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सॉफ्टवेयर इंजीनियर ने बनाया गन्ने के वेस्ट से क्राकरी जो एनवायरनमेंट फ्रेंडली के साथ ही अच्छी आमदनी का स्रोत बना

वर्तमान में घरों में क्रॉकरी (Crockery) का इस्तेमाल आम बात हो गई है। कभी आवश्यकताओं के चलते तो कभी मेहमानों के आगे अपनी आधुनिकता व अमीरी का दिखावा करने के लिए लोग मंहगी से मंहगी क्रॉकरी यूज करते हैं जैसे कभी बोन चाइना तो कभी टेराकोटा, कभी स्टोनवेयर, कभी अल्युमिना तो कभी मेलामाइना और भी न जानें कितने प्रकार की क्रॉकरीज़ का यूज़ आज हमारे मॉर्डन डेली कल्चर का एक इंपोर्टेंट पार्ट बनता जा रहा है।

इसी श्रेणी में अगर प्लास्टिक क्रॉकरी की बात की जाये तो भले ही बाकी सभी विकल्पों की तुलना में वे सस्ती हों लेकिन हमारे स्वास्थ्य, पर्यावरण और वन्य जीवों को प्लास्टिक किस हद तक नुकसान पहुंचाता है यह बात किसी से छिपी नही है।

 crockery

पर्यावरण पर इन मैटिरियल्स से बनी क्रॉकरी के विपरित असर को ध्यान में रखते हुए विशाखापट्टनम (Vishakhapattanm) की 53 वर्षीय एसवी विजय लक्ष्मी(S V Vijaya Laxmi) ने गन्ने के वेस्ट(Sugarcane Waste) से ईकोफ्रंडली क्रॉकरी प्रोडक्ट्स बनाने की दिशा में काम करते हुए ‘हाउस ऑफ फोलियम’(House of Folium) की शुरुआत की है। वर्तमान में अपने इस स्टार्टअप के ज़रिये लक्ष्मी पर्यावरण के अनुकूल क्रॉकरी व कटलैरी ग्राहकों तक पहुंचाने का काम कर रही हैं। इतना ही नही अलग-अलग एक्सपो में एसवी लक्ष्मी के क्रॉकरी प्रोडेक्ट्स के स्टॉल देखे जा सकते हैं।

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सॉफ्टवेयर इंजीनियर रह चुकी हैं एसवी लक्ष्मी

पर्यावरण सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए ईकोफ्रंडली क्रॉकरी प्रोडक्ट्स बनाने वाली विशाखापट्टनम की एसवी लक्ष्मी लगभग 20 साल तक अलग-अलग मल्टीनेशनल कंपनियों में बतौर सॉफ्टवेयर इंजीनियर काम कर चुकी हैं। अब पिछले 2 सालों से नौकरी छोड़ गन्ने के वेस्ट से क्रॉकरी प्रोडक्ट्स बनाकर खुद का स्टार्टअप चला रही हैं।

कई बड़े होटलों में हैं एसी वी के प्रोडक्ट्स की डिमांड

एसीवी द्वारा गन्ने के वेस्ट से बने इन इकोफ्रंडली क्रॉकरी प्रोडक्ट्स की आज मार्कट में काफी डिमांड है। इतना ही नही लक्ष्मी को कई बड़े होटलों से भी इन प्रोडेक्ट्स की सप्लाई के लिए बड़ी मात्रा में ऑर्डर्स मिलने लगें हैं जिसकी वजह से आज वे अच्छा खासा लाभ प्राप्त कर रही हैं।

