Wednesday, December 13, 2023

द ब्लैक टाइगर नाम से मशहूर वो भारतीय जासूस जिनके नाम के बिना जासूसी की दुनिया अधूरी है।

कहते हैं फिल्मों और असल जिंदगी में बहुत कुछ अलग होता है पर आज हम आपको एक ऐसे महान व्यक्ति की कहानी बताएंगे जो आपको भी सोचने पर मजबूर कर देगा।

आज हम जानेंगे भारत के महान जासूस (Spy) रविंद्र कौशिक (Ravindra Kaushik) के बारे में जिन्होंने अपना नाम बदल कर पाकिस्तान में पहुंच गए। वहां जाकर वे आर्मी ज्वाइन किए और मेजर का पद संभाला। वहां उनका एक लड़की से प्यार करना और फिर शादी करना एक फिल्मी कहानी से कम न था। सब कुछ ठीक चल रहा था कि तभी भारत के ही एक जासूस की वजह से वे पकड़े गए।

रविंद्र के पकड़े जाने के बाद आप अंदाजा लगा सकते है कि उनके साथ किस तरह का व्यवहार किया गया होगा। जी हां कितने सालों तक उन्हें रोंगटे खड़े कर देने वाला टॉर्चर किया गया। कुछ सालों बाद उन्होंने पाकिस्तान की ही जेल में आखिरी सांस ली। आपको बता दें कि इन्हें भारतीय खुफिया गलियारों में ‘द ब्लैक टाइगर’ के नाम से जाना जाता था।

महान जासूस, जिन्होंने रचा इतिहास

किसी ने सच हीं कहा है कि किसी भी कार्य को करने के लिए हिम्मत के साथ हीं साथ हौसले की भी जरूरत होती है। जरा सोंचिए रविंद्र कौशिक के पास कितनी हिम्मत होंगी कि वे किसी अन्य मुल्क में एक जासूस के रूप में गए और कई दिनों तक अपना वजूद छुपा कर अपने देश के हित के लिए कार्य किए।

मलय कृष्ण धर की एक किताब ‘मिशन टू पाकिस्तान: एन इंटेलिजेंस एजेंट इन पाकिस्तान’ (‘Mission to Pakistan : An Intelligence Agent in Pakistan) इसी ‘ब्लैक टाइगर’ पर आधारित है। वैसे हीं सलमान खान की आई मूवी ‘एक था टाइगर’ भी इन्हीं से प्रेरित करती थी। कहा यह भी जा रहा है कि अब फिल्म मेकर राजकुमार गुप्ता कौशिक की बायोपिक बनाने वाले हैं जिसमें उनकी भूमिका एक बार फिर सलमान खान ही करते नजर आएंगे।

Ravindra Kausik the Indian Spy known as The Black Tiger

कई टॉर्चर सहे पर जुबां नहीं खोली

कहते हैं देश पर मरने वाला अपनी जान की परवाह नहीं करता है। उस पर लाख मुसीबत क्यों ना आ जाए पर वह उसका डटकर मुकाबला करता है। रविंद्र कौशिक की जीवन की आखिरी 18 साल पाकिस्तान की अलग-अलग जेलों में गुजरी। ये समय उनके लिए बेहद खतरनाक थे। उन्हें कितना टॉर्चर किया गया ताकि उनके पास जितनी भी खुफिया राज थे उसकी जानकारी दें परन्तु उन्होंने कभी इसका खुलासा नही किया और इस राज को राज हीं रहने दिया।

देश की मिट्टी भी नहीं हुई, नसीब

सब कुछ ठीक ही चल रहा था की भारत के हीं भेजे गए एक जासूस के कारण वे पकड़े गए। पकड़े जाने के बाद पाकिस्तान में उन्हें मौत की सजा सुनाई गई, फिर कुछ समय बाद यह सजा उम्र कैद में बदल दी गई। करीब 2 सालों तक उन्हें खूब टॉर्चर किया गया। साथ ही उन्हें जेल में कई तरह के कठिनाइयों का सामना करना पड़ा।

