हिन्दू धर्म के पूजा पाठ में मखाना विशेष रूप से उपयोग किया जाता है। यह देखने में खूबसूरत होता है एवं इसका स्वाद बहुत है स्वादिष्ट होता है। इसके साथ ही यह पौष्टिक गुणों से भरपूर होता है लेकिन क्या आप जानते हैं कि इसके निर्माण में पारंपरिक तरीकों का उपयोग किया जाता है? अगर नहीं जानते तो हमारे इस लेख को अवश्य पढ़ें।
डाक्टर राजेंद्र प्रसाद केंद्रीय कृषि विश्व विद्यालय के प्रोफेसर प्लांट पैथोलॅजी एवं डायरेक्टर अनुसंधान डाक्टर एसके सिंह बताते हैं कि हमारे देश को मखाना से हर साल लगभग 25 करोड़ के करीब विदेशी मुद्रा प्राप्त होता है। इसे हमारे बिहार राज्य से मध्य प्रदेश एवं अन्य शहरों में निर्यात के लिए भेजा जाता है। इसकी खेती में कृषि रसायनों का उपयोग कम होता है इसलिए इसे जैविक भोजन माना जाता है।- know the facts behind the cultivation of makhana
कटाई का वक़्त सुबह 7 बजे से शाम 5 बजे तक
डॉक्टर एस के सिंह ने बताया कि मखाने को खेती से हमारे घर तक आने में बहुत समय लगता है। इसके फसल की कटाई सुबह 7:00 बजे से लेकर 5:00 बजे शाम तक की जाती है। पहले तलाब के तल से इसकी खेती की जाती थी। जहां से बीज को निकालना बहुत ही मुश्किल हुआ करता था। हालांकि अब खेतों में भी मखाना को उगाया जा रहा है।- know the facts behind the cultivation of makhana
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धूप में सुखाकर किया जाता है पैक
मखाना के बीज को इकट्ठा करने के उपरांत उसे एकत्रित करने के लिए “गांजा” नामक एक सींग के आकार की उपकरण का उपयोग किया जाता है। आगे इसे बेलनाकार आकृति वाले उपकरण में रखकर हिलाया जाता है ताकि ये अच्छी तरह साफ हो सके। इसके उपरांत इसे धूप में रखा जाता है फिर बैग में पैक किया जाता है। अधिक दिनों तक इसके बीजों को घर में रखने के लिए गाय के गोबर से ढक दिया जाता है और उस पर प्लास्टर भी किया जाता है। तापमान अच्छी तरह बना रहे इसलिए इसे मोटे कपड़े से ढकना अनिवार्य है।- know the facts behind the cultivation of makhana
उत्पादन स्तर पर बीज के 2 प्रकार होते हैं
इसकी ग्रेडिंग के लिए अलग-अलग क्रियाओं का उपयोग किया जाता है। इसके बीजों को अन्य प्रकार की छलनियों से होकर गुजरने के लिए निर्माण किया जाता है। जिस कारण इनकी पैकिंग अच्छी तरह से हो जाती है। इसकी ग्रेडिंग भुनने के वक्त प्रत्येक नट को एक समान रूप से ही गर्म करने में इसे सक्षम बनाती है, जिससे इसके प्रसंस्करण की दक्षता बढ़ती है। अगर इसके बीज की बात की जाए तो ये दो प्रकार के होते हैं। एक लावा और दूसरा थुर्री। लावा लाल रंग के धब्बे के साथ सूजा हुआ होता है जबकि थुर्री सफेद रंग का होता है। वही पूरी लाल सिंह के साथ आधी भुनी और कठोर होती है।- know the facts behind the cultivation of makhana
मखाने के बीज को सुखाने के तुरंत बाद ही भून देना चाहिए। आगे इन्हें उस वक़्त तक साफ किया जाता है, जब तक इसका रंग सफेद ना हो जाए। जब इसके कश टूट जाते हैं, तो गिरी बाहर निकल जाती है और इसका आकार में दोगुनी हो जाता है। इसे मखाना, लावा या पॉप के नाम से जाना जाता है। इसके बीजों को बांस की टोकरियों से आपस में रगड़कर पॉलिसिंग किया जाता है। पॉलिसिंग द्वारा इसकी सतह चिकनी होती है और यह अधिक चमकदार और सफेद बनाता है। इसकी पैकेजिंग के लिए साधारण जुट के बोरो और पॉलीथिन बैग का प्रयोग किया जाता है। – know the facts behind the cultivation of makhana
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