21वीं सदी का दौर में विज्ञान का जिस तीव्रता से विकास हो रहा है, ऐसे में नई-नई तकनीक के सहारे खेती से लेकर हर क्षेत्र में बेहतर विकास हुआ है। आज पुरूषों के साथ-साथ महिलाएं भी हर क्षेत्र में डंटकर आगे इसका उदाहरण है मंडी की बाडीगुमाणू की रहने वाली निर्मला देवी (Nirmala Devi)। निर्मला तीन साल पहले प्राकृतिक खेती शुरू कर ना केवल खुद को दुनिया के सामने साबित किया बल्कि मास्टर ट्रेनर बनकर एक हजार के करीब लोगों को इस ओर प्रेरित की। – Nirmala Devi doing a natural farming and also giving training to farmers as a master trainer.
किचन गार्डनिंग से हुई शुरूआत
32 वर्षीय निर्मला प्राकृतिक खेती के लिए खाद भी खुद तैयार करती है और उसे सरकार के तय दामों के अनुसार मुहैया करवाती हैं। किचन गार्डनिंग से शुरूआत करने वाली निर्मल गांव में आतमा परियोजना की ओर से लगे प्राकृतिक खेती के प्रशिक्षण शिविर से प्रेरित हुई। पहले वह केवल अपने घर के आसपास ही प्राकृतिक खेती की शुरूआत की, लेकिन बेहतर परिणाम मिलने पर वह अपनी पांच बीघा जमीन पर फसलें उगाना शुरू कर दी।
निर्मला मास्टर ट्रेनर बन कर लोगों को देती है प्रशिक्षण
शुरूआती पहले साल में निर्मला को कुछ लाभ नहीं हुआ, लेकिन बाद में फसल अच्छी आने लगी और अब उन्होंने अपने खेत में उगाई फसलों को बेचना आरंभ किया है। वर्तमान में निर्मला सोयाबीन, गेहूं, गोभी आदि की खेती करती हैं। निर्मला घर संभालने के साथ हीं अपने खेती पर भी पूरा ध्यान देती हैं। यही कारण है कि विभाग ने उनको मास्टर ट्रेनर बना दिया है। अब वह बाड़ीगुमाणू सहित आसपास के गांव के लोगों को खेती में तैयार होने वाली खादों का प्रशिक्षण भी दे रही हैं।
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खेती के जरिए निर्मला कर रही है अच्छी कमाई
निर्मला बताती हैं कि उनके पति नवल किशोर ने उन्हें खेती शुरू करने के लिए प्रोत्साहित किया है। आज आसपास के ही 50 से अधिक किसान इस खेती के साथ जुड़े है। निर्मला बताती हैं कि पहली बार अपनी फसलों को बेचा और इसका अच्छा रिस्पांस आया है। साथ ही इसके जरिए उनका अच्छा लाभ भी हो रही है। उनके अनुसार फसल में रासायनिक खाद न डालने से बीमारी का खतरा बहुत कम है। – Nirmala Devi doing a natural farming and also giving training to farmers as a master trainer.
तीन साल तक रहता है जमीन पर रासायनिक खाद का प्रभाव
जानकारों की मानें तो प्राकृतिक खेती जब भी कोई किसान आरंभ करता है तो उसे पहले दो साल जमीन में हुए रासायनिक खादों के प्रभाव को कम होने में लगते हैं। लगातार जीवामृत, घनजीवामृत सहित अन्य प्राकृतिक खादें डालने से फसल की पैदावार बढ़ती है और तीसरे साल इसका परिणाम दिखने लगता है। निर्मला के खेत में उगाई गई सोयाबीन की किमत 150 रुपये किलो है, जबकि रासायनिक खेती से तैयार फसल की कीमत बाजार में 100 रुपये किलोग्राम है।
प्राकृतिक तौर से उगाई गई फसल सेहत के लिए है फायदेमंद
जानकारों का कहना है कि खेती में रासायनिक खाद का प्रयोग न करने से यह स्वास्थ्य पर कोई प्रभाव नहीं डालता। यही कारण है कि प्राकृतिक तौर पर देसी खाद से तैयार फसल की कीमत और मांग दाेनों ज्यादा रहती है। आतमा परियोजना के निदेशक ब्रह्मदास जसवाल का कहना है कि परियोजना के जरिए किसानों को प्राकृतिक खेती से जोड़ा जा रहा हैं। यह निर्मला का उत्साह ही था कि वह इतना जल्दी मास्टर ट्रेनर बनकर किसानों को प्रशिक्षण दे रही है। – Nirmala Devi doing a natural farming and also giving training to farmers as a master trainer.