साल में एक बार खिलने वाले दैवीय फूल ब्रह्मा कमल कई मायनों में बेहद खास है। ब्रह्म कमल अर्थात ब्रह्मा का कमल, यह फूल मां नन्दा का प्रिय फूल है, इसलिए इसे नन्दाष्टमी के समय तोड़ा जाता है और इसके तोडऩे के भी सख्त नियम होते हैं। कहा जाता है कि आम तौर पर फूल सूर्यास्त के बाद नहीं खिलते, पर ब्रह्म कमल एक ऐसा फूल है जिसे खिलने के लिए सूर्य के अस्त होने का इंतजार करना पड़ता है। Qualities of Saussurea obvallata flower
कई नामों से मशहूर है ये फूल
ब्रह्मकमल को अलग-अलग जगहों पर अलग-अलग नामों से जाना जाता है जैसे उत्तराखंड में ब्रह्मकमल, हिमाचल में दूधाफूल, कश्मीर में गलगल और उत्तर-पश्चिमी भारत में बरगनडटोगेस नाम से इसे जाना जाता है। इस फूल का वर्णन महाभारत काल में भी हुआ था।
इन जगहों पर पाया जाता है ब्रह्मकमल
ब्रह्मकमल भारत के हिमाचल, उत्तराखंड, सिक्किम, अरूणाचल प्रदेश, कश्मीर में पाया जाता है। भारत के अलावा यह नेपाल, भूटान, म्यांमार, पाकिस्तान में भी पाया जाता है। हिमाचल में कुल्लू के कुछ इलाकों में, उत्तराखंड में यह पिण्डारी, चिफला, रूपकुंड, हेमकुण्ड, ब्रजगंगा, फूलों की घाटी, केदारनाथ आदि दुर्गम स्थानों पर ही मिलता है।
बर्फ से ढके ऊंचे हिमालय के शिखर को देवताओं का वास माना जाता है। वहां खिलने वाले इस अद्भुत फूल को दैवीय पुष्प कहा गया है। यह इतनी ऊंचाई पर पाया जाता है जहां पेड़ पौधों का अस्तित्व ही खत्म हो जाता है। Himalayan region flowers
औषधियों गुण और मादक खुशबू में सर्वोपरि
गर्म कपड़ों में डालकर रखने से यह कपड़ों में कीड़ों को नही लगने देता है। इस पुष्प का इस्तेमाल सर्दी-ज़ुकाम, हड्डी के दर्द आदि में भी किया जाता है। इस फूल की संगुध इतनी तीव्र होती है कि इल्का सा छू लेने भर से ही यह लम्बे समय तक महसूस की जा सकती है और कभी-कभी इस की महक से मदहोशी सी भी छाने लगती है। इसे सुखाकर कैंसर रोग की दवा के रुप में इस्तेमाल किया जाता है। इससे निकलने वाले पानी को पीने से थकान मिट जाती है। साथ ही पुरानी खांसी भी काबू हो जाती है। भोटिया जनजाति के लोग गांव में रोग-व्याधि न हो, इसके लिए इस पुष्प को घर के दरवाजों पर लटका देते हैं।