किसी ने सच ही कहा है कि अगर किसी व्यक्ति को जीवन में आगे बढ़ना होता है, वह किसी भी परिस्थति में आगे बढ़ ही जाता है। कुछ ऐसी ही कहानी महाराष्ट्र के पुणे ज़िले के रहने वाले ज्ञानेश्वर बोडके की है, जिन्होंने बचपन से ही काफी परेशानियों का सामना किया। उनके परिवार की आर्थिक स्थिति इतनी कमज़ोर थी कि उन्हें दसवीं के बाद पढ़ाई छोड़नी पड़ी परंतु, आज वह इंटीग्रेटेड फार्मिंग से लाखों की कमाई कर रहे हैं। इससे कई किसानों को रोज़गार भी मिल रहा है।
ज्ञानेश्वर बोडके महाराष्ट्र के पुणे ज़िले के मल्सी तालुके के रहने वाले हैं। उनका जॉइंट परिवार था। उनके परिवार की आर्थिक स्थिति काफी कमज़ोर थी। उनके परिवार में थोड़ी बहुत ज़मीन थी, जिससे उन सभी की जीविका जैसे-तैसे चल जाती थी। अपने परिवार की स्थिति देख ज्ञानेश्वर पढ़ लिखकर कुछ करना चाहते थे पर घर की आर्थिक स्थिति सही नहीं होने की वजह से उन्हें दसवीं के बाद पढ़ाई छोड़नी पड़ी। इसके बाद इन्होंने पुणे जाने को सोचा, और वहां किसी परिचित की मदद से एक ऑफिस बॉय की नौकरी करने लगे। इनकी नौकरी की वजह से घर का थोड़ा बहुत खर्च निकलने लगा परंतु हमेशा वह यही सोचते हैं कि वह जितना मेहनत करते हैं, उन्हें उतना वेतन नहीं मिल रहा है। अपनी नौकरी करने के 10 साल बाद उन्होंने उस नौकरी को छोड़ गांव लौटने को सोचा। गांव आकर उन्होंने बैंक से लोन लिया और फूलों की बागवानी शुरू की। इनकी मेहनत रंग लाई और आज वह इन फूलों की बागवानी से लाखों की कमाई करते हैं। इतना ही नहीं उनकी इस सोच के कारण वह कई किसानों को रोजगार भी दे रहे हैं।
लोगों ने उनका विरोध किया, परंतु उन्होंने हार नहीं मानी
ज्ञानेश्वर कहते हैं कि जब मैं सुबह 6:00 से रात 11:00 बजे तक ऑफिस में काम करता था। उस वक्त मैं कुछ नया करने को सोचता था। ऐसे ही एक दिन अख़बार में मैने एक किसान के बारे में पढ़ा जो पॉलीहाउस विधि से खेती करके साल में लगभग 12 लाख रुपए कमा रहा था। उसके बारे में पढ़कर मुझे लगा कि जब वह खेती करके इतनी कमाई कर सकता है तो मैं क्यों नहीं और यही सोच कर मैंने साल 1999 में नौकरी छोड़ गांव वापस लौट आया। मेरे गांव वापस लौट कर आने से घर के लोग मेरे विरुद्ध हो गए थे। वह सोचते थे कि मैं ही एक घर के लिए कमाने वाला था और अब वह भी बंद हो गया। उनका मानना है कि अगर खेती में मुनाफा होता तो लोग बाहर कमाने क्यों जाते ?
