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14 वर्ष में हो गई थी शादी, पति के प्रतारण के खिलाफ 8 साल तक लड़ने पर मिला न्याय

कम उम्र में शादी मतलब जिंदगी की बर्बादी। बाल विवाह हमारे समाज के प्रमुख कुरीतियों में से एक है।शिक्षा के स्तर में जैसे-जैसे बढ़ोतरी हुई है उसी अनुपात में बाल विवाह का प्रचलन कम हुआ है। कम उम्र में शादी का मतलब बच्चे भी जल्दी होंगे। इसका परिणाम यह होगा कि बच्चा होने पर उसकी देखरेख भी सही सलामत से नहीं हो पाएगी। इससे जच्चा-बच्चा दोनों के विकास पर फर्क पड़ेगा। जान पर खतरा भी बन सकता है। इस तरह के मामले शिक्षा का अभाव होने के चलते अधिक होते हैं। वैसे कुछ साल से बाल विवाह के मामले प्रकाश में नहीं आए हैं। बाल विवाह पर नजर रखने के लिए प्रोबेशन विभाग की ओर से सभी राज्य के जिलों में एक समिति बनी होती हैं। आज हम बात करेंगे एक ऐसी लड़की की, जिसकी शादी कम उम्र में हो गई थी और उसे शराबी पति मिल गया था। आखिरकार उन्होंने इसके खिलाफ आवाज उठाई और उन्हें कामयाबी हासिल हुई।

  Chhota Devi fights Domestic Violence



‌ कौन है वह लड़की :-

‌आज हम बात करेंगे राजस्थान (Rajasthan) के जोधपुर (Jodhpur)की रहने वाली छोटा देवी (Chhota devi) के बारे में जिनकी शादी आज से लगभग 8 वर्ष पूर्व 23 मई 2013 को हुई थी। शादी के समय वह मात्र 14 साल की थी। माता-पिता के द्वारा अपनी भीड़ उतारने के लिए उनकी शादी 14 साल की उम्र में ही खेजर्ला गांव (Khojarla) में रहने वाले महेंद्र सिहाग (Mahendra Sihag) से कर दी गई। दुर्भाग्यवश उसे शराबी पति मिला जो उसके उम्र से 9 साल बड़ा था। शादी के बाद छोटा देवी (Chhota Devi) अपने मायके रही और वह बारहवीं तक की पढ़ाई की। पढ़ाई के समय में छोटा के पति “महेंद्र सिहाग” (Mahendra Sihag) अक्सर छोटा के स्कूल का चक्कर लगाता था तथा उसे परेशान करते रहता था। 12वीं कक्षा की पढ़ाई पूरी करने के बाद “छोटा देवी” (Chhota Devi) की उम्र लगभग 17 साल हो गई थी। 12वीं पूरी करने के बाद “छोटा देवी” को आगे की पढ़ाई करने का इरादा था। लेकिन उनके ससुराल वालों के दबाव में उनके मायके वालों ने उन्हें जबरन ससुराल भेज दिया। अपने ससुराल में छोटा अपने शराबी पति “महेंद्र सिहाग” के साथ रहना थोड़ा भी पसंद नहीं करती थी। “महेंद्र सिहाग” उसे प्रताड़ित करता था। “छोटा देवी” ने अपने फैसले के बारे में जब अपने मायके वाले को बताया, तब उसके पति के द्वारा उसे कुछ ज्यादा हीं प्रताड़ित किया जाने लगा तथा उसके ससुराल वालों के द्वारा उससे 20 से 25 लाख रुपए दहेज के रूप में मांगा जाने लगा। पुराने दिनों को याद करते हुए “छोटा देवी” बताती है कि “मुझे बहुत धमकियां दी गईं। “महेंद्र” रोज-रोज धमकी देता था, कहता था कि पंचायत में लेकर जाएगा और पैसे भरने पड़ेंगे। मेरे घरवालों पर दबाव डाला गया, जिसके चलते उन्होंने मुझसे बात करना बंद कर दिया।” अपने आप बीती को याद करते हुए “छोटा देवी” बताती है कि एक समय ऐसा आया था कि, मैं डिप्रेशन में होते हुए आत्महत्या करने की मन बना चुकी थी।

