हमारे देश में ऐसे बहुत से व्यक्ति हैं, जिन्हें डायबिटीज़ की दिक्कत है। ऐसे में अधिकतर घरों में शुगर फ्री प्रोडक्ट्स का इस्तमाल किया जाता है। माना जाता है कि शुगर फ्री प्रोडक्ट्स के प्रयोग से डायबिटीज़ का रोग निरंतन में रहता है। शुगर फ्री को नेचुरल स्वीटनर ( Natural Sweeteners) भी कहा जाता है। अब देश के साथ-साथ विदेशों से भी इसकी मांग की जा रही है।
उत्तर प्रदेश में नेचुरल स्वीटनर की खेती
नेचुरल स्वीटनर यानी,शुगर फ्री की खेती उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh) के लखीमपुर खीरी (Lakhimpur Kheri) में की जा रही है। आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि इसकी शुरूआत एक लड़की ने की है, जिसने बहुत से किसानों की किस्मत भी बदल दी है। आज हम जिस लड़की की बात करेंगे वह सिंगापुर (Singapore) में अच्छी नौकरी थी परंतु उन्होंने लखीमपुर खीरी को बदलने का फैसला किया और नौकरी छोड़ वापस आ गईं।
सिंगापुर की नौकरी छोड़ कर रही खेती
स्वाति पांडेय (Swati Pandey) ने लखीमपुर खीरी की किसान हैं। वह इस समय भारी मात्रा में स्टेविया (Stevia) उगा रही हैं। स्वाति नीमगांव इलाके के कोटरा गांव की रहने वाली हैं। स्वाति धनबाद (Dhanbad) आईआईटी से इंजीनियरिंग करने के बाद उन्हें कॉमनवेल्थ गेम्स स्कॉलरशिप मिली और वह पीजी करने लंदन चली गईं। इसी दौरान स्वाति को सिंगापुर में अच्छी नौकरी मिल गई और वह सिंगापुर चली गई। स्वाति बताती हैं कि सिंगापुर में नेचुरल स्वीटनर की डिमांड काफी ज्यादा है। यही उन्हें स्टेविया (Stevia) का आईडिया आया था।
अपने गांव को सुधारने का किया फैसला
स्वाति सिंगापुर से नौकरी के दौरान एक बार अपने गांव कोटरा गई थी। उन्होंने अपनी गांव की खराब हालत देख उसे सुधारने का फैसला किया। स्वाति ने सबसे पहले लखीमपुर खीरी में स्टेविया की नर्सरी बनाई और उसके बाद उन्होंने लीज पर ज़मीन लेकर खेती की शुरूआत की। वह तीन सालों तक यह रिसर्च करते रही कि कौन-से वैरायटी का स्टेविया लगाना सही होगा? इसी तरह उनकी खेती बहुत जल्द एक कंपनी बन गई।
स्टेविया की खेती से हो रहा किसानों को लाभ
अब स्वाति करीब 100 एकड़ में स्टेविया की खेती कर रही हैं।इससे उनके गांव के अन्य किसानों और व्यापारियों को लाभ हो रहा है। हमारे देश में स्टेविया का बाज़ार तेज़ी से आगे बढ़ रहा है। इंडस्ट्री एआरसी बताते हैं कि पिछले पांच सालों में मलेशिया की एक कंपनी ने भारत में 1200 करोड़ का बिजनेस किया है। साथ ही ग्लोबल मार्केट इस समय लगभग 5000 करोड़ रुपये का हो गया है। पूरे विश्व में केवल भारत में ही स्टेविया से बने 100 से अधिक प्रोडक्ट्स पाए जाते हैं।