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बच्चों को बेहतर परवरिश मिल सके इसलिए तरन्नुम बनाती हैं गाड़ियों के पंचर

जीवन की छोटी-छोटी समस्याएं हमें कुछ भी करने पर मजबूर कर देती हैं। आज हम एक ऐसी महिला की बात करेंगे, जिसने अपने बच्चों का पेट पालने के लिए अपने हाथों में रिंच और हथौड़ा पकर लिया। दरअसल वह महिला उत्तर प्रदेश (Uttar pradesh) के लखनऊ (Lucknow) में पंचर बनाने का काम करती हैं। उनकी दुकान छठी मील में है। तरन्नुम (Tarannum) साईकिल से लेकर ट्रक तक के पंचर बना लेती हैं।

आपनी मेहनत से बनाई अपनी पहचान

बहुत ही कम उम्र में तरन्नुम ने पंचर बनाने का काम शुरू कर दिया था। तरन्नुम बताती हैं कि उन्हें याद भी नहीं है कि आख़िरी बार उन्होंने कब हाथों पर मेंहदी लगाई थी? पंचर की दुकान में ज्यादा आमदनी नहीं हो पाता थी। जिसके वजह से वह अपने बच्चों को अच्छे स्कूल में पढ़ा नहीं पाई। तरन्नुम के लिए पंचर की दुकान चलाकर पांच लोगों के खाने का इंतजाम करना ही बहुत मुश्किल होता था। 37 वर्ष तरन्नुम (Tarannum) अपने काम के जरिए लखनऊ जैसे शहर में अपनी एक अलग पहचान बनाई हैं।

Tarannum from Lucknow is making puncture to give better life to her children

तरन्नुम साइकिल से लेकर ट्रक तक का पंचर बनाती हैं

आमतौर पर पंचर बनाने का काम पुरुषों का माना जाता है परंतु तरन्नुम ने इस काम का चुनाव इसलिए किया क्योंकि उन्हें दूसरों के घरों में झाड़ू-पोछा का काम करना पसंद नहीं था। उनका ऐसा मनना है कि गरीब हैं परंतु मालिक द्वारा रोज का अपमान नहीं सह सकते। ऐसे में घर चलाने के लिए उन्होंने यह हुनर सीख लिया। आसपास किसी से भी तरन्नुम पंचर वाली के बाड़े में पूछने से कोई भी उनकी दुकान कर पता बता देता है। वहां से गुजरने वाले हर व्यक्ति की नजर एक बार तरन्नुम की दुकान पर जरूर पड़ती है। वह कुछ समय के लिए वहां ठहर जाता है। दुबली कदकाठी की दिखने वाली तरन्नुम साइकिल से लेकर ट्रक तक का पंचर फुर्ती से बहुत ही जल्द बना देती हैं।

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तरन्नुम रोज़ सुनती है लोगों की बातें

23 साल पहले एक रिटायर्ड पुलिस वाला तरन्नुम के पास अपनी गाड़ी का पंचर ठीक कराने आया था। उसने तरन्नुम से कहा था कि बेटी तुम बहुत आगे जाओगी। तुम्हें कभी किसी के आगे हाथ नहीं फैलाने पड़ेंगे। उनके द्वारा इस वाक्य को तरन्नुम आजतक भुल नहीं पायीं हैं। ‘देखो कितना अच्छा काम कर रही है।’ ‘घर भी संभालती और दुकान भी!’… ‘सीखो इनसे।’ ऐसे वाक्य तरन्नुम अक्सर सुना करती है। बहुत से लोग अपनी पत्नियों को लेकर उनके दुकान पर तरन्नुम के काम को दिखाने के लिए आते हैं। जिनमें से कुछ औरतों उनके काम की तारीफ करती हैं, तो कुछ को उनका काम अच्छा नहीं लगता।

