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राजस्थान के प्रोफेसर ज्याणी मरुस्थल को बना रहे हैं हरा-भरा, 170 स्कूलों में शुरू किए इंस्टिट्यूशनल फारेस्ट

जिस पर्यावरण से इस प्राणीजगत का भविष्य है उसे सहेजना बेहद आवश्यक है। लेकिन बात यह है कि जो पर्यावरण हमारी रक्षा करता है आज हम उसकी कितनी रक्षा कर रहे हैं? वायु प्रदूषण और असंतुलित वातावरण जैसे सभी पहलुओं को समझते हुए भी हम अपने कामों में व्यस्त रहते हैं और पर्यावरण के लिए समय नहीं निकालते हैं। दिन-ब-दिन बढ़ती बीमारियों से बचने के लिए लोग दवा तो लेते हैं लेकिन उस बीमारी के प्रभाव को कम करने के लिए पर्यावरण में सुधार के लिए कोशिश नहीं करते हैं। इन नकारात्मकताओं के बीच कुछ सकारात्मकता भी है। कुछ लोग पर्यावरण के संरक्षण के लिए हमेशा प्रयत्नशील रहते हैं। वे खुद तो पर्यावरण संरक्षण करते हीं हैं साथ में अन्य लोगों को जागरूक भी करते हैं।

पर्यावरण संरक्षण करने वाले योद्धाओं में से एक हैं श्यामसुंदर जयानी जो कि राजस्थान के बीकानेर में गवर्नमेंट डूंगर कॉलेज में सोशियोलॉजी के प्रोफेसर हैं। श्याम सुंदर जी कई सालों से पर्यवारण के लिए काम करते आ रहे हैं। The Logically से बात करते हुए श्यामसुंदर जी ने अपने पर्यावरण संरक्षण के कार्यों को साझा किया।

Shyam sundar Jyani Rajasthan

2003 में जब श्यामसुंदर जी का तबादला हुआ और वे इस कॉलेज में आए तो उन्होंने देखा कि कैंपस में कुछ नीम के पेड़ थे। जो तकरीबन 15 साल पुराने थे। वे पेड़ अब सूख रहे थे और कुछ पेड़ तो पूरी तरह सूख गए थे। यह देखकर उन्होंने कॉलेज के प्रधानाचार्य से बात की और आग्रह किया कि इन पेड़ों को बचाने के लिए कुछ किया जाए। लेकिन प्रधानाचार्य ने रुचि नहीं दिखाते हुए कहा कि “यहां का वातावरण ही ऐसा है और ऐसे में पेड़ सूखते ही रहते हैं”। लेकिन उन्होंने सोचा कि एक तो यहां वैसे हीं पेड़ों की संख्या कम है और अगर ये पेड़ भी सूख गए तो 107 एकड़ के कैंपस की शोभा खत्म हो जाएगी। फिर उन्होंने विद्यार्थियों के साथ मिलकर उन पेड़ों की देखभाल करनी शुरू कर दी और वे सूखते पेड़ फिर से हरे-भरे हो गए।

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उन्होंने आसपास की जगहों व गांवों में घूमा तो पाया कि वहां पर पेड़ बहुत कम हैं। चूंकि वे साइकोलॉजी के प्रोफेसर थे तो उन्होंने साइकोलॉजिस्ट की तरह सोचा कि पहले लोगों के व्यवहार में बदलाव लाना होगा तभी यहां के लोग पर्यावरण में सुधार लाएंगे। उन्होंने 2006 में “पारिवारिक वाणिकी” के नाम से एक मुहिम चलाई। जिसमें लोगों से मिलकर उन्हें यह समझाना शुरु किया कि पेड़ हमारे लिए कितने जरूरी हैं, अगर इनसे हमारे जीवन की आवश्यकताएं पूरी होती हैं तो हमारा भी फर्ज बनता है कि हम भी उन्हें जीवन दें। और इन पेड़ों को हम सिर्फ पेड़ ना समझे बल्कि इन्हें परिवार का सदस्य समझकर इनकी देखभाल करें।

