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मिलिए पद्मश्री किसान चाची से जिन्होंने साइकिल से बेचना शुरू किया आचार, आज विदेश तक अच्छी डिमांड

वो समय बीत चुका जब यह समझा जाता था कि लङकियां घर के लिए बनी हैं। उनका कार्य क्षेत्र बस घर तक सीमित है। आज लङकियां अपनी काबिलियत और मेहनत के दम पर ऊंचे से ऊंचा मुकाम हासिल कर रही हैं। वे खुद के साथ परिवार वालों का नाम भी रोशन कर रही हैं।

आज हम आपको एक ऐसे महिला की कहानी बताएंगे। जो गरीबी की तंगी को देखते हुए और घर वालों ने लाख मना करने के बावजूद खेतों में अपनी मेहनत और लगन से काम करती रही और आगे चलकर के आचार का व्यापार शुरु किया। उन्होंने आचार का डिलीवरी साइकिल से करी और आज वो अपनी मेहनत और काबिलियत से अपनी पहचान बनाई तथा अपने परिवार वालों का भी नाम ऊंचा किया।

  • राजकुमारी देवी

राजकुमारी देवी (Rajkumari Devi) बिहार (Bihar) के मुजफ्फरपुर (Muzaffarpur) जिला के आनंदपुर (Anandpur) गांव की रहने वाली हैं। इनकी उम्र 65 वर्ष से ज्यादा है। इनके अंदर काम करने का जुनून इस तरह भरा हुआ है कि राजकुमारी अपनी इस उम्र में भी 20 – 22 वर्ष की लड़की की तरह काम करती हैं। राजकुमारी के पिता एक शिक्षक थे। जिसके कारण राजकुमारी अपने पिता के नक्शे कदम पर चलना चाहती थी।

इनका सपना था कि वे भी अपने पिता की तरह एक शिक्षक बने। परंतु जब इन्होंने दसवीं की परीक्षा पास कर ली तो उसके बाद इनकी शादी कर दी गई। राजकुमारी बताती है कि मेरी कम उम्र में शादी कर देने से मेरी सारी ख्वाहिशें अधूरी रह गई परंतु एक उम्मीद थी कि जब हम ससुराल जाएंगे तब वहां के लोग हमें इस बात को स्वीकार कर के पढ़ाने के लिए प्रोत्साहित करेंगे।

मैने पढ़ने के लिए बहुत बार घर में अपने पति को बोला। जब यह बात मेरी सौतेली सास को पता चली तो उन्होंने मुझे पढ़ने से साफ मना कर दिया। मेरी दो बेटियां भी हो गई। फिर भी लोगों ने पढ़ने से इंकार कर दिया। जब हमने अपनी सौतेली सास को पढ़ने के बारे में बोला तो उन्होंने हमें साफ-साफ इंकार कर दिया और बोले कि तुम अब अपने बेटियों के दहेज के पैसे इकट्ठा करो ना कि उस पैसे को अपने पढ़ाई में बर्बाद करो। सास की इस बात को सुनकर के मेरे सभी सपने चकनाचूर हो गए। मेरे पति ज्यादा पढ़े लिखे नहीं थे जिसकी वजह से घर में पैसों की बहुत किल्लत थी। हमने अपने घर के हालात को देखते हुए कुछ करने का फैसला किया। परंतु लोग बेटियों को घर से बाहर काम करने नहीं भेजना चाहते थे लोग बेटियों को अभिशाप समझते थे।

Padmashree Kisan Chachi Rajkumari Devi
पद्म श्री किसान चाची राजकुमारी देवी
  • अपने बच्चे को बेहतर भविष्य के बारे में सोचा

राजकुमारी कहती हैं कि घर में पैसों की किल्लत होने की वजह से मेरे बच्चे पढ़-लिख नहीं पाएंगे और उनका भविष्य आगे चलकर के खराब हो जाएगा। इन सब चीजों को सोंचते हुए हमने अपने खेतों में काम करने का फैसला कर लिया और फिर हमने खेतों में काम करना शुरु कर दिया। परंतु यहां भी परिवार वालों ने हमें इस काम को करने से मना कर दिया। वे लोग कहते थे कि मेरे घर की इज्जत इस तरह से खेतों में काम नहीं करेगी। परिवार वालों ने बहुत बार हमें खेतों में काम करने से मना करते रहे। मेरे पति भी मुझसे यह कहते थे कि तुम खेतों में काम नहीं करो। हम किसी भी तरह पैसे कमा लेंगे परंतु हमने ठान लिया था कि हम अब पीछे मुड़कर कभी नहीं देखूंगी। मैं अपने बच्चे को बेहतर भविष्य बनाने के बारे में सोंच चुकी थी इसलिए हमने उन लोगों के बातों को अनदेखा कर के अपने कामों को लगातार मेहनत और लगन के साथ करती रही।

