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पुराने टायर और इंडस्ट्रियल वेस्ट से बनाते हैं होम डेकोरेशन आइटम्स, इस कार्य से सलाना होती है एक करोड़ तक की कमाई

एक साधारण परिवार से ताल्लुक रखने वाला व्यक्ति भी अपनी मेहनत से अपनी पहचान बना सकता है।

महाराष्ट्र (Maharashtra) पुणे के रहने वाले प्रदीप जाधव (Pradeep Jadhav) ने भी कुछ ऐसा ही किया है। उनके पिता केवल खेती के जरिए पूरे परिवार का खर्च चलाते थे। प्रदीप ने 10वीं के बाद ही ITI की पढ़ाई शुरू कर दिया था। उसके बाद तीन साल का डिप्लोमा कोर्स पूरा किया और उसके बाद वायर बनाने वाली एक कंपनी जॉइन कर ली।

हानि होने के वजह से कारोबार बंद करना पड़ा

प्रदीप ने साल 2016 में इंजीनियरिंग की डिग्री हासिल की, जिससे उन्हें एक मल्टीनेशनल कंपनी में नौकरी मिल गई। कुछ दिन बाद उन्होंने साल 2018 में इंडस्ट्रियल वेस्ट को अपसाइकल करके फर्नीचर तैयार करने का बिजनेस शुरू किया। नौकरी के दौरान उन्हें पता चल गया कि उनसे 5 से 9 की नौकरी नहीं होगी।

नौकरी छोड़कर प्रदीप ने एक शॉप खोल लिया, जिसमें ड्रिप इरिगेशन वाले पाइप और मशीन बेचने का काम किया परंतु मुनाफा नहीं होने के वजह यह कारोबार बंद करना पड़ा।

Pradeep Jadhav from Pune Maharashtra is making furniture from waste items

यूट्यूब के एक वीडियो से मिली आईडिया

अपना कारोबार बंद कर प्रदीप जाधव (Pradeep Jadhav) मेंटेनेंस इंजीनियर की नौकरी करने लगे। प्रदीप बताते हैं कि इस दौरान वह चीन गए जहां से उन्हें बहुत कुछ सीखने का मौका मिला। इस दौरान वह हमेशा नए-नए आइडिया के बारे में सोचते रहते थे। प्रदीप बताते हैं कि साल 2018 में उन्होंने यूट्यूब पर एक वीडियो देखा, जिसमें पुराने और बेकार टायरों की मदद से कुर्सी बनाई जा रही थी। प्रदीप को यह आईडिया बहुत अच्छा लगा। यह उनके लिए यह एक नई चीज बन गई। उन्होंने इंटरनेट के जरिए इसकी पूरी जानकारी इकठ्ठा की। उन्हें इसमें विकल्प नजर आया क्योंकि इसका रॉ मटेरियल जुटाना उनके लिए बहुत आसान था।

नौकरी के साथ शुरू किया व्यापार

प्रदीप ने आइडिया को लेकर अपने दोस्तों से बात किया, परंतु सबने यह कह कर मना कर दिया कि इसमें कोई स्कोप नहीं है। उसके बाद प्रदीप को अपने घर वालों से सपोर्ट मिला, परंतु वह नहीं चाहते थे कि प्रदीप अच्छी नौकरी छोड़कर रिस्क लें। प्रदीप ने परिवार की आर्थिक स्थिति देखते हुए नौकरी के साथ ही साल 2018 में अपने काम की शुरुआत की। वह ऑफिस से वापस लौटने के बाद देर रात तक फर्नीचर तैयार करने का काम करते रहते थे। प्रदीप बताते हैं कि अपसाइकल (Upcycle) करने के लिए जरूरी मशीनें, ऑफिस तथा बैनर-पोस्टर तैयार करने में करीब 2 लाख की लागत लगी।

