हम मनुष्य इस पृथ्वी के सबसे ज्ञानी प्राणी माने जाते हैं। क्योंकि हमारे पास सोंचने, समझने एवं किसी भी कार्य को सही तरीके से करने की क्षमता है। इस पृथ्वी पर कुछ लोगों का जीवन स्वयं के ऐशो आराम में गुजर जाता है तो कुछ लोग अपने जीवन को अन्य लोगों का साथ देकर खुशहाल बनाते हैं।
उन्हीं लोगों में से एक हैं विजय कुमार चंसौरिया (Vijay Kumar Chansauriya) जिन्होंने गांव के बच्चों को शिक्षा दिलाने के लिए जी जान लगा दी। एक वक्त ऐसा था जब उनके पास इतने भी पैसे नहीं थे कि वह पेन में स्याही भी डाल सकें लेकिन फिर भी उन्होंने हार नहीं मानी और आगे चलकर एक गर्वमेंट कर्मचारी बने। गरीबी क्या होती है यह उन्हें अच्छे से पता है। एक गरीब विद्यार्थी को पढाई करने में किन-किन तरह की दिक्कतें आती हैं वह भी उन्हें मालूम। उन सभी समस्याओं को महसूस करते हुए विजय कुमार चंसौरिया (Vijay Kumar Chansauriya) ने अपनी नौकरी से रिटायर्ड होने के बाद अपना 40 लाख रुपया गरीब बच्चों के लिए दान कर दिया।
विजय कुमार चंसौरिया का परिचय
विजय कुमार चंसौरिया (Vijay Kumar Chansauriya) मध्यप्रदेश (Madhya Pradesh) के पन्ना (Panna) जिले टिकुरिया (Tikuriya) मोहल्ला के निवासी हैं। वह एक सरकारी स्कूल के शिक्षक थे जब वह स्कूल से रिटायर हुए तो उन्होंने अपनी संपूर्ण राशि यानी कि 40 लाख रुपए दान कर दिए। यह राशि एक ट्रस्ट के बैंक अकाउंट में रहेगी जिसका उन्हें ब्याज मिलता रहेगा और उनके आसपास के आदिवासी एवं दूसरे कम्युनिटी के बच्चों के स्कूल से पढ़ाई की जरूरत है एवं अन्य जरूरतें भी पूरी की जाएंगी।
रिटायर्ड होने के बाद 40 लाख रुपए कर दिए दान
उनके दो बच्चे हैं और दोनों शासकीय सेवा कर रहे हैं। उनकी एक पुत्री भी है जिसका विवाह हो चुका है। वहीं उनका दामाद बैंक मैनेजर की पोस्ट पर कार्यरत है। वह कहते हैं कि इस स्थिति में अगर मैं रिटायर होऊंगा मुझे बड़ी रकम मिलेगी तो मैं इसका क्या करूंगा?? इसीलिए मैंने यह सोचा कि मैं इसका सदुपयोग करूंगा जिससे मेरे दिल को तसल्ली मिले। जब वह रिटायर हुए और उन्हें 40 लाख रुपए मिले तब उन्होंने यह निश्चय कर लिया कि मैं इसे दान करूंगा।
गरीबी में गुजरा बचपन
वह अपना बचपन गरीबी में बिताए और विषम परिस्थितियों का सामना किया। उन्होंने अपनी प्रायमरी शिक्षा अपने अजयगढ़ से ली और 8वीं तक की डिग्री हासिल की। आगे वह पन्ना गए और गरीबी के कारण उन्होंने अपनी 9वीं तथा 10वीं की शिक्षा ग्रहण नहीं की। परिस्थितियां इतनी खराब थी कि उन्हें अपनी पढ़ाई छोड़कर जिम्मेदारी अपने ऊपर लेनी पड़ी।
चलाना पड़ा रिक्शा, आजीविका के लिए बेचा दूध
मात्र 13-14 वर्ष की आयु में उन्हें आजीविका के लिए रिक्शा चलाना पड़ा। उन्होंने लगभग डेढ़ साल तक पन्ना में रहकर यहां रिक्शा चलाया। रात के वक्त अक्सर उनके रिक्शे पर बेवड़े बैठ जाया करते थे और वह गाली देकर पैसे भी नहीं दिया करते थे। जब यह सब उन से बर्दाश्त नहीं हुई तब उन्होंने इस कार्य को छोड़ दिया। अब उन्होंने अपने आजीविका के लिए दूध बेचने प्रारंभ किया। दूध बेचने का कार्य भी उनके लिए आसान नहीं था।
स्ट्रीट लाइट के नीचे की पढ़ाई
वह पन्ना से लगभग 12 किलोमीटर की दूरी तय करके रानीपुर दूध बेचने जाया करते थे। उस वक्त यहां रास्ते की व्यवस्था नहीं थी। वह घने जंगल एवं घाटियों से गुजरते हुए रानीपुर जाते और दूध बेचा करते थे। उस दौरान उनका दूध डेढ़ रुपए लीटर बिकता था। इतने संघर्षों का सामना करते हुए उन्हें अपनी पढ़ाई नहीं छोड़ी। उन्होंने 11वीं की परीक्षा दी और अच्छे मार्क्स से पास किए। परीक्षा की तैयारी करने के दौरान उन्हें बिजली न होने के कारण रात्रि में स्ट्रीट लाइट के नीचे पढ़ाई करनी पड़ती थी जो वक्त बहुत कठिन था।
स्याही भरने तक के नहीं थे पैसे
वह बताते हैं कि जब मैं एक 12वीं बोर्ड का आखिरी पेपर देने जा रहा था उस वक्त मेरे पेन में स्याही नहीं थी। मेरे पास पैसे भी नहीं थे कि मैं पेन में स्याही भर सकूं। मैंने कई सहपाठियों से स्याही मांगी परंतु मुझे किसी ने भी स्याही नहीं दी। उस वक्त मैं थोड़ा घबरा गया और चिंतित हो गया कि मैं परीक्षा कैसे दूंगा?? उस दौरान उन्हें उनके मित्र रास्ते में मिले जिनका नाम दिनेश सिंह था उन्होंने स्याही दी और तब विजय ने पेन में स्याही डाला और कॉलेज पहुंचे।
फैसले से परिवार खुश
आगे उनका जॉब एक शिक्षक के रूप में हुआ। जब वह नौकरी के बाद रिटायर्ड हुए तो उन्होंने यह निश्चय किया कि अपना जीवन शिक्षा एवं अन्य सामानों के आभाव में गुजारा लेकिन अन्य बच्चों के साथ ऐसा नहीं होने दूंगा। इसलिए रिटायर्ड के बाद सारे पैसे गरीब बच्चों के मदद के लिए दान दिया। उनके इस फैसले से हर कोई बहुत खुश है।