Wednesday, December 13, 2023

उद्योगों से निकलने वाले एग्रो वेस्ट से कपङे बनाने का किया स्टार्टअप, कुछ हीं महीनों में टर्नओवर लाखों रूपए

कहते हैं कि कोई भी व्यक्ति अगर दिल से कुछ करना चाहे तो वह एक दिन अपनी कामयाबी जरूर हासिल करता है। आज के समय में भले ही कई लोग नौकरी के लिए सरकार को जिम्मेदार ठहरा रहे है, परन्तु अगर आपके पास कुछ करने का आइडिया हो तो आप अपने सोच से ही कुछ बेहतर कर सकते है और पैसे कमा सकते हैं। आज हम आपको कुछ ऐसे ही प्रेरणादायक कहानी बताएंगे जो आपको भी खुद पर विश्वास करने पर मजबूर कर देगा।

जी हां यह कहानी एक मां-बेटे की है, जिन्होंने अपनी आइडिया से एग्रो-वेस्ट से इकोफ्रेंडली कपड़ा बनाने का कार्य शुरू किया और आज एक सफल व्यक्ति बन चुके हैं। तो आईए जानते है इनके बारे में –

मुंबई के रहने वाले कौशिक वरदान (Kaushik Vardan) और उनकी मां की यह कहानी एक मिसाल बन चुकी है। आपको बता दें कि कौशिक और उनकी मां भुवना श्रीनिवास (Bhuvana Srinivas) ने एक साथ मिलकर एग्रो-वेस्ट से इकोफ्रेंडली कपड़ा बनाने का कार्य शुरू किया और इसमें कामयाब भी हुए। इसकी ख़ास बात यह है कि पेड़-पौधों से निकलने वाले वेस्ट यानी कि कचरे का उपयोग किया जाता है जिससे प्राकृतिक को भी किसी प्रकार का नुकसान नहीं पहुंचता है।

Startup for making textile from Agro wastes turnover 20 lakh

प्रकृति का भी नही होता नुकसान

भारत में एग्रीकल्चर और इससे जुड़ी इंडस्ट्रीज से प्रत्येक वर्ष कई टन कचरा निकलता है, जिसे एग्रो-वेस्ट कहा जाता है। आपको बता दें कि ज्यादातर लोग इसे खत्म करने के लिए जला देते हैं, जो हमारे पर्यावरण को बहुत नुकसान पहुंचाता है और इससे प्रदूषण बढ़ने का खतरा बढ़ जाता है। वहीं कई फैब्रिक्स जैसे कॉटन (cotton), पॉलिस्टर (polyester), एवं रेयॉन (rayon) जैसे फैब्रिक के प्रोडक्शन में प्राकृतिक को बहुत नुकसान पहुंचता है।

ऐसी परेशानियों से निजात पाने के लिए कौशिक और उनकी मां ने एग्रो-वेस्ट से बने इको फ्रेंडली कपड़ा बनाने का स्टार्टअप ‘रेडान’ (Raydan) के नाम से शुरू किया। इन दोनों मां-बेटे ने मिलकर एक साथ रोजगार शुरू किया और मात्र 1 साल में ₹20,00000 का बिजनेस स्टार्ट किया साथ ही लोगों को रोजगार भी दिया।

करना चाहते थे कुछ अलग

कौशिक ने मात्र 25 साल की उम्र में डिजाइनिंग में मास्टर्स की डिग्री प्राप्त करने के बाद फैशन टेक्सटाइल इंडस्ट्री में कुछ अलग करना चाहते थे और यही कारण है कि उन्होंने रेडान की शुरुआत की।

कौशिक ने सस्टेनेबिलिटी को बढ़ावा देने के मकसद से अपनी मां भुवना के साथ मिलकर रेडान की शुरुआत की। इसके जरिए वे कमल (Lotus), गुलाब (Rose), केला (banana), एलोवेरा (Aloe vera), संतरा (Orange), नीलगिरी (eucalyptus), मक्का (Mecca), बांस (bamboo) और गन्ना (Sugarcane) जैसी कई फसलों से निकलने वाले कचरे का इस्तेमाल कर इको फ्रेंडली कपड़ा बनाते हैं।

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क्या कहते है कौशिक?

