हर कामयाब व्यक्ति के पीछे बहुत सारी कहानियां छिपी होती है। ऐसे ही एक महिला की कहानी है, जिनका नाम आरती राना है। आरती राना की कहानी सुनकर अपको यकीन हो जायेगा कि जिस व्यक्ति को कुछ करना होता है और मन में सच्ची लगन होती है, उनकी मदद भगवान भी किसी न किसी रूप में करने आ ही जाते हैं।
आइए जानते हैं उनकी सफलताओं के बारे में
आरती राना (Arti Rana) एक सामान्य परिवार से ताल्लुक रखती हैं। आरती को अपना और अपने परिवार का पेट भरने के लिए रोज तालाब से मछलियां पकड़ने जाना पड़ता था। वहीं रोटी बनाने के लिए जंगल से लकड़ियां लाने जाना पड़ता था। इतने मुश्किलों का सामना करने के बाद आज आरती न केवल अपना ही नहीं बल्कि पूरे थारू समुदाय की 1200 से ज़्यादा औरतों को हैंडीक्राफ्ट उत्पाद बनाने का मौका देकर उनके भविष्य को सुधार रही हैं।
शाम के समय जब आरती गेहूं की कटाई करके घर वापस आती हैं और दरवाजे के सहारे खड़ी होकर बताती हैं कि पहले हम दिनभर जंगल में मछली पकड़ते थे और लकड़ियां बिनते थे, ताकि शाम का भोजन बना सकें। वहीं आज का समय है, जहां अनेकों लोग हमारे घर का पता पूछकर हमसे मिलने आते हैं।
आरती का परिचय
आरती राना (Arti Rana) जिनकी उम्र 34 वर्ष है। आरती यूपी के सबसे बड़े ज़िले लखीमपुर खीरी ज़िला मुख्यालय से लगभग 100 किलोमीटर दूर पलिया ब्लॉक के गोबरौला गांव की रहने वाली हैं। आरती का गांव थारूओं के 46वें गांवों में से एक है, जो पलिया ब्लॉक के तराई क्षेत्र में नेपाल से नजदीक थारू समुदाय के 46 गांव है। आरती ने अब तक अपने थारू समुदाय की लगभग 1200 से ज्यादा औरतों को रोजगार दे चुकी हैं। वहीं वर्ष 2016 में रानी लक्ष्मीबाई जैसे प्रतिष्ठित अवॉर्ड से भी उन्हें समानित किया गया है। इतना ही नहीं इनके यहां का बना हैंडीक्राफ्ट उत्पाद कई देशों की बड़े-बड़े शोरूम में बिकता है।
आरती के घर के बाहर की दीवार पर बड़े अक्षरों में पेंट किया गया है, थारू हथकरघा घरेलू उद्योग समूह गोबरौला सहयोग विश्व प्रकृति निधि भारत एवं टाइगर रिजर्व। आरती बताती हैं कि पहले हमारे यहां एक ही लूम (हैंडलूम) लगा था क्योंकि हमारे पास पैसों की कमी कमी थी। बाहर से जो भी घूमने आते और जिन्हें पता चलता कि मैं हैंडीक्राफ्ट बनाती हूं वह मेरे पास सामान खरीदने आते थे।
आरती ने बताया कि वर्ष 2008 में दुधवा नेशनल पार्क में डब्ल्यूडब्ल्यूएफ (WWF) की एक टीम भ्रमण करने आई थी। उस वक्त बरसात हो रही थी। उन्होंने बरसात की पानी को हमारे घर में टपकते देखा। उस वक्त हमारा एक ही लूम था। उन्होंने मुझसे पूछा कि हम आपकी क्या सहायता कर सकते हैं? मगर मैं कुछ बोल नहीं पाई।
आरती ने उन्हें जुट से बने कई तरह के हैंडक्राफ्ट को दिखाया। जिसके बाद डब्ल्यूडब्ल्यूएफ (विश्व प्रकृति निधि भारत) वालों ने हमारी सहायता की। उन्होंने हमारे घर में ही एक टीन सेट डलवाया और 5 लूम लगवाई जिससे हम जितना हो सके चीजों को बना सकते हैं।
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आरती राना से लगभग 10 सालों से ट्राइब्स इंडिया खरीद रहा सामान
क्राइस्ट इंडिया एक ऐसा प्लेटफार्म है, जो जनजातीय कारीगरों और उनके उत्पादों को वैश्विक की मार्केट प्लेटफॉर्म पर लाने का काम करता है, जिससे दलालों का खात्मा हो सके और जनजातियों कारीगरों को सीधा लाभ मिल सके।
अल्ताफ अहमद अंसारी जो देहरानून में रहने वाले ट्राइफेड – ट्राइब्स इंडिया के रीजनल मैनेजर है। उन्होंने बताया कि आरती राना बहुत अच्छा काम कर रही हैं। उनसे पिछले 10 सालों से हमारा सहयोग (COLLABORATION) है। इतना ही नहीं उनकी महिलाओं द्वारा बनाया गया सामान हम सीधे खरीदते हैं, जो देश के लगभग हर राज्य में जाता है जहां ट्राइब्स इंडिया का शोरूम बना है। अंसारी से जब पूछा गया कि आप साल में कितने रुपए तक का सामान खरीदते हैं? उन्होंने बताया कि ऐसा कोई फिक्स अमाउंट नहीं है, बल्कि जितनी मांग होती है उसके अनुसार सामान खरीदते हैं।
