जिस फिल्म का इंतजार हम सभी को था वो डिजिटल पटल पर आ गई है । वैसे सुशांत सिंह राजपूत के चाहने वालों की मांग थी कि इसे परंपरागत तरीके से सिनेमा घरों में लगाया जाए । पर मौजूदा समय में यह बात व्यावहारिक नहीं है और समय के साथ बदलाव को हमें स्वीकार करना चाहिए।
बात अब फिल्म की करें तो मुकेश छाबड़ा निर्देशित “दिल बेचारा” कैंसर बिमारी के इर्द-गिर्द घूमती है। किजी (संजना सांघी,बंगाली), मैनी (सुशांत सिंह राजपूत,ईसाई), जेपी (साहिल वैद,बिहारी) अर्थात् पूरे उत्तर भारत को समेटने की कोशिश की गई है। शहर के रूप में झारखंड के जमशेदपुर को दिखाया गया है जो कि रोचक है।
किजी थायराइड कैंसर से पीड़ित है। ऑक्सीजन का छोटा सिलेंडर जिसका नाम पुष्पेन्द्र है, उसे साथ लेकर चलती है । और इस बिमारी में रोज रोज एक ही दिनचर्या से वह परेशान हो गयी है। और अपने चहेते संगीतकार अभिमन्यु वीर(सैफ अली खान) से मिलने की तमन्ना रखती है।
मैनी जो कि बोन कैंसर से पीड़ित हैं । वह किजी से उल्टा मस्तमौला है। रजनी कांत का जबरा फैन हैं। उसका उद्देश्य अपने दोस्त जेपी का सपना पूरा करना है और जेपी का सपना है एक भोजपुरी फिल्म बनाना। जेपी आंखों के कैंसर से पीड़ित हैं ।
शशांक खेतान और सुप्रतिम सेनगुप्ता ने भी बेहतरीन अभिनय किया है। सैफ अली खान छोटे मगर बेहद जरूरी भूमिका में हैं। उनकी कही हर एक बात सुनकर सुशांत का रिएक्शन बेहद दमदार है। फिल्म कही-कही पर छोड़ दिया जाए तो बनावटी से ज्यादा व्यावहारिक लगती है और फिल्म प्रेमियों के साथ-साथ संगीत प्रेमियों के लिए भी अच्छा है। काफी समय के बाद ऐ.आर. रहमान ने फिल्म में संगीत दिया है।
बात अगर सुशांत सिंह राजपूत की करें तो अपने छोटी सी फिल्मी कैरियर(2013-2020) में कुल दस फिल्में की, और सब एक से बढ़कर एक रही। “काय पो छे” से शुरू हुई तो दिल बेचारा पर खत्म। बीच में शुद्ध देसी रोमांस, पीके, डिटेक्टिव ब्योमकेश बक्शी, धोनी द अनटोल्ड स्टोरी, राब्ता, केदारनाथ, सोनचिरैया, छिछोरे जैसी असाधारण अभिनय से सजी फिल्में आईं।
नये समय का उन्हें सुपरस्टार कहा जाने लगा था, शायद इसी वजह से भाई भतीजावाद से भरे सिनेमा जगत को यह रास नहीं आया। वैसे भी सिनेमा प्रेमियों ने हमेशा अच्छे कलाकार को ही स्टार बनाया है। फिर वो चाहे पहले सुपरस्टार राजेश खन्ना हो, अमिताभ बच्चन हो या शाहरुख खान हो या फिर सुशांत सिंह राजपूत। कई जगहों पर खुद सुशांत सिंह राजपूत ने खुद कहा है कि शाहरुख खान उनके प्रिये अभिनेता है। शायद एक अच्छे कलाकार को अच्छे कलाकार की पहचान होती है।
कई लोग से ये बर्दाश्त नहीं हो रहा था कि बाहरी लोगों को सिनेमा प्रेमी पसंद करें। शायद यही वजह रही कि उन्हें फिल्में करने से रोका गया। जब संजय लीला भंसाली ने बाजीराव मस्तानी में सुशांत सिंह राजपूत को लेना का मन बनाया तो वो पानी नमक फिल्म में बिजी थे जो कि आज तक पर्दे पर नहीं आई। बहरहाल अब पुरानी बातों का कोई मतलब नहीं। हमने एक सुपरस्टार को खो दिया है।
सुशांत सिंह राजपूत एकलौते बॉलीवुड सुपरस्टार हैं जिन्होंने चांद पर जमीन ले रखा था। वे विज्ञान और उसे जुड़े जानकारी जुटाने में बेहद दिलचस्पी दिखाते थे।
वैसे फिल्म चलते वक्त के समानांतर ही सुशांत सिंह राजपूत कि छवि चलती रहती है। पर उस एक संवाद पर आंखें भर आती है जब वे कहते हैं: “जन्म कब लेना है, मरना कब है, हम डिसाइड नहीं कर सकते, पर जीना कैसे है, वह हम डिसाइड कर सकते हैं” । ऐसा लगता है कि क्या ऐसा अभिनय और ऐसी फिल्में करने के बाद भी कोई आदमी आगे ऐसा कदम उठाएगा। बहरहाल होनी को कौन टाल सकता है। वे जहां रहें सुखी और शांत रहें। Logically टीम की तरफ से उन्हें भावपूर्ण श्रद्धांजलि ।