हमलोगों ने यह देखा होगा कि जो भी लोग बचपन में अपने माता-पिता के गरीबी या विषम परिस्थितियों के कारण पढ़ाई नहीं कर पाते हैं, वह बाद में अपने अशिक्षा को ध्यान में रखते हुए खुद को किसी भी कामयाबी के रास्ते पर नहीं कर पाते हैं। लेकिन आज हम बात करेंगे एक ऐसी महिला की, जिन्होंने अनपढ़ होने के बावजूद भी अपने मेहनत के बदौलत सफलता हासिल करते हुए खुद को कलाकारी के क्षेत्र में शिखर तक पहुंचाने का काम किया है।
तो आइए जानते हैं उस महिला से जुड़ी सभी जानकारियां :-
कौन है वह महिला?
हम 48 वर्षीय महिला दुर्गा बाई व्याम (Durga Bai Vyom) की बात कर रहे हैं, जिनका जन्म मध्य प्रदेश (Madhya Pradesh) के डिंडोरी जिले के ग्राम बुरबासपुर में हुआ था। वह अपने शादी के बाद ससुराल में रहती है, जो कि डिंडोरी जिले के संतूरी गाँव है। उनके पिता का नाम चमरू सिंह परस्ते है।
दो भाई और तीन बहनो में से एक दुर्गा बाई (Durga Bai Vyom) का जन्म बहुत हीं गरीब परिवार में हुआ था। जब वह 15 साल की थीं, तो उनकी शादी सुभाष व्योम से हो गई। सुभाष खुद मिट्टी और लकड़ी के मूर्तियां बनाने के लिए जाने जाते थे। 1996 में, उनके पति को भोपाल के इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मानव संग्रहालय में लकड़ी से आकृतियां बनाने का काम मिला था और वह पहली बार अपने गांव से बाहर आईं। शुरु से हीं मुर्ति कलाकारी में उनकी खूब रुचि थी।
बता दें कि, मध्य प्रदेश के एक छोटे से गांव में पैदा होने वाली दुर्गाबाई (Durga Bai Vyom) की चित्रकारी की सर्वाधिक आकर्षक विशेषता कथा कहने की उनकी क्षमता है। जब वह छह साल की थीं, तभी से उन्होंने अपनी मां से डिगना की कला सीखी। यह शादी-विवाह और उत्सवों के मौकों पर घरों की दीवारों और फर्शों पर चित्रित की जाने वाली परंपरागत चित्रकारी है।
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बचपन से हीं शुरु की चित्रकारी
दुर्गाबाई (Durga Bai Vyom) ने 6 साल की उम्र में ही चित्रकारी शुरू कर दी थी। साल 1996 में वे भोपाल (Bhopal) आ गईं। यहीं से उनके सपनो को पंख लगा। यहां आकर वह फिर से चित्रकारी करना शुरू कर दीं। उनकी इस प्रतिभा को जनगढ़ सिंह श्याम और आनंद सिंह श्याम जैसे गोंड कलाकारों ने पहचाना और उन्हें गोंड चित्रकला के नए-नए कौशल सिखाए। बेटे के तबियत खराब हो जाने के कारण उन्हें भोपाल में लंबे समय तक रुकना पड़ा।
धीरे धीरे उन्होंने (Durga Bai Vyom) अपनी काबिलियत को पहचाना और यही रहकर कुछ करने का मन बना लिया। फिर वह भारत भवन से जुड़ीं और 1997 में उनकी पेंटिंग पहली बार प्रदर्शित हुई।
झाडू-पोछा भी की
अपना गाँव छोड़ भोपाल पहुंचने के बाद दुर्गा बाई (Durga Bai Vyom) ने भारत भवन से जुड़ने का मन बनाया। वहॉं पर 1997 में उनकी पेंटिंग पहली बार प्रदर्शित हुई। उस समय भोपाल में रह कर खुद का खर्च चला लेना उनके बस की बात नहीं थी। इसके बावजूद भी उन्होंने हिम्मत नहीं हारी तथा उन्होंने अपने तीन बच्चों की देखभाल के लिए दुसरे के घर झाड़ू-पोंछा का काम शुरू कर दिया। इस काम से मिले पैसों से वह खुद के साथ हीं अपने बच्चों को संभालती थी।
कई पुरस्कारों से हो चुकी है समानित
धीरे-धीरे उन्होंने (Durga Bai Vyom) अपने कला से लोगों का दिल जीतना शुरू कर दिया और दुर्गाबाई की कला के चर्चे हर जगह होने लगे। वे अपने शानदार पेंटिंग के लिए जबलपुर में में रानी दुर्गावती राष्ट्रीय सम्मान, मुंबई में विक्रम अवॉर्ड, दिल्ली में बेबी अवॉर्ड और महिला अवॉर्ड जैसे कई पुरस्कारों से सम्मानित हो चुकी हैं। इसके अलावा कई राज्य स्तरीय पुरस्कार भी उनकी कला की शोभा को बढ़ा चुके हैं।
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भीमराव अंबेडकर के जीवन को पेंटिंग के जरिए दर्शाया
दुर्गाबाई (Durga Bai Vyom) ने डॉ. भीमराव अंबेडकर के जीवन को एक किताब में पेंटिंग के जरिए दर्शाया है, जो 11 भाषाओं में पब्लिश भी हुई है। इसके अलावें उन्होंने दिल्ली, मुंबई, चेन्नई जैसे कई महानगरों के अलावा इंग्लैंड और यूएई जैसे देशों में हुए सांस्कृतिक कार्यक्रमों में भी आदिवासी कलाओं से लोगों को परिचित कराया है।
बता दें कि, दुर्गाबाई (Durga Bai Vyom) के चित्र गोंड प्रधान समुदाय के देवकुल पर आधारित हैं। वे लोककथाओं को भी चित्रित करती हैं। इसके लिए वह अपनी दादी की आभारी हैं, जो उन्हें अनेक कहानियां कहती थीं। वह अपने इसी कलाकारी के कारण पुरे देश-भर में प्रसिद्ध है।
कलाकारी के लिए मिला पद्मश्री
आज के समय में केन्द्रीय गृह मंत्रालय ने उन्हें (Durga Bai Vyom) कला के क्षेत्र में पद्मश्री देने की घोषणा की है। यह समान उनके लिए बहुत हीं गर्व की बात है।
लोगो के लिए बनी प्रेरणा
अपने प्रयासों के बदौलत सफलता के शिखर तक पहुंचने तथा कामयाब होने वाली दुर्गा बाई (Durga Bai Vyom) की जीवनी वास्तव में बहुत हीं प्रेरणादायी है। जिस तरह उन्होंने एक काफी गरीब परिवार में जन्म लिया और उसके बाद से उन्होंने अनपढ़ होने के बावजूद भी कलाकारी के क्षेत्र में अपनी रुचि बढ़ाई और धीरे-धीरे खुद के साथ हीं दूसरों के लिए भी सहारा बनी, एक गरीब परिवार में जन्म लेने से पद्मश्री से सम्मानित होने तक की कहानी वास्तव में सभी लोगों के लिए बहुत हीं प्रेरणादायी है।
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