जेल में कौशिक को टीवी जैसी खतरनाक बीमारी होने के कारण उनकी मौत हो गई। ऐसे वीर की बदकिस्मती हीं थी कि जिसने अपने वतन के लिए अपनी कुर्बानी दी फिर भी उन्हें देश की मिट्टी नसीब नहीं हुई। हालात ऐसा हो गया कि उनका पार्थिव शरीर भारत नहीं लाया जा सका। इतना हीं नहीं उन पर कई आरोप लगाया गया। पाकिस्तान में पकड़े जाने के बाद भारत सरकार ने उनसे पल्ला झाड़ लिया और उन्हें छुड़ाने की कोशिश भी नहीं की। हालांकि इसमें भारत की भी अपनी कुछ मजबूरी थी क्योंकि अक्सर जासूस का कोई वतन नहीं होता है और उसका अपना मुल्क हीं उसे अपना मानने से इंकार कर देता है। जासूसी की दुनिया में यह एक कड़वा सच है।

Ravindra Kausik the Indian Spy known as The Black Tiger

आईए जानते है, इनके बारे में कुछ खास

रविंद्र कौशिक (Ravindra Kaushik) का जन्म राजस्थान के सरहदी जिले श्रीगंगानगर में 11 अप्रैल 1952 को हुआ था। वर्ष 1965 की भारत पाक युद्ध के समय वे किशोरावस्था में अपना कदम रखे थे। अपनी यंग एज में कदम रखते ही इन्होंने 1971 की भारत-पाकिस्तान युद्ध की गवाह बने और यहीं कारण है कि छोटी सी उम्र से ही इनमें देशभक्ति की जज्बा पूरी तरह से समाहित हो गई थी। इनके पिता एयर फोर्स में अधिकारी थे और अपने पिता को ही देखकर इनमें देश के लिए मर मिटने का हिम्मत और जज्बा जन्म लिया।

थिएटर ने बनाया जासूस

रविंद्र कौशिक की पढ़ाई श्रीगंगानगर के एक सरकारी स्कूल से ही हुई इंटरमीडिएट की पढ़ाई के बाद उन्होंने वहां के एसडी बिहानी कॉलेज (SD Bihani College) में बी. कॉम. में प्रवेश लिया। साथ हीं उन्हें अभिनय और मिमिक्री का काफी शौक था, इस कारण उन्होंने 21 साल की उम्र में लखनऊ में नेशनल थिअट्रिकल फेस्टिवल में हिस्सा लिया।

भारतीय खुफिया एजेंसी R&AW (Research and Analysis Wing) में भी जाना इनका एक संयोग ही था। कहा जाता हैं कि कॉलेज में ही किसी नाटक में उनके अभिनय पर एक अधिकारी की नजर पड़ी। उनके अभिनय से वे अधिकारी बहुत प्रभावित हुए और इस तरह से कौशिक की जासूसी की दुनिया में जाने का रास्ता मिला।

साल 1973 में RAW का बने हिस्सा

कौशिक ने अपना बी. कॉम. वर्ष 1973 में पूरा किया। इसके बाद उन्होंने अपने पिता को बताया कि वे दिल्ली जाना चाहते है और वहीं जाकर कोई जॉब करना चाहते है। दिल्ली जाकर 23 वर्ष की उम्र में वे RAW से जुड़ गए। उनके दिल्ली आने के बाद उनकी 2 साल की कड़ी ट्रेनिंग हुई और फिर उन्हें ट्रेनिंग के दौरान उर्दू भाषा और मुस्लिम रीति रिवाज भी सिखाई गई। उन्होंने पाकिस्तान का इतिहास भूगोल सब कुछ अपने मस्तिष्क में बिठा लिया। पाकिस्तान से जुड़े हर एक चीज उन्हें सिखाई गई। उनके लिए यह सब चीजें पुरानी नहीं थी क्योंकि उन्हें इसमें दिलचस्पी थी। उन्होंने बहुत जल्द ही सब कुछ समझ लिया। हालांकि शुरुआती दिनों में उन्हें कुछ वक्त के लिए दुबई (Dubai) और अबू धाबी (Abu Dhabi) भेजा गया ताकि वह पूरी तरह से सशक्त हो जाए।

Ravindra Kausik the Indian Spy known as The Black Tiger

पुराना रिकार्ड हुआ खत्म और नबी अहमद शाकिर के रूप में हुआ दूसरा जन्म

रविंद्र कौशिक से जुड़े सभी भारतीय रिकार्ड साल 1975 में RAW ने नष्ट कर दिया और एक नए नाम के साथ नई पहचान मिली, ‘नबी अहमद शाकिर (Nabi Ahmed Shakir),’ नागरिकता- पाकिस्तानी, पता- इस्लामाबाद यहां तक कि उनका खतना भी कराया गया। इसके बाद उन्होंने अपने नए नाम और नई पहचान के साथ पाकिस्तान में अपना कदम रखा।