ज्ञानेश्वर गांव आने के बाद खेती के बारे में जानकारियां जुटाने लगे। वह ऐसे किसानों के पास आने-जाने लगे जो नई तकनीक से खेती करते थे। इसी दौरान पुणे में बागवानी और पॉलीहाउस को लेकर आयोजित हो रहे एक वर्कशॉप के बारे में उन्हें पता लगा। उस आयोजन में वह भी गए और 2 दिनों के वर्कशॉप में उन्हें थ्योरी तो बताई गई लेकिन प्रैक्टिकल लेवल पर कोई जानकारी नहीं मिली।
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खेती करने की विधि सीखने के लिए 17 किमी का सफर तय करके जाते थे
ज्ञानेश्वर बताते हैं कि ज़्यादा पढ़ा लिखा नहीं होने की वजह से वहां जो कुछ भी बताया जाता वह सब मेरे समझ से पड़े था। मैं पहले ही नौकरी छोड़ चुका था और नई खेती करने के बारे में ठीक से कोई मुझे समझा भी नहीं पा रहा था पर मैंने हार नहीं मानी और सोचा कि जो लोग इसमें काम कर रहे हैं, उनके साथ रह कर मैं यह काम सीख लूंगा। इसके बाद मैंने एक पॉलीहाउस जाना शुरु किया। वहां जाने के लिए मुझे साइकिल से 17 किलोमीटर का सफर तय करना पड़ता था। मुझे इसका फायदा हुआ और जल्द ही नई तकनीक के बारे में मुझे बहुत हद तक जानकारी मिल गई।
10 लाख का लोन साल भर में ही चुका दिया
ज्ञानेश्वर ने खेती के लिए बैंक से 10 लाख के लोन के लिए अप्लाई किए थे। अप्लाई करने के थोड़े ही दिनों बाद उन्हें बैंक के द्वारा लोन मिल गया। इसके बाद उन्होंने एक पॉलीहाउस तैयार किया और उन्होंने गुलनार और गुलाब जैसे सजावटी फूलों की खेती करना शुरू कर दी कुछ ही महीनों बाद जब वह तैयार हो गए तब उन्होंने फूल को लोकल मंडी में बेचना शुरू कर दिए। धीरे-धीरे जब लोगों के द्वारा रिस्पांस अच्छा मिलने लगा, तब उन्होंने होटल वाले से संपर्क किया। उन्होंने पुणे के बाहर भी अपने प्रोडक्ट का सप्लाई करने लगे। उन्होंने बताया कि मैंने 1 साल के अंदर बैंक को 10 लाख का लोन चुका दिया। जिसकी वजह से बैंक के मैनेजर ने मेरी काफी तारीफ की।
फूलों की खेती में नुकसान होने लगा तब सब्जियों की खेती करने लगे
ज्ञानेश्वर करते हैं कि कुछ ही बरसों के बाद फूलों की खेती में नुकसान होने लगी। देश में ज्यादातर लोग नर्सरी लगाने लगे जिसके कारण उसका भाव घट गया और मेरे सामने एक नई चुनौती आ गई, फिर मुझे इंटीग्रेटेड फॉर्मिंग कंसेप्ट के बारे में पता चला। जिसके जरिए अच्छा मुनाफा कमाया जा सकता है। फिर ज्ञानेश्वर उसी पॉलीहाउस में सब्जियों और फलों की खेती करना भी शुरू कर दिए। 3 से 4 महीने बाद सब्जियां निकलने लगी और फिर से वह अपने कामों में कामयाब हुए। फिलहाल अभी वह देशी केले, आम, देशी पपीते, स्वीट लाइम, अंजीर और कस्टर्ड सेब आदि की खेती करते हैं। इतना ही नहीं वह सभी सीजनल और ऑफ सीजन सब्जियां भी उगा रहे हैं। फलों और सब्जियों के साथ-साथ अब वह दूध की भी सप्लाई करना शुरू कर दिए हैं फिलहाल अभी उनके पास चार से पांच गाये हैं। वह दूध को पैकेट में भरकर लोगों के घर डिलीवरी करते हैं।
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ऑनलाइन डिलीवरी कई शहरों में करते हैं