तरन्नुम का यह सफर मुश्किलों से भरा था

तरन्नुम (Tarannum) उत्तर प्रदेश (Uttar pradesh)के सीतापुर जिला मुख्यालय से 30 किलोमीटर दूर गंगापुरवा गांव की रहने वाली हैं। तरन्नुम के दो बेटे और एक बेटी है। उनके लिए लखनऊ का माहौल बिल्कुल अलग था। उन्हें यहां की ज्यादा जानकारी भी नहीं थी। आज तरन्नुम लखनऊ के जानकीपुरम क्षेत्र में अपनी एक पहचान बना चुकी है। तरन्नुम बहुत ही अच्छा पेंटिंग भी करती हैं। तरन्नुम के लिए यह सफर बिल्कुल भी आसान नहीं था। उन्हें इस मुकाम तक पहुंचने के लिए बहुत से मुश्किलों का सामना करना पड़ा। तरन्नुम बताती हैं कि शादी के केवल एक साल बाद ही उन्हें यह एहसास हो गया कि उन्हें कोई काम करना पड़ेगा।

तरन्नुम को लोगों के घरों में काम करना पसंद नहीं था

तरन्नुम शुरूआत में एक दुकान में पंचर बनाने काम करती थी। उसके बाद उन्होंने अपनी दुकान खोल ली। उसी दुकान से उन्होंने पंचर बनाने का काम सिखा था।तरन्नुम का जन्म समान्य परिवार में हुआ और महज 15 साल की उम्र में उनकी शादी करा दी गई। शादी के बाद इनके पति ज्यादातर बीमार ही रहते थे। जिससे वह घर का खर्च तक नहीं चला पाते थे, तब ही तरन्नुम को घर खर्च के लिए काम करना पड़ा था। एक साल तक तरन्नुम ने दुसरो के घरों में खाना बनाने का काम किया जहां जरा सी भी गलती पर उन्हें बहुत डांट पड़ती थी। इससे हार मान कर तरन्नुम ने यह काम छोर अपनी छोटी सी दुकान खोल ली।

तरन्नुम अपने बच्चों को पढ़ाना चाहती थी

तरन्नुम एक हाथ में घड़ी और दूसरे हाथ में एक कंगन पहने एक लाल रंग का छींटदार सूट पहने पंचर बनाने में व्यस्त रहती हैं। तरन्नुम बताती हैं कि जब उन्होंने इसकी शुरुआत की तो लोग तरह-तरह की बातें करते थे क्योंकि यह काम पुरुषों का है। कुछ लोग कहते थे कि इनसे तो घर का काम नहीं होता तो सड़क पर बैठ गईं। तरन्नुम कहती हैं कि मेरी बस एक ही ख्वाहिश है जिस दौर से मैं गुजरी हूं, उन हालातों से मेरे बच्चों को ना गुजरना पड़े। तरन्नुम अपनी बेटी की शादी एक बहुत ही अच्छे घर में कर चुकी हैं और उनके दोनों बेटे मजदूरी करते हैं। तरन्नुम का मानना है कि अगर वह अच्छे से पढ़ा पाती तो शायद आज उन्हें ये काम नहीं करना पड़ता।

तरन्नुम पंचर बनाने के काम से है बहुत खुश

23 सालों का अनुभव साझा करते हुए तरन्नुम कहती है कि इस सफर में किसी ने हौसला बढ़ाया तो किसी ने उनके इस काम का विरोध किया परंतु लोगों कि बात सुन तरन्नुम कभी रुकी नहीं। पंचर बना कर तरन्नुम अपने बच्चो का पेट तो भर देती थी परंतु अपनी घर की स्थिति वह ठिक नहीं कर पाई। वह पिछले 23 साल से झोपड़ी बनाकर रह रही है। तरन्नुम बताती हैं कि पंचर बनाने के काम में मेहनत बहुत पड़ती है। आसपास बहुत से दुकान होने के वजह से ज्यादा आमदनी नहीं हो पाती है। थोड़ी कमाई से भी तरन्नुम बहुत खुश हैं क्योंकि उन्हें इस बात कि तसली है कि कम-से-कम उनके बच्चे भूखे तो नहीं सोते।

बिहार के ग्रामीण परिवेश से निकलकर शहर की भागदौड़ के साथ तालमेल बनाने के साथ ही प्रियंका सकारात्मक पत्रकारिता में अपनी हाथ आजमा रही हैं। ह्यूमन स्टोरीज़, पर्यावरण, शिक्षा जैसे अनेकों मुद्दों पर लेख के माध्यम से प्रियंका अपने विचार प्रकट करती हैं !

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