तकनीक इतना विकास कर चुका है कि अब किसी भी समस्या का निवारण सम्भव है। हम सब जानते हैं कि पराली के जलाने से कितना हानि पंहुचता है, जिससे निजात पाने के लिए हमारे वैज्ञानिक ने इससे उर्वरक बनाना प्रारंभ कर दिया।
परली जलाने की जरूरत नहीं
आईआईटी (IIT) हैदराबाद एवं केआईआईटी (KIIT) स्कूल ऑफ आर्किटेक्चर भुनेश्वर ने एग्रीकल्चर वेस्ट यानी पराली के उपयोग का एक नया आईडिया निकाला है। पहले जो प्रणाली जलने से प्रदूषण फैलती थी। अब उसे जलाने की जरूरत नहीं है।
बायो ब्रिक्स का होगा निर्माण
पराली द्वारा अब बायो ब्रिक्स का निर्माण किया जा रहा है। इसके समर्थन के लिए मेटल का उपयोग हो रहा है। इमारत की छत पर पीवीएस सीट (PVS Sheet) और बायो ब्रिक्स लगाए गए हैं जिससे इसका तापमान 6 डिग्री से भी कम है। बारिश से बायोब्रिक का बचाया जा सके इसके लिए दीवार सीमेंट से प्लास्टर हुआ है।
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देश की पहली इमारत
The Indian Express न्यूज़ रिपोर्ट के मुताबिक बीते गुरुवार को आईआईटी हैदराबाद में एग्रोवेट से बनाएं बायोब्रिक से भवन का निर्माण हुआ। इससे बनाई गई देश की पहली इमारत का उद्घाटन किया गया।
कृषि मॉडल का विकास
आईआईटी हैदराबाद के डायरेक्टर बीएस मूर्ति ने कहा कि कृषि मंत्रालय को इस मॉडल को ग्रामीण क्षेत्रों में ज्यादा तादात में पहुंचाने का एक प्रस्ताव भेजेंगे। आईआईटी के शोधकर्ताओं ने दर्शाया कि एग्रीकल्चर वेस्ट को भी सस्टनेबल मटेरियल में परिवर्तित किया जा सकता है।
कौन लोग हैं शामिल?
इमारत के निर्माण के रिसर्च के पीछे स्कॉलर Priya Rautray, Avik Roy, असिस्टेंट प्रोफेसर केआईआईटी स्कूल ऑफ आर्किटेक्चर भुनेश्वर की परिश्रम है। दीपक जॉन मैथ्यू का आईआईटी हैदराबाद के डिजाइन डिपार्टमेंट के हेड प्रोफेसर है यह सारे कार्य उनके शोध में हुआ है।
किसानों की बदलेगी तकदीर
मैथ्यू ने यह बताया कि इस तकनीक द्वारा किसानों की ज़िंदगी बदल जाएगी। वह इसलिए क्योंकि एग्रीकल्चर वेस्ट की बिक्री से उन्हें पैसे मिलेंगे। साथ ही पर्यावरण का संरक्षण भी होगा।