मंजिल उन्हीं को मिलती है जिनके सपनों में जान होती है,
पंख से कुछ नहीं होता, सपनों की उड़ान होती हैं।
इस पंक्ति को सही साबित कर दिखाया है एक सब्जी का ठेला लगाने वाले व्यक्ति ने। वह अपने जिंदगी में अनेकों संघर्षों का सामना कर अपने सपनों को उड़ान दिया है।
कौन है वह व्यक्ति
अपने सपने को उड़ान देने वाले व्यक्ति का नाम शिवाकांत कुशवाहा (Shivakant Kushwaha) है, जो मध्यप्रदेश (Madhya Pradesh) के सतना (Satna) जिले के अमरपाटन (Amarpatan) के रहने वाले हैं। उन्हें 9 बार असफलता हाथ लगी, फिर भी कोशिश जारी रखे और दसवीं बार में सफलता हासिल कर ही लिए। हर किसी में इतना सब्र भला कहां देखने को मिलता है लेकिन जो असफलता से हार नहीं मानते हैं वो एक ना एक दिन कामयाब जरूर होते हैं।
कभी-कभी सफलता की खुशी भी आंखें नम कर देती है, कुछ ऐसा ही हुआ शिवाकांत कुशवाहा (Shivakant Kushwaha) के साथ। जब उन्हें सिविल जज (Civil Judge) के लिए सफलता की ख़बर मिली तो उन्हें यकीन नहीं हो रहा था कि उनके साथ यह सच हो रहा है या सपना है। उनके साथ-साथ पूरे परिवार भी में भी खुशियों की लहर गूंज रही थी। उनके यहां बधाई देने वालों की लंबी-लंबी लाइनें लग गई थी, क्योंकि वे वह मुकाम हासिल किए थे जिसके लिए लोग सपने ही देखते रह जाते हैं।
शिवाकांत कुशवाहा ओबीसी वर्ग से प्रदेश में दूसरा स्थान प्राप्त किए हैं। यह सफलता सिर्फ उनके मेहनत के बदौलत उन्हें हासिल हुई है क्योंकि एक सब्जी बेचने वाला लड़का पढ़ाई के लिए कैसे समय निकाला होगा और वह अपने सपने को कैसे जिया होगा, यह हम भलिभाती समझ सकते हैं। उनके इस सफलता से उनके परिवार ही नहीं बल्कि पूरे गांव, नगर और प्रदेश में भी खुशियों की लहर छाई हुई थी।
मध्यमवर्गीय परिवार से ताल्लुक रखते हैं शिवाकांत
शिवाकांत कुशवाहा (Civil Judge Shivakant Kushwaha) एक मध्यमवर्गीय परिवार से ताल्लुक रखते हैं, उनके पिता भी मजदूरी किया करते हैं। वह अपने परिवार के साथ एक कच्चे मकान में ही गुजारा करते थे। उनके पिता का नाम कुंजीलाल कुशवाहा है, जो पूरे दिन मजदूरी करके अपने परिवार का भरण पोषण किया करते थे। यहां तक कि उनकी मां भी अपनी मूल जरूरतों को पूरी करने के लिए दूसरों के घरों में काम किया करती थी। शिवाकांत तीन भाई बहनों में दूसरे नंबर पर हैं। भले ही गुजारे की जिंदगी ही सही लेकिन इनका परिवार एक खुशहाल जीवन व्यतीत करता था। लेकिन कुदरत को भी यह मंजूर नहीं हुआ, कुछ समय बाद उनकी मां का निधन हो गया।
शिवाकांत कुशवाहा की शिक्षा
शिवाकांत बचपन से ही पढ़ाई में होनाहार थे और वे कुछ बड़ा करना चाहते थे। लेकिन घर के मजबूरियों के कारण उन्हें पढ़ाई करने में बाधा उत्पन्न होने लगी। वे घर के वर्तमान हालात को संभालने के लिए सब्जी का ठेला लगाने लगे। इसके बावजूद भी वे अपनी पढ़ाई जारी रखें। वे अमरपाटन के शासकीय स्कूल से 12वीं तक की पढ़ाई पूरी लिए, जिसके बाद रीवा के टी एस कॉलेज यानी ठाकुर रणमत सिंह महाविद्यालय से एलएलबी (LLB) की पढ़ाई पूरी किए, उसके बाद वे कोर्ट में प्रैक्टिस करने लगे।