ज्ञानेश्वर के पास एक सबसे बड़ी समस्या थी, ग्राहकों के पास अपने प्रोडक्ट को पहुंचाना। उन्होंने बताया कि एक बार उनकी मुलाकात नाबार्ड के कुछ अधिकारियों से हुआ। उन्होंने उनसे कहा कि आप लोग जो प्रोडक्ट मार्केट से खरीदते हैं, अगर वही प्रोडक्ट हम आपके घर पहुंचाए तो क्या आप खरीदेंगे। ज्ञानेश्वर ने बताया कि अधिकारियों ने हमसे प्रोडक्ट को खरीदने में दिलचस्पी दिखाई और ट्रायल के लिए कुछ प्रोडक्ट मांगे, जो उन्हें काफी पसंद आए। इसके बाद वह हमारे नियमित ग्राहक बन गए।
ज्ञानेश्वर फिलहाल एक एप भी लॉन्च किए हैं। उस ऐप की मदद से लोग आर्डर करते हैं और सामान उनके घर तक पहुंच जाता है। इसके लिए उन्होंने स्पेशल ऑटो और कुछ लग्जरी बस भी रखी हैं जिसके जरिए वह पुणे, गोवा, मुंबई, नागपुर, दिल्ली और कोलकाता में अपने प्रोडक्ट की सप्लाई करते हैं। उन्होंने गांव के कुछ किसानों के साथ मिलकर अभिनव फार्मिंग क्लब नाम से एक ग्रुप भी बनाया है। इस ग्रुप में अभी 300 से ज़्यादा किसान जुड़ चुके हैं। उनका कहना है कि इस ग्रुप से जुड़ा हर किसान 8 से 10 लाख रुपए का सालाना कमा रहे हैं।
कैसे करें इंटीग्रेटेड फार्मिंग?
इंटीग्रेटेड फार्मिंग (एक समय में एक ही खेत में कई फसलों को उगाना) इसमें एक घटक को दूसरे घटक के उपयोग में लाया जा सकता है। जैसे अगर आप फलों और सब्जियों की खेती करते हैं तो आप गाय और भैंस भी पाल सकते हैैं। इससे आपको उनके लिए चारे की भी कमी नहीं होगी और इन मवेशियों के गोबर का भी उपयोग ऑर्गेनिक खाद के रूप में किया जा सकता है। इस तरीके से आप कम लागत में अधिक कमाई कर सकते हैं, साथ ही समय की भी बचत होती हैं। ज्ञानेश्वर ने अपने 1 एकड़ को चार सब – प्लांट में बांट दिया है। जिस के एक हिस्से में फल और दूसरे हिस्से में विदेशी सब्जियां ऐसे ही तीसरे में दाल और चौथे में पत्तेदार सब्जियां उगाते हैं।
आइए जानते हैं पॉलीहाउस कैसे लगवाएं?
पॉलीहाउस एक तकनीक है, जो खेती जैसी ही है इसके द्वारा हम ऑफ सीजन में भी सब्जियों और फलों की खेती आसानी से कर सकते हैं। इसका स्ट्रक्चर स्टील से बनाया जाता है और प्लास्टिक की सीट से ऊपर का हिस्सा ढक दिया जाता है। इसे ढकने के सबसे बड़ा फायदा यह है कि बारिश होने या गर्मी का असर इस पर नहीं होता है। इसके अलावा पानी की भी कमी नहीं होती है। ज्ञानेश्वर का कहना है कि जो लोग पॉलीहाउस लगाना चाहते हैं, वे बैंक से लोन ले सकते हैं। इसके साथ ही 50 फ़ीसदी सब्सिडी राज्य सरकार भी देती है। एक सिंपल पॉलीहाउस लगाने में लगभग 5 से 6 लाख का खर्च आता है और कम से कम 10 साल इसकी जीवन होती है, जबकि इससे 3 से 4 लाख रुपए सालाना कमाई की जा सकती है।
यदि आप भी पॉलीहाउस शुरू करना चाहते हैं तो इसके लिए नजदीकी कृषि विज्ञान केंद्र या कृषि विश्वविद्यालय से संपर्क कर सकते हैं, अथवा किसी सफल किसान ने अगर पॉलीहाउस लगाया है और खेती कर रहा है तो आप उससे भी इस खेती के बारे में जानकारी ले सकते हैं।