अक्सर देखा जाता है कि कई लोग अच्छी पढ़ाई करके भी उसी क्षेत्र में करियर नहीं बनाते बल्कि लीक से अलग हटकर कुछ ऐसा करते हैं कि वे नाम और पैसा दोनों कमाते हैं। उन्हीं लोगों में से एक नाम है नीरज ढांडा का ।इंजीनियरिंग की नौकरी छोड़ कर नीरज ढांडा अमरूद की ऑर्गेनिक खेती करने लगे और आज वे इससे लाखों रुपए कमा रहे हैं।
नीरज ढांडा हरियाणा के जींद जिले के रहने वाले हैं। इनका जन्म एक किसान परिवार में हुआ था। नीरज ढांडा बचपन से ही पढ़ाई में काफी तेज तर्रार थे। जब वे सातवीं क्लास में थे तो इन्होंने एक टॉर्च भी बनाया था। वे बचपन से ही काफी मेहनती थे। नीरज ढांडा अपनी प्रारंभिक पढ़ाई पूरी करने के बाद कंप्यूटर साइंस से इंजीनियरिंग की पढ़ाई की। पढ़ाई करने के साथ-साथ नीरज अलग तरह का प्रयोग भी करते रहते थे।
नीरज बताते हैं कि जब वह पढ़ाई करके घर आते थे तो अपने परिवार वालों के साथ बाजार मंडी जाकर अपनी फसलें बेचते थे। उस मंडी में उन्होंने देखा कि वहां बिचौलियों द्वारा उनके परिवार और अन्य लोगों को अपमानित करते देखा। जब इन्होंने इसके बारे में अपने घरवालों को बताया तो घर वालों ने इन्हें यह बताया कि कि हमारी फसल बिचौलियों की वजह से ही बिकती है। यह सब देख कर नीरज अंदर से काफी निराश हुए।
नीरज अपनी इंजीनियरिंग की पढ़ाई पूरी कर लेने के बाद वह नौकरी में लग गए। लेकिन नीरज का रुझान खेती करने पर था। नीरज ने मन बना लिया कि वह पैसे इकट्ठा करके खेती करेंगे। इसके बाद उन्होंने पैसे इकट्ठा करना शुरू कर दिया। नीरज के पास खेती करने के लिए अपनी जमीन थी जो उन्हें पूर्वजों से मिली थी।
नीरज अपनी जींद से 7 किलोमीटर दूर संगतपुरा में अपने 7 एकड़ जमीन में चेरी की खेती करना शुरू कर दिया। लेकिन इस चेरी की खेती से नीरज को असफलता ही हाथ लगी। जिसके कारण उनके घर वालों ने उन्हें अपने नौकरी करने का सलाह दिया। लेकिन नीरज ने हार नहीं मानी और इन्होंने इलाहाबाद से अमरुद के पौधे लाकर अपने खेतों में लगाए। नीरज को इस अमरुद की खेती से फसल अच्छी हुई लेकिन जब वह बाजार की मंडी में बेचने के लिए गए तो सभी बिचौलिए एक होकर इनके फल को ₹7 प्रति किलो के हिसाब से लिए। यह देखकर नीरज को अच्छा नहीं लगा और उन्होंने अपने गांव और शहर से सटे 6 काउंटर लगाए और इन्होंने अपने फल को दुगने दाम में बेचे। इस काउंटर को लगाने से उन्हें काफी फायदा हुआ। जिससे थोक विक्रेता इनसे फल लेने के लिए सीधा खेतों तक पहुंच जाया करते थे।
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नीरज ढांडा को इस बात की चिंता थी कि अमरूद की खेती करने से या फल जल्दी खराब हो जाता है जिसके लिए जिसके लिए उन्होंने इस खेती को और अच्छे तरीके से करने के लिए एक प्रयोग करने का सोंचा। इन्होंने छत्तीसगढ़ जाकर वहां के नर्सरी से थाईलैंड के जंबो गोवा के पौधे खरीदे और अपने खेतों में लगाए। इन पौधों में नीरज ने काफी परिश्रम और मेहनत किया। इन पौधों के पोषण के लिए जैविक खाद का इस्तेमाल किया। इस जैविक खाद से अमरूदों का भजन डेढ़ किलो बढ़ गया और अमरूद स्वाद में काफी मीठा था। बाजार में इस अमरूद की मांग काफी बढ़ने लगा।
नीरज ने अपनी एक कंपनी बनाई और इसे हाईवे बेल्ट पर अमरूदों को ऑनलाइन बेचने लगे जिससे इस अमरूद की कीमत ₹550 रुपए प्रति किलो रखी गई। यह अमरूद लगभग 10 से 15 दिनों तक ताजी रहती है।
लोग इस अमरूद की खेती से काफी आकर्षित हुए। इस अमरूद की खेती देखने के लिए दूर दूर से आया करते हैं और इनसे इस खेती के बारे में जानने का प्रयास करते हैं। नीरज ने लोगों को निर्धारित मूल्य पर प्रशिक्षण की दे रहे हैं। जिससे लोग ऐसे फल उपजा सकें।
नीरज आगे चलकर ऑर्गेनिक गुड्स ग्रीन टी और शक्कर जैसे को भी ऑनलाइन बेचने का मन बना रहे हैं। नीरज बताते हैं कि उन्हें अपने बड़े बुजुर्ग उन्हें सफेद हाथी कहते हैं जिससे नीरज को काफी खुशी मिलती है और आगे चलकर आने वाली पीढ़ी नौकरी करने के बजाए खेती में अपना भविष्य देखेगी। नीरज ढांडा के इस प्रयास से आने वाली पीढ़ी को प्रेरणा मिलेगी और वह ऐसे ही जैविक खाद से कुछ अलग करने का प्रयास करेंगे।