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ऑटो ड्राइवर की बेटी बनेगी गांव की पहली डॉक्टर, चौथे प्रयास में NEET की परीक्षा में हासिल की सफलता

Nazia daughter of auto driver became first doctor of the village after passing neet examination

कहते हैं न, प्रतिभा कभी भी परिस्थितियों को मोहताज नहीं होती क्योंकि यह तमाम विपरीत परिस्थितियों के बावजूद भी निखर कर आती है। आज हम आपको झलावर, राजस्थान (Jhalawar, Rajasthan) की रहने वाली नाज़िया (Nazia) की कहानी से रूबरू कराने वालें हैं, जिन्होंने अपने विपरीत परिस्थितियों में भी खूब मेहनत किया और आज अपने गांव पचपहाड़ की पहली डॉक्टर बनने वाली है।

नाज़िया का परिचय

झलावर, राजस्थान (Rajasthan) की रहने वाली नाज़िया (Nazia) के पिता इसामुद्दीन एक टेम्पो चालक हैं और उनकी मां अमीना बी खेत में मज़दूरी कर परिवार के खर्चों को चलाती है। इतनी गरीबी में भी इनके माता पिता ने अपने बच्चों के पढ़ाई में कोई कमी नहीं होने दी। आज बेटी ने भी NEET परीक्षा में 668 रैंक हासिल कर माता पिता के नाम को गौरवान्वित किया है तथा सरकारी मेडिकल कॉलेज में उनका दाखिला तय माना जा रहा है।

परिवार के अन्य सदस्य थे पढ़ाई के विरुद्ध

नाजिया के परिवार की हालात बिलकुल भी सही नहीं थे फिर भी इनको पढ़ाई करने में हमेशा हीं माता-पिता का सहयोग मिला। हालांकि परिवार के अन्य सदस्य इनके पढ़ाई के विरुद्ध थे। नाजिया ने भी अपने माता पिता के विश्वास को कायम रखा और खूब मेहनत किया।

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NEET परीक्षा में पाया 668 रैंक

नाज़िया शुरू से हीं पढ़ने में काफी तेज तर्रार थी। उन्होंने 12वीं में 90 प्रतिशत अंक प्राप्त किया और इसके बाद वे NEET की तैयारी के लिए Allen Institute, कोटा में अपना दाखिला कराया। NEET के पहले तीन प्रयास में उन्होंने 487, 518 और 602 अंक प्राप्त किया। जिसके बाद कोचिंग संस्था ने उनके मेहनत और लगन को देखकर चौथे साल में उसकी 75 प्रतिशत फ़ीस माफ़ कर दिया।

नाज़िया बताती है कि, उनके पास उतने पैसे नहीं थे कि वे कोटा में अपनी पढ़ाई के खर्चों को निकाल सकें लेकिन खूब बे खूब इनके सफलता का रास्ता खुलता गया और वे अपनी मुकाम को हासिल करने में सफल रही।

स्कॉलरशिप को बताया वरदान

वे बताती हैं कि “राज्य सरकार की दोनों स्कॉलरशिप किसी वरदान से कम नहीं थे।” दरअसल, नाजिया को 10वीं और 12वीं में राज्य सरकार के तरफ से स्कॉलरशिप किला था, जिससे उनके कोचिंग का खर्चा निकल गया।

इतना हीं नहीं उन्होंने 9वीं में सरकार द्वारा मिली साइकिल को भी अपनी सफ़लता प्राप्त करने का एक जरिया बताया। बता दें कि, 8वीं की पढ़ाई पूरी करने के बाद नाज़िया भवानीमंडी रहने लगी थी और यहां से उनका स्कूल दूर पड़ रहा था। फिर 9वीं में उन्हे सरकार के तरफ से साइकिल मिली, जिससे वो आसानी से स्कूल जा पाई।

सफलता का श्रेय माता पिता को बताया

नाज़िया ने अपनी सफ़लता का पूरा श्रेय अपने माता-पिता को दिया है। क्योंकि उनके माता-पिता ने विपरीत परिस्थितियों में भी उनकी पढ़ाई को ज्यादा महत्त्व दिया है। उनका मानना है कि आज माता-पिता से मिले सहयोग के बदौलत हीं वे गांव की पहली डॉक्टर बनने वाली हैं।

निधि बिहार की रहने वाली हैं, जो अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद अभी बतौर शिक्षिका काम करती हैं। शिक्षा के क्षेत्र में कार्य करने के साथ ही निधि को लिखने का शौक है, और वह समाजिक मुद्दों पर अपनी विचार लिखती हैं।

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