The Logically से बात करते हुए श्याम सुंदर जी कहते हैं कि गांव के बहुत से लोग ग्लोबल वार्मिंग, वायु प्रदूषण को नहीं समझते हैं। वे उन्हीं बातों को समझते हैं, जो वे सामने देखते हैं। उन्हें लगता है कि ये सारी परेशानियां शहरों की है। गांव इन चीजों से सुरक्षित है। लेकिन उनकी इन बातों को समझना भी जरूरी है। इसलिए उन्होंने गांव वालों को उनके आसपास की चीजों का ही उदाहरण देकर समझाना शुरू किया जो वे देख सकते थे। उन्होंने लोगों को समझाया कि हर चीज में कितना बदलाव आ चुका है। सब्जियों का स्वाद जो पहले हुआ करता था वह अब नहीं हुआ करता। चाहे पैदावार कितनी भी ज्यादा हो जाए, सब्जियां कितनी भी ताजी क्यों न हो लेकिन स्वाद में अंतर जरूर आ गया है। घी, जो पहले ठंडी के दिनों में बर्तन में से निकालना मुश्किल होता था, वही घी आज सही से ठोस भी नहीं बन पाती है। मौसम में भी काफी बदलाव आ गया है। वर्षा के दिनों में जितनी पानी की जरूरत होती है, उतनी वर्षा होती नहीं और गर्मी के दिनों में जरूरत से ज्यादा वर्षा हो जाती है। जिसका सीधा असर हमारी फसलों पर पड़ता है। सांस की तकलीफ वाले मरीजों की संख्या दिन-ब-दिन बढ़ती जा रही है, जिसका एक कारण वायु प्रदूषण भी है।

श्याम सुंदर जी आगे बताते हैं कि इतनी सारी बातों को समझाने के बाद गांव के लोग भी जागरूक हुए और उन्होंने पेड़ लगाना शुरू किया। साथ ही श्याम सुंदर जी ने उन्हें किसी फल के पेड़ जैसे- अमरुद, नींबू, केला इत्यादि लगाने की सलाह दी। ताकि फल के लालच में वे पेड़ की ज्यादा देखभाल करें और वे पेड़ उस परिवार में अपनी एक जगह बनाकर उस परिवार का एक सदस्य बन जाए।

The Logically के साथ हुए अपने साक्षात्कार के दौरान श्याम सुंदर जी ने कहा कि हम इंसानों में एक फितरत होती है कि हमें किसी चीज से अच्छी चीजें मिल रही तो हमें उसकी आदत हो जाती है और वह हमारी जिंदगी का एक अहम हिस्सा बन जाता है। उदाहरण के लिए मोबाइल फोन जिस की आदत हमें और हमारी नई पीढ़ि को इस कदर लगी है कि मोबाइल फोन के बिना अब सारे काम अधूरे लगते हैं। तो वैसे ही अगर हमें पेड़ से ताजे फल और सब्जी मिलने शुरू होंगे तो हमें उसकी आदत लगेगी और हम ज्यादा से ज्यादा पेड़ लगाएंगे।

श्याम सुंदर जी बताते हैं कि गांवों के बाद उन्होंने स्कूल के बच्चों को पर्यावरण के लिए जागरूक करना शुरू किया। क्योंकि छोटे बच्चे किसी भी चीज को ज्यादा समझते हैं और नई चीजें सीखने की इच्छा रखते हैं। अगर बच्चों को पर्यावरण के लिए जागरूक किया जाए तो वे ज्यादा बेहतर काम करेंगे। श्याम सुंदर जी ने विद्यालय के बच्चों को जंगल के बारे में समझाना चाहा, क्योंकि कई जगह अब जंगल लगभग खत्म हो चुके हैं। उन्होंने इसके लिए भी एक मुहिम शुरू की जिसका नाम था “इंस्टीट्यूशनल फॉरेस्ट”। ताकि इसके जरिए माइक्रो अर्थ सिस्टम बनाया जा सके। जिसमें किसी इंस्टीट्यूट, स्कूल या कॉलेज के बाउंड्री के अंदर एक हिस्सा सिर्फ पेड़ों के लिए बनाकर उसमें पेड़ लगाये जाएं। एक जगह पर लगे पेड़ों की देखभाल करना आसान होता है और उन पेड़ों से एक छोटा जंगल भी बन जाएगा।

श्याम जी ने इस काम की शुरुआत खुद से ही की थी उन्होंने अपने कॉलेज के कैंपस के अंदर ही लगभग 5 हेक्टेयर ज़मीन पर एक इंस्टिट्यूशन फॉरेस्ट बनाया। गांधी जी ने कहा था कि “अगर बदलाव लाना है तो उस काम की शुरुआत खुद से करो”। और श्याम सुंदर जी ने ये शुरुआत खुद से की और आज 170 गांव के सरकारी स्कूलों में इन्स्टीट्यूशनल फॉरेस्ट शुरू हो चुके हैं और अब धीरे-धीरे लोग इससे जुड़ते जा रहे हैं। इसमें फल के भी पेड़ हैं, जिससे सरकारी विद्यालयों को काफी फायदा होता है। बच्चों को मिड डे मील में भोजन के साथ फल भी दिया जाने लगा। जिससे उनका कुपोषण दूर हुआ। साथ में उन विद्यालयों के द्वारा कोई ना कोई कार्यक्रम होता है जिसमें आए बच्चों और उनके अभिभावकों को नि:शुल्क पौधे दिए जाते हैं और जो छोटे बच्चे विद्यालय में ये सारी चीजें देखते हैं वे पर्यावरण को लेकर और भी ज्यादा जागरूक होते हैं।