आरती जुट से कई तरह के समान बनाती हैं, जैसे सैंडल और बैग दिखाते हुए उन्होंने बताया कि हमारे पास ट्राइब्स इंडिया की इतनी मांग आती है कि हम उतना सामान ही कई बार नहीं बना पाते हैं। उन्होंने आमदनी के बारे में बताया कि कभी मेरी आमदनी महीने की ₹1,00000 भी हो जाती हैं, तो कई बार ये 10000 से ₹15000 तक ही रह जाति है।
CM योगी आदित्यनाथ ने भी किया सम्मानित
यूपी राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन के अंतर्गत पलिया के ब्लॉक मिशन मैनेजर श्रीदेव सक्सेना ने ‘गांव कनेक्शन’ को फोन पर बताया कि जो औरते अंगूठा नहीं लगा पा रही थी, वह आज अधिकारियों से बात करती हैं। यहां महिलाएं स्वयं सहायता समूह में प्रत्येक महीने 100 रुपए जमा करती हैं। इस समूह में लगभग 10 से 15 महिलाएं शामिल होती हैं। वही आरती राना को अपनी कार्यों के लिए राज्य स्तर पर दो बार सम्मानित किया जा चुका है। आरती को अपने कामों के प्रति जागरूक देखकर यूपी सरकार ने भी 8 मार्च को उन्हें लखनऊ में ‘मिशन शक्ति अभियान’ की ओर से मुख्यमंत्री ने सम्मानित किया था। थारू महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने के लिए साल 2016 में उन्हें तत्कालीन मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने भी रानी लक्ष्मीबाई पुरस्कार से सम्मानित किया था।
यूपी राष्ट्रीय आजीविका ग्रामीण मिशन ने बनवाए स्वयं सहायता समूह
साल 2015 में आरती राना ने उत्तर प्रदेश राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन के साथ मिलकर थारू महिलाओं को स्वयं सहायता समूह से जोड़ रही हैं। अब तक आरती ने 350 स्वयं सहायता समूह बना चूंकि हैं, जिसमें ये 3600 से ज़्यादा महिलाओं को एक साथ करके थारू जनजाति को राष्ट्रीय पहचान देने का काम कर रही हैं।
आरती का कहना है कि अभी तक उन्होंने लगभग 1200 महिलाओं को रोज़गार दे रही हैं। सारी महिलाओं के सामान बनाने के अनुसार ही उनकी आमदनी भी बढ़ रही हैं। वहां कुछ महिलाएं महीने के 3000 रुपए कमाती हैं, तो कोई 12,000 तक भी कमा लेती हैं। महिलाएं सेंटर पर सुबह 10 बजे से शाम चार बजे तक काम करती हैं, तो कोई अपने घर से ही सामान बनाकर भेज देती हैं।
आरती कई प्रकार के हस्तनिर्मित उत्पाद बनाती हैं
थारू गांव में भले ही बहुत सारी सुविधाओं की कमी है, पर यहां की गावों में हस्तशिल्प कला ने अपनी बेहतर पहचान बनाई है। आरती के नेतृत्व में 1200 महिलाए हस्तशिल्प निर्मित कई तरह के उत्पाद बनाती हैं। जैसे- सैंडल, मोबाइल कवर, कैप, पेपर स्टैड, मैगजीन बैग, वॉल हैंगिंग बैग, पायदान, फ्लावर पॉट, रोटी की टोकरी, फूल टोकरी, डालियां आदि जैसे चीजें बनाती हैं। इतना ही नहीं ये लोग हैंडलूम से निर्मित बेडशीट, कुशन, हाथ का पंखा, पारंपरिक थारू ड्रेस, इंब्रॉयडरी साड़ी, बंदनवार, बांस के बने पंखे, लकड़ी की चौकी और झूला जैसे सामान भी बनाते हैं।
लखनऊ से दिल्ली तक है चर्चा
दिल्ली से गोवा समेत कई राज्यों में लगने वाले हुनर हाट में आरती और बाकी महिलाएं अपना स्टॉल लगा चुकी हैं। इनकी चर्चाएं कई राज्यों में होती है। लखनऊ के अवध शिल्पग्राम में इस वर्ष में लगने वाले हुनर हॉट में आरती का भी स्टाल लगा था, जिसमें आरती और पूजा राना ने प्रदर्शनी में पहुंचे मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को जूट से बने कैप भी पहनाई थी। इतना ही नहीं उनके द्वारा बनाए गए हैंडक्राफ्ट को कई लोगों ने काफी पसंद किया था।