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हर रोज 18KM नाव चलाकर ड्यूटी करने जाती है यह आंगनबाड़ी कार्यकर्ता, अनेकों महिलाओं की बचा चुकी हैं जान

सफल और महान व्यक्ति वह नहीं जो अपनी खुशी में खुश रहे और दूसरों से मतलब ना रखे। अगर हम यह देखें तो सरकारी स्कूल, कार्यालय या फिर हॉस्पिटल की क्या दशा है यह सभी जानते हैं। कई व्यक्ति किसी भी क्षेत्र में जीत हासिल करने से पहले जनता की भलाई या उन पर प्यार दिखाते हैं लेकिन अगर वह अपने मंसूबों में कामयाब हुए तो किसी को देखने तक नहीं आते।

अगर बात आंगनबाड़ी की हो तो इस बात को सभी जानते हैं कि यहां बच्चों और गर्भवती महिलाओं के लिए कितने सारे पौष्टिक आहार आते हैं। लेकिन जो भी कमर्चारी यहां कार्य करते हैं वह इन सब चीजों को बेचकर पैसे ऐंठते हैं ना कि इसका सदुपयोग करते हैं। लेकिन इस दुनिया में ऐसे बहुत से व्यक्ति हैं जो लोगों की तकलीफ को समझकर उनके हक का चीज उन्हें देते हैं।

आज हम आपको एक आंगनबाड़ी कार्यकर्ता के विषय मे बताएंगे जो इस कोरोना काल में नांव के सहारे नदी को पार कर बच्चों और गर्भवती महिलाओं के लिए जरूरत की सारी चीजें पंहुचाती हैं। तो आइए जानते हैं इस कर्मनिष्ठा की महिला की कहानी।

Relu vasve Anganbadi worker

रेलु वासवे

एक आंगनवाड़ी कार्यकर्ता निःस्वार्थ भाव से लोगों की मदद कर रही हैं। 27 वर्षीय रेलू वासवे (Relu Vasave) ने अपने पूरे जीवन में अपने गांव में नर्मदा नदी का प्रवाह देखा है। जब कोरोनो वायरस के कहर के डर ने आदिवासियों के समूह के लिए उनके भोजन और चिकित्सा जांच के लिए नाव को आंगनवाड़ी में आने से रोक दिया, तो वह उनके पास जाने का फैसला की ताकि वह उनका अधिकार उन्हें दे सकें।

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नाव से की मदद

चनके यहां सड़क की पहुँच खराब होने से सभी को बहुत दिक्कतों का सामना करना पड़ता है। लोगों के पास पहुंचने का एकमात्र मार्ग नाव से हीं सम्पन्न होता है। एक रेलू हैं जिन्हें इन सभी बात का कोई फर्क नहीं पड़ा। इस महिला ने एक स्थानीय मछुआरे से छोटी नावें उधार लीं जिनमें से हैलेट्स, अलीगट और दादर की यात्रा की। उन्होंने अपने शौक के लिए यह यात्रा नहीं किया बल्कि परोपकार के लिए किया ताकि 25 नवजात और कुपोषित बच्चों के साथ 7 गर्भवती महिलाएं उचित पोषण से न हारें। अप्रैल के बाद से वह आदिवासियों की जांच के लिए सप्ताह में पांच दिन नाव से उनके यहां जाती हैं।

अपने काम पर हमेशा खड़ी रहीं हैं

महाराष्ट्र (Maharastra) के नंदुरबार (Nandurbar) जिले के सुदूरवर्ती आदिवासी गाँव चिमलखाड़ी (Chimalkhadi) में आंगनवाड़ी है। जिसमें एक महिला रेलू का काम छह साल से कम उम्र के बच्चों और गर्भवती महिलाओं के स्वास्थ्य और विकास पर नजर रखना है। वह उनके वजन की जांच करती हैं और उन्हें सरकार द्वारा प्रदान की जाने वाली पोषण संबंधी खुराक देती हैं।

दिन जल्दी शुरू होता है

रेलू का काम जल्दी शुरू होता है। वह सुबह 7.30 बजे आंगनवाड़ी पहुंचती हैं और दोपहर तक वहां काम करती हैं। दोपहर के भोजन के एक घंटे बाद वह अपनी नाव से बस्तियों में जाती हैं और देर शाम को हीं लौटती हैं। ज्यादातर बार वह भोजन की खुराक और बच्चे के वजन वाले उपकरणों के साथ अकेली हीं जाती हैं। अवसरों पर उनके रिश्तेदार संगीता जो आंगनवाड़ी में भी काम करती हैं उसका साथ भी देती हैं। नाव की सवारी के बाद रेलू को हैमलेट्स तक पहुंचने के लिए पहाड़ी इलाके को ट्रेक करना पड़ता है।

उन्होंने यह बताया कि हर दिन इस कार्य को पंक्तिबद्ध करना आसान नहीं है। जब तक वह शाम को घर वापस नहीं आतीं तब तक उनको यात्रा करने से हाथ में दर्द रहता है। लेकिन इससे उन्हें कोई चिंता नहीं है। उनके लिए यह महत्वपूर्ण है कि बच्चे और उम्मीद करने वाली माताएं पौष्टिक भोजन खाएं।

जिस तरह रेलु महिलाओं और नवजात बच्चों की मदद निःस्वार्थ भाव से कर रही हैं वह सराहनीय है। The Logically रेलु वासवे जी को सलाम करता है और उम्मीद करता है कि लोगों को इनसे जरूर प्रेरणा मिलेगी।

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