उपकरण कार्यों के साथ श्यामसुंदर जी ने एक पौधशाला भी शुरू किया और नाम रखा “जन पौधशाला”। जिसमें सभी व्यक्तियों को नि:शुल्क पौधे दिए जाते हैं। साथ हीं वे पौधों को सारे त्योहार, शादी, रीति-रिवाज का भी हिस्सा बना रहे हैं। श्याम सुंदर जी बताते हैं कि उनके विद्यार्थी शादी में फेरा पौधे के साथ लेते हैं। शादी या किसी त्योहार में आए मेहमानों को रिटर्न गिफ्ट के रूप में पौधा भेंट करते हैं। यहां के लोग देवी-देवताओं की पूजा में भी पौधा प्रसाद के रूप में लेकर जाते हैं ताकि वे उस पौधे को और भी ज्यादा जिम्मेदारी से लगाएं।

2019 की ग्लोबल हंगर इंडेक्स में भारत का सूचकांक 102 है, जो कि नीचे से दूसरे नंबर पर है। मेडिकल रिसर्च के अनुसार हमारे देश में कुपोषित बच्चों की संख्या पोषित बच्चों की तुलना में बहुत ज्यादा है क्योंकि बच्चों को सभी पोषक तत्व नहीं मिल पाते हैं। रिसर्च से पता चला भारत में 4 सर्वाधिक कुपोषित राज्य हैं, जिनमें से एक राजस्थान भी है। तो इस बात को ध्यान में रखते हुए उन्होंने सहजन के पेड़ को बढ़ावा देना शुरू किया। जिसमें कई सारे पोषक तत्व एक साथ मिल जाते हैं और सहजन को पूरे साल इस्तेमाल में लाया जा सकता है। सहजन के फूल, पत्ते और फल भी बहुत फायदेमंद होते हैं। उन्होंने एक वीडियो बनाया जिसमें सहजन की रोपाई, उसकी देखभाल, उसके फायदे, उसकी रेसिपी के बारे में बता कर लोगों को जागरूक करने की कोशिश की। और राजस्थान के 33 में से 29 जिलों के लोगों के लिए बीज भी उपलब्ध करवाए।

सबसे बड़ी बात तो यह है कि श्याम सुंदर जी इन कामों के लिए किसी और से पैसे नहीं लेते बल्कि अपनी तनख्वाह में से पैसे बचाकर यह काम करते हैं। इन्होंने “पर्यावरण पाठशाला” नाम से एक फेसबुक पेज भी बना रखा है, जिससे ज्यादा से ज्यादा लोग उनसे जुड़ सकें जिससे पर्यावरण के इस काम को बढ़ावा दिया जा सके।

श्याम सुंदर जी को उनके इन्हीं कामों के लिए 2012 में प्रणब मुखर्जी द्वारा नेशनल अवार्ड से सम्मानित किया गया था और राजस्थान की चीफ मिनिस्टर द्वारा भी इन्हें सम्मानित किया गया। तीन बार लिम्का बुक ऑफ रिकॉर्ड में भी यह रिकॉर्डिंग जा चुका है। इस काम की शुरुआत तो श्याम सुंदर जी ने अकेले ही की लेकिन आज इनसे कई लोग जुड़ गए हैं जो दूसरों को भी जागरूक कर रहे हैं और इनकी इसी कोशिश ने पर्यावरण और लोगों के विचार में काफी बदलाव लाया है।

श्यामसुंदर जी ने पर्यावरण संरक्षण के लिए जो बृहद कार्य किया है वह सभी लोगों के लिए बहुत बड़ी प्ररेणा हैं। The Logically श्यामसुंदर जी को उनके पर्यावरण संरक्षण जैसे कार्यों के लिए नमन करता है।

स्वाति सिंह BHU से जर्नलिज्म की पढ़ाई कर रही हैं। बिहार के छपरा से सम्बद्ध रखने वाली स्वाति, अपने लेखनी से समाज के सकारात्मक पहलुओं को दिखाने की कोशिश करती हैं।

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