  • जैविक तरीके से की खेती

मैं अपने घर की स्थिति को सुधारने के लिए खेतों में काम करने लगी। मुझे खेतों में काम करते देख मेरे पति भी मेरा भरपूर साथ देने लगे। साल 1990 में हमने अपने खेतों में जैविक तरीके से खेती करना शुरु कर दिया। जब हमने अपने खेतों में जैविक तरीके से खेती की और उत्पादन को बढ़ाया तो वहां के किसान मुझे धीरे-धीरे जानने लगे। लोगों के जानने से मेरा सोर्स और भी बड़ा और काम करने में मुझे और भी हिम्मत मिलने लगीं।

जब अपने खेतों में जैविक खेती करने लगी तो मेरे मन में विचार आया कि हम अपने घर से आचार बनाने का बिजनेस करें जिससे मुझे और भी अच्छा मुनाफा हो सकता है। अचार बनाना आजकल के हर महिला को आता है परंतु हमें आचार के बिजनेस करने के बारे में कुछ जानकारी नहीं थी। इसके बारे में हमने काफी विचार विमर्श किया जिस के बाद साल 2002 में विज्ञान केंद्र से फूड प्रोसेसिंग की ट्रेनिंग ली।

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इसके बाद हमने अचार बनाने से लेकर के इसके व्यवसाय के बारे में अच्छे से जाना और फिर हमने छोटे अवसर पर अचार बनाना शुरु कर दिया। जब आचार तैयार हो गया तो फिर हमने इसे बेचने के बारे में सोंचा जिसके बाद मैं अपने इलाकों में बस या टेंपो से अचार बेचने निकल जाया करती थी। जब मैं बस या टेंपो से आचार बेचने जाती थी तो मुझे काफी देर हो जाती थी क्योंकि कभी-कभी बस टेंपो का इंतजार बहुत करना पड़ता था जिससे मेरा काफी समय इंतजार करने में ही बीत जाता था और उस दिन ज्यादा कमाई नहीं हो पाती थी।

पद्म श्री किसान चाची राजकुमारी देवी

इसके बाद मेरे मन में एक आईडिया आया और मैंने साइकिल पर अपना इस आचार को बेचने के बारे में सोचा। जिसके बाद मैंने साइकिल चलाना सीखा। साइकिल सीखने के बाद अब मैं अपने अचार के छोटे-छोटे पैकेट बना करके 30 से 40 किलोमीटर दूर साइकिल से ही चली जाती थी। और लोगों को अपने हाथों से बनाए हुए आचार का टेस्ट करवाती थे जिसे खाकर के लोग मेरे बनाए हुए आचार को काफी पसंद करने लगे और मेरे से आचार खरीदने लगे।

शुरुआत में जब मैं साइकिल चला करके आचार बेचने जाती थी तो देखने वाले लोग मुझे गलत नजरिए से या फिर हीन भावना से देखते थे, परंतु हमने उन लोगों के इस रिजेक्ट को अनदेखा कर के अपने कामों को लगातार करती रही। आज वही लोग मुझे काफी इज्जत देते हैं और लोगों को मेरी काबिलियत और मेहनत का मिसाल देते हैं। आज मेरा आचार का व्यवसाय इस प्रकार फैल गया है कि मेरा बनाया हुआ आचार सिर्फ देशों में ही नहीं बल्कि विदेशों में भी लोग पसंद करते हैं और बड़े चाव के साथ खाते हैं।

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मेरे अकेले इतना सारा काम करने से मेरी तबीयत थोड़ी बहुत खराब होने लगी जिसकी वजह से मैंने कुछ दिनों के लिए काम छोड़ दिया परंतु हमने अपने हौसले को बैठने नहीं दिया और जब मेरी तबीयत थोड़ी बहुत ठीक हुई तो मैं फिर से अपना काम करने लगी। तबीयत खराब होने की वजह से डॉक्टर ने मुझे साइकिल चलाने से मना कर दिया जिसकी वजह से मैं साइकिल उसे आचार बेचने नहीं जाने लगी परंतु घर में बैठे रहने से मेरा मन नहीं लगता था इसलिए बैठे-बैठे हमने दूसरी महिलाओं के साथ अचार बनाने लगी और आज भी हम आचार बनाने का काम करती हूं। खेती करने में मेरा बेटा मुझे काफी मदद करता है और मैं प्रोडक्शन का काम देखती हूं।