कौशिक का कहना है कि उन्होंने इंजीनियरिंग करने के बाद डिजाइनिंग में मास्टर की डिग्री हासिल की। उन्होंने बताया कि नौकरी करने के बजाय वह खुद का स्टार्टअप शुरू करना चाहते थे और इसलिए उन्होंने कुछ ऐसा करना चाहा जो सस्टेनेबिलिटी को बढ़ावा दे सकें।

वह कहते हैं कि उनकी मां को टेक्सटाइल इंडस्ट्री के बारे में काफी जानकारी थी और उन्हें फैशन और डिजाइनिंग के बारे में इसलिए उन्होंने रेडान की शुरुआत की। रेडान में वे ब्लेंडेड फैब्रिक यानी कि मिक्सड फैब्रिक तैयार करते हैं, जिसमें बैंबू और कॉटन अथवा केले जैसे दो फैब्रिक को मिलाकर एक फैब्रिक बनाया जाता है। ऐसे में लोगों को कम कीमत में इको फ्रेंडली कपड़े भी मिल जाते हैं।

उनका कहना है कि उनका यह startup देश का पहला स्टार्टअप है जो ब्रांडेड इको फ्रेंडली कपड़े बनाने का काम करता है।

ईकोफ्रेंडली कपड़ों के हैं कई फायदे

किसानों के लिए भी फायदेमंद होते हैं एग्रो-वेस्ट से तैयार किए हुए इकोफ्रेंडली कपड़े और साथ ही फैशनेबल भी होते हैं। आपको बता दें कि मार्केट से मिलने वाले अधिकतर फैब्रिक के मैन्युफैक्चरिंग प्रोसेस में प्रकृति को नुकसान पहुंचता है। अगर बात करें कॉटन की तो इसके प्रोडक्शन में पानी का इस्तेमाल अधिक होता है और वही पॉलिस्टर जिसे सस्ता फैब्रिक माना जाता है, वे ग्लोबल प्लास्टिक वेस्ट के लिए जिम्मेदार है। जबकि एग्रो-वेस्ट से बनने वाले कपड़े प्रकृति के लिए पूरी तरह से लाभदायक साबित होते हैं।

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दूसरे फैब्रिक के मुकाबले रेडान आरामदायक भी होते हैं

कौशिक का कहना है कि वह कपड़े बनाने के लिए वे ज्यादातर केले और बैंबू का उपयोग ही करते हैं। वे ऐसा इसलिए करते है क्योंकि ये पेड़ एक बार फल देने के बाद वेस्ट हो जाते है और उन्हें बढ़ने में केवल 6 महीने ही लगते है। इन दो पेड़ के अलावा वे कमल, गुलाब, एलोवेरा, संतरे नीलगिरी, मक्का और गन्ना की फसलों से निकलने वाले कचरे का उपयोग करते हैं।

इस तरह के बने कपड़े दूसरे फैब्रिक की तुलना में आरामदायक भी होते हैं और साथ ही इसमें किसी भी प्रकार के केमिकल का भी उपयोग नहीं किया जाता है। उनके मुताबिक एग्रो-वेस्ट से बने फैब्रिक से बढ़ती तरह के गार्मेंट्स बन सकते हैं जो दिखने में काफी सुंदर लगते हैं।

एग्रो-वेस्ट देश के कई हिस्सों से इकट्ठा किया जाता है।

कौशिक ने बताया कि देश के अलग-अलग हिस्सों से रॉ मटेरियल खरीदा जाता है। इसके प्रोडक्शन के लिए सबसे बड़ी यूनिट तमिलनाडु के सेलम शहर में लगाया गया है। उनका कहना है कि में अलग-अलग तरह की फसलों से बचे हुए वेस्ट से फाइबर निकाला जाता है और उससे धागा तैयार किया जाता है। उसके बाद इन धागों की बुनाई कर अलग-अलग तरह के कपड़े तैयार किए जाते है। प्रत्येक महीने वे करीब 1 टन यार्न का प्रोडक्शन करते हैं जिससे इकोफ्रेंडली फैब्रिक बनाई जाती है।

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देश के अलावा अन्य कई शहरों में किया जाता है सप्लाई

देश के प्रत्येक हिस्से में इन फैब्रिक सप्लाई किया जाता है। इसके अलावा अमेरिका (America), कनाडा (Canada) और सिंगापुर (Singapore) सहित अन्य कई देशों में भी निर्यात किया जाता है। जिसे पेंट, शर्ट, स्कर्ट और ड्रेस सहित कई गार्मेंट्स बनाने के लिए भी इस्तेमाल किया जा सकता है।

किसानों को भी है फायदा

कौशिक ने बताया कि प्रकृति के प्रति बढ़ रही जागरूकता की वजह से उन्हें अधिक काम मिल रहा है और यही कारण है कि इससे किसानों को भी फायदा हो रहा है।

उनका यह भी कहना है कि जिस प्रकार इको फ्रेंडली कपड़ों की मांग मार्केट में बढ़ रही है उस प्रकार किसानों की भी आमदनी अधिक बढ़ रही है। पहले वे केला और बैंबू के फाइबर पर ही काम कर रहे थे, पर अब वे दूसरे पेड़ो से वेस्ट शामिल कर रहे है, जिसमें बागवानी कर रहे किसान भी इनके साथ जुड़ रहे हैं।