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‌समाज की कुरीतियों के खिलाफ हिम्मत नहीं हारी :-

‌ साल 2018 में, “छोटा देवी” ने अपना मंजू उठाया तथा उन्होंने यह तय किया कि, वह अपने पति और अपने ससुराल वालों के खिलाफ अब न्याय की लड़ाई लड़ेंगी। उनके मायके वाले ने भी उनका साथ छोड़ दिया तब उन्होंने एनजीओ (N.G.O) से मदद मांगी लेकिन वहां भी कोई मदद नहीं मिल पाया। “छोटा देवी” अपने मायके के गांव सिलारी (Silari) में रहती थी, जहां से उनको निकाल दिया गया। इसके बाद से वह जोधपुर (Jodhpur) शहर चली गई जहां उनकी मुलाकात एक महिला से हुई और “छोटा देवी” ने उन्हें अपनी सारी आपबीती सुनाई। यह सुनकर महिला बहुत भावुक हुई और उसे रहने के लिए एक छोटा सा कमरा मुफ्त में दी। वहीं रहकर “छोटा देवी” पढ़ाई करती थी तथा छोटा-मोटा नौकरी करके अपना केस भी लगा करती थी। सरकारी नौकरी की भी तैयारी करती थी। इसी दौरान उनकी मुलाकात ‘जॉय ऑफ लिविंग’ नाम का NGO चलाने वाले एडवोकेट “राजेंद्र सोनी” (Advocate Rajendra Soni) और “रूपवती देवड़ा” (Rupvati Devda) से हुई। दोनों ने “छोटा देवी” का खूब साथ निभाया। उन्होंने “छोटा देवी” को मोटिवेट किया। “एडवोकेट राजेंद्र सोनी” (Advocate Rajendra Soni) ने तो मुफ्त में केस भी लड़ा। इन सबके बीच “छोटा देवी” ने “जोधपुर” के कार्निवल सिनेमा हॉल में टिकट काउंटर पर भी काम किया। यहां उन्हें महीने के लगभग साढ़े आठ हजार रुपये मिल जाते थे। हालांकि, कोविड लॉकडाउन के बाद उनकी ये छोटी-मोटी नौकरी भी नहीं रही। इस बीच “महेंद्र” के परिवार वालों ने कोर्ट से कहा कि, छोटा से “महेंद्र” की शादी सन 2013 में नहीं सन 2016 में हुई थी। तब “छोटा देवी” ने कोर्ट में अपने हाईस्कूल का सर्टिफिकेट लगाकर यह साबित कर दिया कि, वह 2016 में भी नाबालिक ही थी। इसके बाद “छोटा देवी” के ससुराल वालों के पास कोई जवाब नहीं बचा तथा कोर्ट ने बाल विवाह एक्ट के सेक्सन 3 (1) के तहत छोटा के हक में फैसला सुनाया और “छोटा देवी” केस जीत गई। इस पूरे मामले के दौरान “एडवोकेट राजेंद्र सोनी” और “रूपवती देवी” छोटा देवी के साथ मजबूती से खड़े रहे।‌ “छोटा देवी” पुलिस सेवा में अपना योगदान देना चाहती है जिसके लिए वह अभी भी तैयारी में लगी हुई है और कई कंपटीशन का एग्जाम दे चुकी है। उन्होंने पुलिस कांस्टेबल का एग्जाम दिया लेकिन वो क्वालीफाई करते करते रह गई। फ़िलहाल “छोटा देवी” के पास इनकम का कोई स्त्रोत नहीं है। वह आगे की पढ़ाई करना चाहती है हालांकि, बिना पैसों के ये सब करना मुश्किल होगा। अपने जिंदगी की एक लड़ाई जीत चुकी छोटा देवी आगे की भी लड़ाई जीतने की पूरी उम्मीद रखती है।