पाकिस्तान जाकर किया LLB की पढ़ाई

पाकिस्तान जाने के बाद रविंद्र कौशिक (नबी अहमद शाकिर) नी कराची यूनिवर्सिटी से बाकायदे LLB की पढ़ाई कंप्लीट की और फिर वे वहां की गोपनीय और संवेदनशील सूचनाओं के लिए सीधा सेना में भर्ती हो गए थे क्योंकि इससे उनका काम और भी आसान हो जाता। पाकिस्तानी सेना में धमाकेदार एंट्री ली। इतना हीं नहीं वे अकाउंट्स डिपार्टमेंट (accounts department) में बतौर कमिशंड अधिकारी बने और धीरे-धीरे मेजर की रेंज तक पहुंच गए।

पाकिस्तानी लड़की से हुआ प्यार, फिर की शादी

सेना में रहते हुए रविंद्र कौशिक को एक पाकिस्तानी लड़की जिसका नाम था अमानत (Amanat) उससे मोहब्बत हो गया। अमानत के पिता आर्मी की एक यूनिट में दर्जी का काम करते थे। दोनों में प्यार होने के बाद उन्होंने शादी कर ली। कौशिक जब तक पकड़े नही गए तब तक अमानत को भी पता नहीं चला कि उसका पति नबी अहमद शाकिर नहीं बल्कि रविंद्र कौशिक है, पाकिस्तानी सेना में अफसर लेकिन भारत का जासूस एक भारतीय नागरिक है।

Ravindra Kausik the Indian Spy known as The Black Tiger

‘द ब्लैक टाइगर’ नाम क्यों मिला?

रविंद्र कौशिक ने पाकिस्तानी सेना में रहते हुए, पाकिस्तान के ऐसे कई गोपनीय अथवा संवेदनशील सूचना भेजते थे जो हमारे देश के लिए बहुत जरुरी थे। उस वक्त दोनों मुल्क के बीच बहुत हीं ज्यादा दुश्मनी थी। हालांकि 1971 में जंग बीत चुकी थी पर इतिहास में अपनी करारी शिकायत दर्ज कराने एवं भूगोल में पूर्वी पाकिस्तान को हमेशा-हमेशा के लिए खो देने के बाद पाकिस्तान हर वक्त बदले की सोच में ही रहता था। भारत में अस्थिरता फैलाने का कुचक्र रच रहा था और पंजाब आतंकवाद की आग में झुलस रहा था।

भारत के खिलाफ पाकिस्तान जो भी साजिश रचता था वह कभी पूरा नहीं होता था। नई दिल्ली को पहले ही खतरे की भनक लग जाती थी। इंडियन डिफेंस सर्कल में कौशिक ‘द ब्लैक टाइगर’ के नाम से मशहूर इसी समय हो गए। ऐसा भी कहा जाता है कि उन्हें यह नाम खुद तत्कालीन प्रधानमंत्री ‘इंदिरा गांधी’ (Prime Minister Indira Gandhi) ने दिया था।

कैसे गए पकड़े?

रविंद्र कौशिक ने अपनी पहचान छुपाकर पाकिस्तान में अपनी पढ़ाई पूरी किया और सेना में भी भर्ती हुए। यहां तक कि अंदर की हर खुफिया जानकारी भारत को भेजते थे और किसी को उनपर शक भी नहीं होता था, पर समय को कुछ और ही मंजूर था और 1983 में उनके राज पर से पर्दा हट गया, मगर इस समय भी गलती इनकी नही थी।

आपको बता दें कि RAW ने एक नया जासूस इनायत मसीह (grace christ) को कौशिक से संपर्क में रहने के लिए भेजा। उस वक्त मसीह पाकिस्तानी खुफिया अधिकारियों के हाथों पकड़े गए और पूछताछ में उसने मेजर नबी अहमद शाकिर का भी राज बता दिया। उसके बाद पाकिस्तानी अधिकारियों ने मशीन से कहां की वह रविंद्र कौशिक को अपने साथ एक पार्क में आने को कहे, जब उनके बुलाने पर कौशिक उस पार्क में आए, उसी वक्त उन्हें जासूसी के आरोप में गिरफ्तार कर लिया गया। यह समय हमारे देश के लिए बहुत बुरा था, क्योंकि इस समय देश के एक महान और ईमानदार जांबाज जासूस पकड़ा जा चुका था।

