती है।
“मनुष्य अपनी मेहनत और काबिलियत के दम पर किसी भी काम को बड़ा बना सकता है।” इस बात को सच साबित कर दिखाया है कौशलेंद्र कुमार ने। पटना के एक विद्यालय के पीछे छोटी-सी दुकान से पहले दिन की कमाई 22 रुपये से शुरु करने वाला कौशल्या फाउंडेशन को 5 करोड़ तक का टर्नओवर हो गया हैं। “समृद्धि” योजना में किसानों को शुरुआत के दिनों की तुलना में उनकी आय में 25% से 50% तक की बढ़ोतरी हुईं हैं तथा इसके साथ ही सब्जी वेंडरों की आय में भी 50%से 100% तक की बढ़ोतरी हुईं है। वेंडरों की मासिक सैलरी औसतन 8000 से अधिक हो गईं हैं और उन्हें पहले के अपेक्षा 8 घंटे से कम काम करना पड़ता है।
कौशलेन्द्र के इस कोशिश से प्रभावित होकर कई सारे सामाजिक संगठन, बैंक और कृषि संस्थाएं उनके प्रयास में जुड़ कर मदद कर रहें हैं। कौशलेन्द्र अपनी माता के द्वारा हौसला बढ़ाने को अपनी सफलता का मुल मंत्र मानते हैं। इसके साथ ही सफलता का श्रेय प्रबन्धन संस्थानो के शिक्षक और मित्रों को देतें हैं।
कौशलेन्द्र (Kaushalendra) कुमार खेती बाड़ी में अवसर और रोजगार को कम समझने वालों के लिये एक मिसाल खड़ी कर दी हैं। कौशलेन्द्र कुमार द्वारा अपने क्षेत्र के किसानों और वेंडरों के लिये जो प्रयास किया गया है, वह सराहनीय हैं। इसके लिये The Logically उन्हें सलाम करता हैं।
![](https://thelogically.in/wp-content/uploads/2020/09/WhatsApp-Image-2020-09-04-at-9.22.01-PM-1.jpeg)