‌जानिए क्या है बाल विवाह कानून :-

‌बाल विवाह पर रोक संबंधी कानून सर्वप्रथम सन् 1929 में पारित किया गया था। बाद में सन् 1949, 1978 और 2006 में इसमें संशोधन किए गए। इस समय विवाह की न्यूनतम आयु बालिकाओं के लिए 18 वर्ष और बालकों के लिए 21 वर्ष निर्धारित की गई है।

‌भारत में बाल विवाह चिंता का विषय है। बाल विवाह किसी बच्चे को अच्छे स्वास्थ्य, पोषण और शिक्षा के अधिकार से वंचित करता है। ऐसा माना जाता है कि कम उम्र में विवाह के कारण लड़कियों को हिंसा, दुर्व्यवहार और उत्पीड़न का अधिक सामना करना पड़ता है। कम उम्र में विवाह का लड़के और लड़कियों दोनों पर शारीरिक, बौद्धिक, मनोवैज्ञानिक और भावनात्मक प्रभाव पड़ता है, शिक्षा के अवसर कम हो जाते हैं और व्यक्तित्व का विकास सही ढंग से नही हो पाता है। हांलाकि बाल विवाह से लड़के भी प्रभावित होते हैं। लेकिन यह एक ऐसा मुद्दा है जिससे लड़कियां बड़ी संख्या में प्रभावित होती हैं। 18-29 (46 प्रतिशत) आयु वर्ग में करीब आधी महिलाएं और 21-29 (27 प्रतिशत) पुरुषों में एक चौथाई से ज्यादा का विवाह कानूनी तौर पर तय न्यूनतम् आयु तक पहुंचने से पहले ही विवाह हो जाता है। माना जाता है कि, कम उम्र के विवाह के मुख्य कारणो में सांस्कृतिक चलन, सामाजिक परम्पराएं और आर्थिक दबाव गरीबी और असमानता है।



‌केन्द्र सरकार ने 1929 के बाल विवाह निषेध अधिनियम को निरस्त करके और उसके स्थान पर 2006 में अधिक प्रगतिशील बाल विवाह निषेध अधिनियम लाकर हाल के वर्षों में इस प्रथा को रोकने की दिशा में काम किया है। इसके अंतर्गत उन लोगों के खिलाफ कठोर उपाय किये गये हैं, जो बाल विवाह की इजाजत देते हैं और उसे बढ़ावा देते हैं। इस अधिनियम के अंतर्गत 21 वर्ष से कम आयु के पुरुष और 18 वर्ष से कम आयु की महिला के विवाह को बाल-विवाह के रुप में परिभाषित किया गया है। यह कानून नवम्बर 2007 में प्रभावी हुआ। राज्यों/संघ राज्य क्षेत्रों द्वारा प्रदान की गई सूचना के अनुसार, अब तक 24 संघ राज्य क्षेत्रो/राज्यों ने नियम बनाये हैं और 20 संघ राज्य क्षेत्रों/राज्यों ने बाल-विवाह निषेध अधिकारियों की नियुक्ति की है। केन्द्र सरकार लगातार राज्य सरकारों से बाल-विवाह निषेध अधिकारियों कि नियुक्ति करने की बात कहती रहती है।

‌बच्चों के लिए राष्ट्रीय कार्य योजना 2005 में बाल-विवाह को समाप्त करने का लक्ष्य शामिल है। लड़कियों सहित बच्चों के संरक्षण के लिए भारत द्वारा कि गई प्रमुख पहलों में बच्चों के अधिकारों के संरक्षण के लिए वर्ष 2007 में राष्ट्रीय आयोग कि स्थापना करना शामिल है ताकि बच्चों के अधिकारों को सही तरीके से और उनसे जुड़े कानून और कार्यक्रम का प्रभावी तौर पर लागू किये जा सकें।

निधि बिहार की रहने वाली हैं, जो अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद अभी बतौर शिक्षिका काम करती हैं। शिक्षा के क्षेत्र में कार्य करने के साथ ही निधि को लिखने का शौक है, और वह समाजिक मुद्दों पर अपनी विचार लिखती हैं।

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