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ई रिक्शा ड्राइवर पुष्पा सिंगल मदर होने की पेश कर रहीं मिसाल, जानिए उनकी तरक्की की कहानी

हर क्षेत्र में महिलाएं अपनी एक अलग जगह बना रही हैं। हम आज जिस महिला की बात करेंगे, वह भी अब अपने नाम से प्रसिद्ध हो चुकी हैं। लखनऊ (Lucknow) के गोखले मार्ग की रहने वाली महिला ई-रिक्शा की ड्राइवर हैं। उनका नाम पुष्पा निषाद (Pushpa Nishad) हैं। पुष्पा कहती हैं कि पहले मैं किसी की बेटी, बहन, पत्नी और माँ के नाम से पहचानी जाती थी लेकिन अब मुझे मेरे काम और मेरे नाम की पहचान मिल गयी है। यह उनके लिए बहुत खुशी की बात है।

पुष्पा ई-रिक्शा ड्राइवर हैं

सैंतीस वर्षीय पुष्पा जब बाहर निकलती हैं, तो लोग उन्हें अलग-अलग तरह की टिप्पणियां देते हैं। जैसे- बहुत अच्छा काम कर रही हो, अरे वाह कमाल का हुनर है, बहुत अच्छे से चलाती हो, देखो न महिला ड्राइवर को कमाल की ड्राइवर हो, नाम क्या है आपका? पुष्पा हर रोज़ सड़क पर ऐसे वाक्य सुनती हैं। उत्तर प्रदेश में जब पहली बार महिलाओं का ई-रिक्शा ड्राइवर का लाइसेंस बना था, उन सात महिलाओं में से एक पुष्पा भी थीं।

Success story of pushpa women e rickshaw driver

पुष्पा को शुरूआत में हुई दिक्कत

पुष्पा शहर की संकरी गलियों से लेकर बड़े चौराहों तक बैटरी से चलने वाला ई-रिक्शा चलाती हैं। आज भी जब वह सड़क पर निकलती हैं, तो राह चलते लोगों की निगाहें कुछ देर के लिए उनपर ठहर ही जाती हैं। पुष्पा बताती हैं कि जब पहली बार उन्होंने इसकी चाभी पकड़ी थी, तब उनके हाथ कांप रहे थे परंतु अब वह कार भी चला लेती हैं। वह कहती हैं कि ई-रिक्शा अपना है इसलिए इसको चलाने में ज्यादा मुनाफा होता है।

आज भी 75 पुरुषों पर केवल एक महिला ड्राइवर हैं

उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh) के परिवहन विभाग के पास कितनी महिला ड्राइवर हैं, उसका कोई आंकड़ा नहीं है परंतु दिल्ली ट्रांसपोर्ट विभाग के साल 2018 के आंकड़ों के अनुसार दिल्ली (Delhi) में 75 पुरुषों पर एक महिला ड्राइवर हैं, जिनके पास गाड़ी चलाने का लाइसेंस मौजूद है। पुष्पा के लिए यह राह बहुत मुश्किलों से भरा था। आज भी जब वह अपने जीवन के उतार-चढ़ाव को याद करती हैं, तब उनकी आँखे नम हो जाती हैं।

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पुष्पा के पति का दुर्व्यवहार

पुष्पा के परिवार की हालत इतनी खराब थी कि एक बार वह इससे हार मान कर नदी के किनारे आत्महत्या करने की कोशिश भी कर चुकी थीं परंतु फिर बच्चों का चेहरा सामने आ गया और वह वापस आ गईं। वह लोगों के घरों में झाड़ू-पोछा करके बच्चों का पालना करती थीं। पुष्पा के पति एक शराबी हैं, जो हर रोज़ शराब पीकर पुष्पा को मारते-पीटते, गाली-गलौज करते थे। पुष्पा शादी के बाद इसी उम्मीद से रहती थी कि सब ठीक हो जाएगा परंतु शादी के 13-14 साल बाद तक भी कुछ ठीक नहीं हो पाया। एक दिन तो उनके पति शराब के नशे में पुष्पा को रोड पर खींचकर बहुत मारे। इसके अलावा पुष्पा बताती हैं कि जब इतने से उसका मन नहीं भरा तब मेरे प्राईवेट पार्ट में डंडा डाल दिया। उसके बाद उनके पति ने पुष्पा को दो तीन दिनों एक घर में बंद करके रखा।

‘हमसफर’ संस्था ने की मदद

साल 2013 की इस घटना के बाद पुष्पा पूरी तरह से टूट चुकी थीं। महीनों तक उनका इलाज चलता रहा। इस घटना के बाद पुष्पा अपने पति से हमेशा के लिए अलग हो गई। जब इस घटना की खबर लखनऊ में काम कर रही ‘हमसफर’ संस्था को लगी, तो उन्होंने पुष्पा को इस सदमे से बाहर निकालने में बहुत मदद की। इस संस्था ने ही पुष्पा को साल 2016 में ई-रिक्शा ड्राईवर की ट्रेनिंग करवाई और साल 2017 से पुष्पा ई-रिक्शा चला रही हैं। जब पहला दिन पुष्पा ई-रिक्शा चलाने गई तो उनके मुंह से सवारियों को बुलाने के लिए आवाज़ तक नहीं निकल पा रही थी। पुष्पा बताती हैं कि ऐसा लगता था कि हर कोई हमें ही देख रहा था। बहुत हिम्मत करने के बाद वह धीरे-धीरे बोलकर सवारियों को बैठाया करती थीं। पहले दिन में उन्होंने केवल 60 रुपए कमाए थे।