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इस फैब्रिक को डी-कम्पोज भी आसानी से किया जा सकता है।

आपको बता दें कि किसानों के अलावा उनकी टीम में 15 लोग काम करते हैं जो अलग-अलग यार्न से फैब्रिक तैयार करते हैं। इनसे बने कपड़े इको फ्रेंडली होने के साथ ही साथ रिसाइकिल भी किए जा सकते हैं। अगर आप इन्हें डीकम्पोज करना चाहे तो कुछ ही महीनों में नष्ट हो जाते हैं, जबकि आजकल के बनने वाले करीब 60% कपड़े जैसे पॉलिएस्टर, नायलॉन और ऐक्रेलिक टेक्सटाइल में प्लास्टिक उपलब्ध होता है जिसे आसानी से डीकम्पोज नहीं किया जा सकता है।

मां के साथ ने दिलाई सफलता

अपनी सफलता का श्रेय कौशिक अपनी मां को देता है, क्योंकि सस्टेनेबल फैब्रिक के बारे में उनकी मां ने ही उन्हें जानकारी दी थी जो काफी समय से टैक्सटाइल इंडस्ट्री से जुड़ी हुई है।

कौशिक की मां भुवना श्रीनिवास पहले एरिका पाम लीफ से क्रॉकरी बनाने का कार्य करती थी। उसके बाद उन्होंने चैंप्स एग्रो नाम से इको फ्रेंडली कपड़े बनाने का भी काम किया। कौशिक ने बताया कि वे अपने मां से ही जाना कि कैसे हमारे कपड़े प्रकृति को फायदा या नुकसान पहुंचाते हैं। पहले केवल बाहर अमेरिका एवम लंदन में इस तरह के कपड़े बनते थे परंतु अब भारत में ना सिर्फ डिजाइन बल्कि आम लोग भी इको फ्रेंडली कपड़े पहनना पसंद कर रहे हैं और यही कारण है कि आज वे इस तरह की फैब्रिक बनाने में इंटरेस्ट ले रहे हैं।

खुद का स्टार्टअप शुरू करना चाहते थे कौशिक

कई प्रोजेक्ट्स पर कौशिक अपनी मां के साथ काम किया है। उनकी मां फैब्रिक के प्रमोशन से संबंधित कार्य से जुड़ी हुई थी, परंतु वे खुद मैन्युफैक्चरिंग से जुड़ना चाहते थे और इस कारण उन्होंने पढ़ाई के बाद नौकरी करने के बजाय खुद का स्टार्टअप शुरू किया।

Startup for making textile from Agro wastes turnover 20 lakh

मात्र एक ही वर्ष में 20 लाख का टर्नओवर

कौशिक ने साल 2020 में अपने स्टार्टअप की शुरूआत किया और बहुत जल्द ही वे कई मैन्युफैक्चरिंग कंपनी अथवा डिजाइनर उनके कस्टमर बन गए है जो इनसे कपड़े खरीदकर गार्मेंट्स बनाने का कार्य कर रहे है।

कोशिक बताते हैं कि आजकल कई सारी कंपनियां इको फ्रेंडली का लेबल लगाकर अपनी ब्रांड्स की मार्केटिंग कर रही है। ऐसे में मार्केट में अपनी जगह बनाना थोड़ा मुश्किल हो जाता है। हालांकि उन्होंने स्टार्टअप की शुरुआत हीं कोरोना काल में की थी इस कारण उन्हें पहले थोड़ी परेशानी हुई परंतु उनके फैब्रिक की क्वालिटी देखकर कस्टमर उनसे खुद जुड़ने लगे।

उन्होंने अलग-अलग सेक्टर में काम करने वाली मैन्युफैक्चरिंग कंपनियों को कपड़ा सप्लाई किया जिसमें पैंट, शर्ट, जुराबे, ड्रेस और इनर वियर बनाने वाली कंपनियां शामिल है।

इस स्टार्टअप की कमाई के बारे में कौशिक का कहना है कि पिछले 1 साल में उनके स्टार्टअप ने लगभग 20 लाख का टर्नओवर कमाया है। आगे उन्हें उम्मीद है कि आने वाले सालों में यह टर्नओवर दुगुना हो जाएगा क्योंकि मार्केट में इको फ्रेंडली कपड़े की मांग बहुत तेजी से बढ़ रही है।

कहते हैं कि अगर आपके साथ आपके माता-पिता का साथ हो तो मंजिल पाना और भी आसान हो जाता है। कुछ ऐसा हीं हुआ कौशिक के साथ जिन्होंने अपनी सफलता अपने मां के साथ मिलकर हासिल किया। इनकी सफलता की कहानी हजारों लोगो को प्रेरित करती है।