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शिवाकांत के जज बनने का सफर
एलएलबी की पढ़ाई पूरी करके कोर्ट में प्रैक्टिस करने के दौरान ही शिवाकांत सिविल जज (Civil Judge Shivakant Kushwaha) की भी तैयारी करने लगे। उन्हें 9 परीक्षाओं में असफलता मिली लेकिन वे हार नहीं माने और कोशिश जारी रखें। आखिरकार दसवीं परीक्षा में वे सफलता प्राप्त कर ही लिए। वह ओबीसी श्रेणी में द्वितीय स्थान प्राप्त किए और जज बन गए।
शिवाकांत कुशवाहा (Judge Shivakant Kushwaha) के अनुसार उनके घर के हालात बहुत ही दयनीय थे। उनके पिता मजदूरी करने के साथ-साथ सब्जी बेचने का भी काम करते थे। सब्जी बेचकर जो पैसे मिलते थे उसी से घर के लिए राशन का सामान आता था। प्रतिदिन दुकान से राशन लाकर ही घर में चूल्हा जला करता था। हर रोज़ के जैसे एक समय शिवाकांत अपने घर के लिए राशन लाने गए तभी अचानक बारिश शुरु हो गई और उनका पैर फिसल गया, वे पानी में गिर गए। उनको सिर में काफी तेज चोट लगी और वे बेहोश हो गए। होश में आने के बाद वह यह तय किए कि वे पढ़ लिखकर घर के हालात दूर करेंगे।
जज बनकर मां का सपना पूरा किए शिवाकांत
शिवाकांत कुशवाहा की मां शकुन बाई कुशवाहा भी अपने परिवार का भरण-पोषण करने के लिए मजदूरी के साथ-साथ सब्जी का ठेला लगाया करती थी। लेकिन कैंसर की बीमारी के कारण 2013 में उनका निधन हो गया। उनका सपना था कि उनका बेटा शिवाकांत जज बने। भले ही उनके मां के जीवित रहते उनका यह सपना पूरा नहीं हो पाया लेकिन शिवाकांत इस बात को भूले नहीं, इसे पूरा करने के लिए अपनी जी जान लगा दिए और अपनी इस उपलब्धि को अपने मां को समर्पित कर दिए। उनके इस सफलता में उनके पिता, भाई-बहन सबकी अहम योगदान है।
20 घंटे तक पढ़ाई करते थे शिवाकांत
शिवाकांत कुशवाहा की पत्नी मधु कुशवाहा प्राइवेट स्कूल में शिक्षिका हैं। उनके अनुसार शिवाकांत 24 घंटे में पूरे 20 घंटे तक पढ़ाई करते थे। घर में जगह की कमी होने के कारण वे पढ़ने के लिए दूसरे के घर पर चले जाते थे। उनकी पत्नी भी उनके इस सफर में अपना पूरा सहयोग की है।
शिवाकांत कुशवाहा जिस तरह अपने सपने को पूरा करने के लिए अपनी गरीबी को भी बाधा नहीं बनने दिए और खुद मजदूरी करके अपनी पढ़ाई पूरी किए है। उनका यह संघर्ष उन युवाओं के मुंह पर पड़ा तमाचा है जो सारे सुख सुविधा वे मिलने के बाद भी कुछ नहीं कर पाते। शिवाकांत (Civil Judge Shivakant Kushwaha) से प्रेरणा लेकर सभी युवाओं को अपने पथ पर आगे बढ़ने चाहिए और सपनों की मंजिल तक पहुंचना चाहिए।