  • घर से बाहर निकलने पर कई अवसर मिले

राजकुमारी (Rajkumari) बताती हैं कि जब मैं घर में रहती थी तब मुझे आगे बहुत अंधेरा सा दिखता था परंतु जब मैं घर से बाहर निकली तो मुझे काम करने के बहुत अवसर मिले। मुझे बाहर निकलने से काफी लोगों से बात करने का मौका मिला जिससे हम अपने काम को और आगे बढ़ा सकें। मैं कई महिला समूह से भी जुड़ कर मेहनत करती गई जिससे मुझे आगे के रास्ते खुलते चले गए। इसके साथ-साथ मैं कृषि विज्ञान केंद्र में आयोजित होने वाले मिलन में भी हमेशा भाग लेती थी। वहां मुझे काफी चीजों के बारे में जानकारियां प्राप्त होती थी। जब मैं अपना काम शुरू की थी तो हमने कुछ भी सोच-समझकर नहीं किया था। मुझे काम करते समय जैसे-जैसे अवसर मिलते गए मैं काम करती गई और आगे बढ़ती गई।

  • मिला किसान चाची का नाम

राजकुमारी बताती हैं कि हम अपने काम को मेहनत और लगन के साथ करते गए जिसकी वजह से मुझे साल 2007 में “किसान श्री” (Kishan Shree) से सम्मानित किया गया। जब मुझे किसान श्री से सम्मानित किया गया तो लोगों ने मुझे “किसान चाची” (Kishan Chachi)के नाम से मशहूर कर दिया और लोगों ने मुझे बड़े प्यार से एक और नाम दे दिया। साल 2015 और 2016 में मैं सोनी tv के मशहूर कार्यक्रम केबीसी मेरी शामिल हुई। आज हम आचार और मुरब्बे के लिए काफी मशहूर हो गई हूं।

  • कई पुरस्कार से मिला सम्मान

राजकुमारी बताती हैं कि मेरे इस काम को करते देख लोगों ने मुझे काफी प्यार दिया है जिसकी वजह से मुझे कई पुरस्कार से सम्मानित भी किया गया है। साल 2003 में जब कृषि मेला लगा हुआ था तब उसमें श्री लालू प्रसाद यादव ने मुझे पुरस्कार से सम्मानित किया था। इसके बाद साल 2006 में किसान श्री से सम्मानित किया गया। फिर मुझे 11 मार्च 2019 को माननीय राष्ट्रपति रामनाथ गोविंद जी के द्वारा “पद्मश्री” सम्मान से सम्मानित किया गया।

  • संदेश

राजकुमारी कहती हैं कि मुझे हर महिलाओं को यही संदेश देना है कि वह आत्मनिर्भर बने और अपना काम खुद कर के उसे खुद ही प्रोडक्शन करें जिससे उन्हें अच्छी कमाई हो। आज मैं अपने इस उम्र में भी अन्य महिलाओं को काम करने के बारे में जागरूक कर रही हूं। उन्हें मशरुम की खेती करने और उसके प्रोडक्ट्स को बनाने में जागरूक कर रही हूं। इसके साथ-साथ महिलाओं को यह भी बता रही हूं कि अपने खेतों में सिर्फ चावल की फसल उपजाने से कुछ नहीं होता। महिलाओं को उससे पापड़ और पोहा बनाना भी आना चाहिए, जिससे वह आगे चलकर अच्छे पैसे कमा सकें। आज हमारे गांव की सभी महिलाएं एक समूह के साथ मिलकर काम कर रही हैं और आत्मनिर्भर बनने की लगातार कोशिश कर रही हैं।

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  • प्रेरणा

राजकुमारी देवी से हर महिलाओं को यह प्रेरणा मिलती है कि सभी महिलाओं के अंदर कुछ न कुछ अपना एक हुनर जरुर होता है। महिलाएं अपने उस हुनर का उपयोग करके अपने आप को आत्मनिर्भर बना सकते हैं और उससे एक अच्छा भविष्य बन सकता है। आज राजकुमारी खेती से जुड़ी कई नई तकनीक के बारे में जानकारी इकट्ठा की और इस जानकारी को अपने आसपास के महिलाओं को भी बताया।

आजकल के पुरुष खेतों में काम करते हैं और खेतों से उपजे हुए अनाज को महिलाएं सुरक्षित करती हैं जिससे महिलाओं को इनके मेहनत का मुआवजा नहीं मिल पाता है। मैंने अपने आसपास के और हम से जुड़ी हर महिला को इसके बारे में समझाया और बताया कि आप लोग अपने अंदर के हुनर को निकालें और उसे कुछ प्रोडक्ट बनाकर की बेचें। इससे आपके पास आमदनी का जरिया भी बनेगा और आप लोग आत्मनिर्भर बन जाएंगे।

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