‘हमसफर’ संस्था के जरिए पुष्पा बनी आत्मनिर्भर

पुष्पा को अपने अंदर के डर को खतम करने में दो महीने तक का समय लगा। ‘हमसफर’ संस्था ने पुष्पा के अलावा और छह महिलाओं को भी यह प्रशिक्षण दिया था। लखनऊ में महिलाओं का ई-रिक्शा चलाने वाला यह पहला बैच था। उस समय के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव (Akhilesh Yadav) ने इन महिलाओं का हुनर देखते हुए उन्हें एक-एक ई-रिक्शा मुफ्त में दिया था। ई-रिक्शा के जरिए महिलाएं आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर बनीं। साथ ही उन्हें इससे अपनी एक नई पहचान मिली। अब पुष्पा को बहुत से लोग उनके नाम से बुलाने लगे हैं। पुष्पा बताती हैं कि सवारी अब उनकी ओर सम्मान की नज़र से देखते हैं।

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पुष्पा बनी आत्मनिर्भर

इस काम में जरिए पुष्पा अपनी खुद की एक पहचान बनाने में सफल हुई। अब ई-रिक्शा का हैंडल थामे पुष्पा आत्मविश्वास से कहती हैं कि इस बात का मुझे बिलकुल अफ़सोस नहीं है कि मैं पिछले छह सालों से सिंगल मदर हूँ। आज मैं इतनी सक्षम हूं कि अपने तीनों बच्चों की परवरिश खुद कर सकती हूँ। पुष्पा का कहा हर वाक्य भले ही पढ़ने में साधारण हो पर उनके लिए यह बहुत बड़ी जीत है। पुष्पा का कहना है कि उनकी पूरी दुनिया उनके तीन बच्चे हैं। उन्होंने अपने जीवन में कई तरह के उतार-चढ़ाव देखे हैं।

‘हमसफर’ संस्था द्वारा महिलाओं को मिली मदद

हमसफर संस्था द्वारा ही पुष्पा को ई-रिक्शा ड्राइवर की ट्रेनिंग मिली। यह संस्था पिछले 16 सालों से संघर्षशील महिलाओं के साथ काम कर रही है। इस संस्था की प्रोजेक्ट को-आर्डिनेटर ममता सिंह (Mamta Singh) बताती हैं कि हम संघर्षशील महिलाओं को जीवकोपार्जन के साधनों से जोड़ने की कोशिश करते हैं। साथ ही समाज के पितृसत्तात्मक सोच को भी तोड़ने का काम करते हैं।अब तक हमसफर संस्था द्वारा 100 से ज्यादा महिलाएं ड्राईवर का प्रशिक्षण ले चुकी हैं लेकिन परमानेंट 15 महिला ड्राईवर हैं, जो ऑन रोड चला रही हैं।

पुष्पा हर महीने कमाती हैं 12 से 15 हज़ार रुपये

रिपोर्ट के अनुसार दिल्ली में केवल 11 फ़ीसदी गाड़ी ही महिलाओं के नाम पर रजिस्टर है। इन आंकड़ों के जरिए आप अंदाज़ा लगा सकते हैं कि अब भी महिलाएं पुरुषों के मुक़ाबले कितनी कम है। पुष्पा बताती हैं कि वह ई-रिक्शा चलाकर हर महीने लगभग 12,000 रुपये से 15,000 रुपये तक कि कमाई कर लेती हैं। पुष्पा के दो बेटे और एक बेटी है, जो अभी पढ़ाई करती है। साल 2006 में पुष्पा नदी किनारे एक छोटा सा झोपड़ी बनाकर रहती थीं और दूसरों के घरों में झाड़ू-पोछा करके अपना तथा अपने बच्चों का पेट पालती थीं।

पुष्पा अब अपने घर के सारे फैसले खुद लेती हैं

पुष्पा की परिस्थितियां देखते हुए एक संस्था ने इन्हें वृंदावन योजना के तहत तेलीबाग में एक आवास का आवंटन करा दिया। अब पुष्पा अपने बच्चों के साथ वहां रहती हैं। पुष्पा अब अन्य महिलाओं को ट्रेनिंग भी देती हैं। जिनमें से कुछ तो अब रिक्शा भी चलाने लगी हैं। पुष्पा केवल पांचवी तक पढ़ी हैं। उन्होंने शादी के 13-14 साल बाद तक दूसरों के घरों में झाडू-पोछा और केयर टेकर का काम किया। पुष्पा चाहती हैं जो तकलीफ उन्हें उठानी पड़ी वह उनकी बेटी को ना उठानी पड़े इसलिए पुष्पा कहती है कि उसकी शादी का फैसला मैं उसकी मर्जी से करूंगी। अब पुष्पा अपने घर के सारे फैसले खुद लेती हैं। पुष्पा को इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि लोग उनके बारे में क्या बात करते हैं।

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