कौशिक पकड़े गए थे, तब उनकी उम्र 29 साल थी। उन्हें साथ अगले 2 वर्ष तक टॉर्चर किया गया और साथ ही उन्हें ऑप्शन दिया गया कि अगर वे भारतीय सेनाओं की गोपनीय जानकारी इन्हें देंगे तो उन्हें वह मुक्त कर दिया जाएगा। कौशिक ने लाख यातनाएं सहने के बाद भी अपना जवान नहीं खोला। साल 1985 में उन्हें मौत की सजा सुनाई गई और फिर इसे उम्र कैद बदल दी गई।

Ravindra Kausik the Indian Spy known as The Black Tiger

साल 2001 में टीबी और दिल का दौरा पड़ने से हुई मौत

कभी सियालकोट तो कभी कोट लखपत तो कभी मियांवाली जेल में रविंद्र कौशिक को रखा जाता था। वहां उन्हें कई तरह के टॉर्चर किए जाते थे। जेल में उन्हें पर्याप्त मात्रा में भोजन न मिलने के कारण उन्हें टीवी जैसी खतरनाक बीमारी ने जकड़ लिया। नवंबर 2001 में उनका टीवी और दिल के दौरा पड़ने से निधन हो गया। उनका बदकिस्मती था कि उनके शव को भारत नहीं लाया जा सका। मुल्तान की सेंटर जेल में ही उन्हें दफना दिया गया। यह खबर सुनकर उनके घर की हालत ऐसी हो गई कि कुछ हीं महीने बाद उनके पिता के भी दिल के दौरा पड़ने से मौत हो गई।

जब खत में छलका था दर्द

एक रिपोर्ट के अनुसार पाकिस्तान की जेल में रहते हुए उन्होंने अपने परिवार को एक खत लिखा था गिरफ्तारी के बाद भारत सरकार ने जिस तरह से उन्हें त्याग दिया था, वे देखकर उन्हें काफी ठेस पहुंचा था, जिसके बाद उन्होंने एक खत में अपना पूरा दर्द बयां किया था। जब भारत जैसे बड़े देश के लिए कुर्बानी देने वाले का ये हाल होता है। एक रिपोर्ट के मुताबिक उस खत का भी जिक्र है जिसे उन्होंने अपनी मौत से महज 3 दिन पहले लिखा था। उन्होंने लिखा था कि ‘अगर मैं अमेरिकी होता तो मैं 3 दिन के अंदर इस चीज से बाहर आ चुका होता।’

Ravindra Kausik the Indian Spy known as The Black Tiger

भारत सरकार से परिवार वालों ने लगाई थी, गुहार

रविंद्र कौशिक की पकड़े जाने की खबर जब उनके घर वालों ने सुना तब उन्होंने इनकी रिहाई के लिए साल 1987 से लेकर उनकी मौत तक गुहार लगाई, परंतु उनका बात नहीं सुना गया हर बार यही जवाब मिलता था कि पाकिस्तान के सामने इस मामले को रखा गया है। इनकी मौत के बाद भी परिवार वालों ने उनके योगदान को मान्यता दिलाने के लिए सरकार को खत लिखा। परिवार ने भारत सरकार पर यह भी आरोप लगाया कि उसने कभी भी कौशिक को जेल से छुड़ाने की कोशिश तक नहीं की यहां तक कि मानवीय आधार पर भी नहीं। ऐसे ही एक खत में उनकी मां ‘अमला देवी’ ने सरकार पर आरोप लगाया था कि जब वे मर रहे थे तब भी उन्हें दवाइयां नहीं पहुंचाई गई।

आपको बता दें कि उनकी भेजी गईं सूचनाओं की वजह से देश के कम से कम 20,000 जवानों की जान बचाई गई थी, परंतु उनके लिए किसी भी तरह की कोशिश भी नहीं किया गया। उनके परिवार को सरकार ने हर महीने महज ₹500 की मदद दी और आखिरी में उन्हें ₹2,000 देने लगे। साल 2006 में कौशिक की मां अमला देवी की भी मौत हो गई और इसके साथ ही यह मदद भी बंद हो गई।

सरकार से मान्यता प्राप्त होना तो अलग बात है, परंतु रविंद्र कौशिक ने अपना नाम जिस तरह से भारतीय इतिहास में दर्ज कराया उसे दुनियां हमेशा याद रखेगी। कहते है कि जासूसों का लिस्ट ‘द ब्लैक टाइगर’ के नाम के बिना अधूरा है।