Wednesday, December 13, 2023

केवल पपीता और तरबूज की खेती से लाखों रुपये कमा रहा है यह किसान, लोगों को भी सीखा रहे हैं तरीका

आजकल किसानो का पारंपरिक तरीक़े से खेती छोड़ कर जैविक खेती के तरफ रुझान बढ़ा हैं।जैविक खेती से होने वाले फायदे और कम लागत से किसान अब जैविक खेती कर रहे हैं। एक ऐसे ही किसान हैं संदीप गिते जिन्होंने सूखाग्रस्त क्षेत्र में खेती कर के अच्छी सफलता अर्जित की हैं। संदीप गिते( Sandeep gite) महाराष्ट्र के बीड ज़िले के पराली तालुका के नंदगौल गांव के रहने वाले हैं। संदीप पहले बाकी किसानों की तरह चना और सोयाबीन जैसी फसलों की खेती किया करते थे जिससे उनकी उतनी कमाई नही होती थी। संदीप बताते है कि एक जैविक खेती के गाइडिंग सेशन के दौरान उन्हें फलदार पौधों के फायदे पता चले। तब उन्होंने अपनी ज़मीन पर पपीता लगाने का निश्चय किया। 2019 में संदीप ने अपनी एक एकड़ की जमीन पर पपीते के 1 हज़ार पौधे लगाए थे।

लागत कम मुनाफा ज़्यादा

संदीप बताते है कि जैविक खेती करने में पानी की बचत होती हैं, साथ ही इसमे लागत भी कम लगता है और मुनाफा ज़्यादा होता हैं। संदीप ने पपीते की जैविक खेती में 1.5 लाख खर्च किया और पिछले 7 महीने में उन्होंने इससे 3 लाख तक कि कमाई की हैं। इसमे उन्होने पानी और उर्वक का प्रयोग भी सिर्फ एक बार किया। अतिरिक्त फसल के रूप में उन्होंने तरबूज लगाई। दो फसल लगाने और जैविक तरीके से खेती करने से इनकी आय दुगनी तेज़ी से बढ़ी हैं।

business of Sandeep gite

उत्पादों को अन्य जगहों पर बेचा जाता हैं

संदीप ने इसमें आए परिणामो को देख कर ज़्यादा ज़मीन पर खेती शुरू की। आज वह दो एकड़ जमीन पर की गई खेती से 11 लाख तक कि कमाई कर रहे हैं। वह अभी 20 टन पपीते की खेती करते हैं जिसको वह अन्य राज्यो में भी भेजते हैं।

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संदीप की सफलता देख अन्य किसान भी इसमे आगे आए

संदीप गिते( Sandeep gite) की सफल खेती और बढ़ते मुनाफे को देख अन्य किसान भी इसकी खेती कर रहे हैं। आज गांव में लगभग 150 एकड़ जमीन पर फलों की खेती होती है। इसमे 40 एकड़ मे सिर्फ पपीते लगे है बाकी में अलग-अलग फल लगे है जैसे आम, अमरूद आदि। इसको लेकर जनवरी 2020 में 8 किसानों का एक संगठन बनाया गया था जिससे आज 50 किसान जुड़े हुए हैं। यह सभी पपीता के अलावा अन्य फल की खेती करने की कोशिश कर रहे हैं।

group of  Sandeep gite

फलों की खेती से किसानों की आय बढ़ी है और उनकी मेहनत और लागत भी कम हुई हैं। इसपर पुणे डिवीज़न के कृषि विभाग के संयुक्त निदेशक कहते है कि उन्हें इस तरह के प्रयोग के बारे में पता चला है। वह लोग इसपर अध्यन कर रहे है ताकि बाकी किसानों को भी इससे लाभ हो।