गन्ने के वेस्ट से क्रॉकरी बनाने की प्रेरणा कहां से मिली एसवी को

मीडिया से हुई बातचीत में लक्ष्मी कहती हैं- “जब मैं बड़ी-बड़ी कॉर्पोरेट कंपनीज़ के साथ काम कर रही थी तब मैंने ये बात नोटिस की खाना परोसें जाने के लिए हर वक्त बड़ी मात्रा में लास्टिक का इस्तेमाल होता है, इतना प्लास्टिक निश्चित रुप से एक बड़ी मात्रा में वातावरण को हानि पहुंचाता होगा, न केवल भारत में ऐसा होता है बल्कि अधिक विकसित देशों में भी प्लास्टिक का प्रयोग एक बड़ी मात्रा में होता है, हालांकि इस बात को अनदेखा नही किया जा सकता कि वहां पर प्लास्टिक वेस्ट मैनेंजमेंट के बेहतरीन विकल्प हैं, लेकिन कुछ भी हो प्लास्टिक हमारे वातावरण को जो नुकसान पहुंचा रहा है उसे अनदेखा नही किया जा सकता, इसलिए मैंने इस दिशा में ही काम करने का मन बना लिया, चाहे उसकी शुरुआत छोटे व व्यक्तिगत स्तर पर ही क्यों न हो”

प्राप्त साधनों को लेकर ही अपने उद्देश्य को साकार किया एसवी ने

एसवी लक्ष्मी कहती हैं – “समाज या वातावरण में बदलाव लाने के लिए ज़रुरी नही कि आप कोई एक बड़ी संस्था या फिर कंपनी ही खोले, जो ज़रुरी है वो है आपका संकल्प व कोशिशें, मेरे पास जो साधन अवेलेबल थे मैंने उन्हीं को लेकर अपना स्टार्टअप शुरु किया”

काफी रिसर्च वर्क करके ही अपने मकसद को अंजाम दिया है एसवी ने

वर्क प्लेस पर प्लास्टिक के बढ़ते प्रयोगों का इकोफ्रंडली विकल्प तलाशने के लिए एसवी ने चार से पांच साल तक रिसर्च वर्क किया। इतना ही नही रिलेट्ड टॉपिक्स पर कई रिसर्च पेपर्स तक पढ़े। जिसमें उन्होनें पाया कि बांस, एरेका पाम या फिर गन्ने के पल्प को हम प्लास्टिक के एक बेहतरीन विकल्प के रुप में इस्तेमाल कर सकते हैं।

अपने मकसद को साकार रुप देने के लिए गन्ने के वेस्ट को अपनाया

गन्ने के वेस्ट को यूज़ करने के संदर्भ में विजय लक्ष्मी कहती हैं – “प्लास्टिक का अलटरनेट ढ़ूढते हुए किये जा रहे रिसर्च के दौरान मैंने यह पाया कि खेती के अपशिष्ट जिसे पराली कहा जाता है, उसे क्रॉकरी बनाने के लिए हम यूज़ कर सकते हैं। इसमें मुझे गन्ने के वेस्ट का इस्तेमाल सबसे ठीक लगा। क्योंकि उत्तर भारत के अलावा दक्षिण भारत में गन्ना का उत्पादन काफी अधिक मात्रा होता है और हज़ारों टन वेस्ट निकलता है जिन्हें केवल जला देना ही एकमात्र उपाय होता है, तब मैंने सोचा क्यों न इस वेस्ट को जलाने की बजाये इसे अपने मकसद के लिए रॉ मैटेरियल के रुप में इस्तेमाल करुं, बेशक ही इस तरह से कमाई के साथ-साथ पर्यावरण को भी प्रदूषित होने से बचाया जा सकता है”

2018 में ‘हाउस ऑफ फोलियम’ नाम से शुरु किया स्टार्टअप

अपने उद्देश्य को साकार रुप देने के लिए विजय लक्ष्मी ने 2018 में अपनी सॉफ्ट वेयर इंजीनियर की जॉब को अलविदा कह दिया। इसी साल उन्होनें ‘हाउस ऑफ फोलियम’ को भी स्टार्ट किया। जिसके द्वारा आज वो अपने कटस्टमर्स को इकोफ्रंडली क्रॉकरी प्रोवाइड करवाती हैं।