सोशल मीडिया के जरिए बनाई पहचान

शुरुआत के तीन महीने में प्रदीप को कुछ खास लाभ नहीं हुआ तो उन्होंने सोशल मीडिया पर Gigantiques नाम से एक पेज बनाया और उस पर अपने प्रोडक्ट की फोटो पोस्ट करने लगे। वह अपने हर प्रोडक्ट के बारे में विस्तार से लिखते थे। साथ ही वह यह भी बताते थे कि यह फर्नीचर किस प्रोडक्ट को अपसाइकल करके बनाया गया है और इसकी कीमत कितनी है। उसके बाद कई लोगों ने उन्हें फर्नीचर का ऑर्डर दिया। इसकी शुरूआत पुणे के एक कैफे वाले ने की।

अबतक 500 से ज्यादा प्रोजेक्ट पर कर चुके हैं काम

प्रदीप उस कैफे के लिए टेबल और चेयर बनाने के साथ ही कैफे को डिजाइन भी किया, जो ग्राहक कैफे में आता था वह उसकी डिजाइन की खूब तारीफ करता था। धीरे-धीरे प्रदीप के पास ऑफिस और कैफे की डिजाइनिंग और फर्नीचर के ऑर्डर आने लगे। प्रदीप जब इसके जरिए अच्छी कमाई करने लगे तो साल 2019 में नौकरी को छोड़ दिया और अपना पूरा समय अपने बिजनेस को देने लगे।

प्रदीप जाधव (Pradeep Jadhav) अब देशभर के कई बड़ी कंपनियों और बिजनेस मैन के साथ काम कर रहे हैं। प्रदीप बताते हैं कि अब तक वह 500 से ज्यादा प्रोजेक्ट पर काम कर चुके हैं।

पिछले साल किया एक करोड़ रुपए का टर्नओवर

प्रदीप अबतक अन्य 15 लोग को काम दे चुके हैं। लॉकडाउन के वजह से कारोबार प्रभावित होने के बावजूद भी पिछले साल प्रदीप ने एक करोड़ रुपए का टर्नओवर किया। वह हर एक वेस्ट को अपसाइकल करते हैं, जिसके लिए वह देश के अलग-अलग हिस्सों से वेस्ट इकट्ठा करते हैं। प्रदीप ने अपनी दुकान में वेल्डिंग से लेकर अपसाइकल करने वाली हर मशीन लगा रखी है। जिससे वह नए-नए प्रोडक्ट तैयार करते हैं। प्रदीप बेकार और पुराने टायरों से शुरुआत कर, आज इंडस्ट्रियल बैरल, पुरानी और बेकार कार, ऑटो रिक्शा, बाइक, साइकिल, पुरानी लकड़ी आदि को अपसाइकल करके मेज, कुर्सी, सोफा, वॉश बेसिन, फ़ूड कार्ट, बैरल वाइन स्टोरेज, हैंगिंग लाइट्स जैसी चीजें बना रहे हैं।

छोटी कोशिश से कोई भी कर सकता है शुरूआत

प्रदीप होम डेकोरेशन और कैफे की सजावट के लिए भी काम करते हैं। उन्होंने अब तक एक लाख से ज्यादा बैरल, 50 हजार से ज्यादा टायरों और पांच हजार से ज्यादा वाहनों को अपसाइकल (Upcycle) किया है। प्रदीप जाधव (Pradeep Jadhav) ने इसके लिए कोई ट्रेनिंग नहीं ली है। उनका मानना है कि कोई भी कोशिश कर यह काम कर सकता है। हम लोग भी काम करते-करते ही सीखते गए हैं। इसके लिए इंटरनेट से मदद लेकर छोटी-छोटी चीजों से शुरूआत कर सकते हैं।

बिहार के ग्रामीण परिवेश से निकलकर शहर की भागदौड़ के साथ तालमेल बनाने के साथ ही प्रियंका सकारात्मक पत्रकारिता में अपनी हाथ आजमा रही हैं। ह्यूमन स्टोरीज़, पर्यावरण, शिक्षा जैसे अनेकों मुद्दों पर लेख के माध्यम से प्रियंका अपने विचार प्रकट करती हैं !

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