लोकल मैन्युफैक्चरर की मदद से काम को दिया आगाज़

विजय कहती हैं – “उस वक्त मेरे पास इतने साधन नही थे कि मैं खुद की मैन्युफैक्चरिंग यूनिट सेटअप लगा सकूं, इसलिए अपने मकसद को अंजाम देने के लिए ऐसे लोकल मैन्युफैक्चरर से बात करनी शुरु की जो ऑर्डर लेकर अलग-अलग रॉ मैटेरियल्स पर क्रॉकरी बनाया करते हैं। उनसे टाई-अप करके आज मैं सैकड़ों लोगों को इकोफ्रैंडली क्रॉकरी प्रोडक्ट्स उपलब्ध करवा रही हूं, छोटे स्तर पर ही सही लेकिन मेरे इस कांसेप्ट से लोग प्रभावित होकर ऑर्डर देते हैं, वर्तमान में हम 150 से 200 लोगों के किसी भी आयोजन के लिए क्रॉकरी उपलब्ध करवाने में सक्षम हैं”

एसवी लक्ष्मी कैसे बनाती हैं गन्ने के वेस्ट से क्रॉकरी

गन्ने के वेस्ट से क्रॉकरी बनाने की पूरी प्रक्रिया को समझाते हुए लक्ष्मी कहती हैं – “गन्ने के वेस्ट से क्रॉकरी बनाने के लिये सबसे पहले उससे निकलने वाली छालों और पत्तियों को धूप में सुखाया जाता है, फिर उनके टुकड़े करके पानी में भिगो दिया जाता है, पानी में घुलकर गन्ने का वेस्ट लुगदी का रुप ले लेता है फिर उसे अच्छी तरह से मिलाकर, मशीन की सहायता से मनचाहे आकार में ढाल दिया जाता है, आज देश के कई संस्थान और कृषि विज्ञान केंद्र इसी दिशा में बच्चों को ट्रेनिंग भी दे रहे हैं, ये प्रोडेक्ट्स पूरी तरह से बायोडिग्रेडेबल हैं, जो इस्तेमाल के बाद फेंके जाने पर 90 दिनों के भीतर गल कर न केवल धरती में मिल जाते हैं बल्कि उसकी उर्वरकता को भी बढ़ाते हैं, यदि कोई जानवर इन्हें खा भी लेता है तो उनकी सेहत पर भी कोई विपरित असर नही पड़ता, इतना ही नही आप इसे माइक्रोवेव या फ्रिज में भी रख सकते हैं, इनका कोई साइड इफ्केट नही होता”

ग्राहकों की आवश्यकतानुसार बनाये जाते हैं क्रॉकरी प्रोडक्ट्स

लक्ष्मी के मुताबिक- ‘हाउस ऑफ फोलियम’ के द्वारा कस्टमाइज़ क्रॉकरी प्रोडक्ट्स बनाये जाते हैं। ग्राहक अपनी आवश्यकता के हिसाब से हमें ऑर्डर देते हैं जैसे किसी को प्लेट का एक पर्टिकुलर साइज़ चाहिए, तो किसी अन्य कस्टमर को पैकिंग बॉक्स का। उसी के अनुरुप लोकल मैन्युफैक्चरर को ऑर्डर दिया जाता है, तत्पश्चात उसकी डिलीवरी कर दी जाती है।

भविष्य में खुद की मैन्युफैक्चरिंग यूनिट लगाना चाहती हैं लक्ष्मी

वर्तमान में लक्ष्मी सोशल मीडिया के ज़रिये भी अपने प्रोडक्टस का प्रमोशन करने लगी हैं। जिससे कस्टमर्स की संख्या तो बढ़ी ही है साथ ही बड़ी-बड़ी कंपनियों व होटलों से ऑर्डर मिलने लगे हैं। ऐसे में, गन्ने के वेस्ट से बने क्रॉकरी प्रोडक्ट्स की कीमत को कम करने और अधिक बचत के मकसद से विजय लक्ष्मी भविष्य में अपनी ही मैन्युफैक्चरिंग यूनिट लगाना चाहती हैं।

अर्चना झा दिल्ली की रहने वाली हैं, पत्रकारिता में रुचि होने के कारण अर्चना जामिया यूनिवर्सिटी से जर्नलिज्म की पढ़ाई पूरी कर चुकी हैं और अब पत्रकारिता में अपनी हुनर आज़मा रही हैं। पत्रकारिता के अलावा अर्चना को ब्लॉगिंग और डॉक्यूमेंट्री में भी खास रुचि है, जिसके लिए वह अलग अलग प्रोजेक्ट पर काम करती रहती हैं।

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