ब्रेस्ट कैंसर एक ऐसी बीमारी है जो महिलाओं में अब बहुत आम हो चुकी है। टाइम्स ऑफ इंडिया की एक रिपोर्ट अनुसार भारत में 28 में से एक महिला को अपनी पूरी लाइफटाइम में एक बार ब्रेस्ट कैंसर होने का डर होता है। इस बीमारी को लेकर कई सारे मिथ्य भी जुड़े हैं। दरअसल, ज्यादातर महिलाएं इसे लाइलाज बीमारी समझती हैं और इसी कारण वे इस बीमारी से समय रहते निजात नहीं पा पाती हैं। क्या आप भी ऐसा ही सोचती हैं? यदि हां, तो आपको यह जानकर खुशी होगी कि किसी भी अन्य बीमारी की तरह ब्रेस्ट कैंसर (Breast Cancer) का भी इलाज संभव है।
कैसे होता है ब्रेस्ट कैंसर ?
ब्रेस्ट कैंसर की शुरुआत तब होती है जब ब्रेस्ट असाधारण रूप से सेल ग्रोथ होता है। ये कोशिकाएं आमतौर पर एक ट्यूमर बन जाती हैं, जिसे अक्सर एक्स-रे में देखा जा सकता है या फिर एक गांठ के रूप में महसूस किया जा सकता है।
परेशानी की बात यह है कि ज्यादातर महिलाएं इसे छुपाने की कोशिश करती है। डाक्टरों का कहना है कि कई जगहों पर जब वें ब्रेस्ट कैंसर अवेयरनेस कैंप (Breast cancer awareness camp) से महिलाओं से बात करने की कोशिश करते हैं तो कई बार उन्हें सीधा-सीधा घर से निकल जाने के लिए कह दिया जाता था। गांव में ऐसा कॉमन है। इतना ही नहीं, बहुत से गांवों में तो आज भी औरतों को इलाज के लिए भी अस्पताल जाने की इजाजत नहीं है और किसी पुरुष डॉक्टर के पास तो बिलकुल भी नहीं।
2017 से “आरोग्य” को मिली शुरुआत
साल 2017 में दिल्ली निवासी डॉ. ध्रुव कक्कड़, डॉ. प्रियांजलि दत्ता और शबील सलाम ने ‘आरोग्या’ संगठन की नींव रखी। उनका उद्देश्य घर-घर जाकर लोगों को ब्रेस्ट कैंसर के विषय पर जागरूक करना है ताकि महिलाओं में फर्स्ट स्टेज में ही बीमारी का पता चल जाये ताकि बेहतर तौर पर इलाज हो सके।
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आरोग्या को शुरू करने की सोच डॉ. प्रियांजलि की थी, वहीं डॉ. ध्रुव कक्क्ड़ ने उनके इस आईडिया में न सिर्फ इन्वेस्ट किया, बल्कि प्लानिंग और टीम की ट्रेनिंग की ज़िम्मेदारी भी उन्हीं पर है।
शबील सलाम, संगठन के चीफ ऑपरेटिंग अफसर हैं, जिन्होंने भारत के 43 शहरों तक आरोग्या की मुहिम को पहुंचाया। उनकी अब तक की सफलता किसी एक नाम की वजह से नहीं है, बल्कि यह सफलता आरोग्या की पूरी टीम की है, जिसमें बहुत से सलाहकार, डॉक्टर्स और वॉलंटियर्स शामिल हैं।
कई जिंदगियां को बचाने का बनाया रिकॉर्ड
उनकी टीम अब तक 20 लाख से ज़्यादा महिलाओं को ब्रेस्ट कैंसर या फिर किसी भी तरह की अन्य बीमारी के लिए टेस्ट कर चुकी है। जिनमें से लगभग 52, 000 को कोई न कोई बीमारी थी। इनमें से कैंसर पीड़ित लगभग 3, 000 थे और ब्रेस्ट कैंसर के लगभग 2, 000 केस थे।
आरोग्या की मुहिम अब तक सात राज्यों- मेघालय, उत्तर-प्रदेश, हरियाणा, बिहार, पश्चिम बंगाल, उत्तराखंड और दिल्ली एनसीआर के 18 जिलों तक पहुँच चुकी है।
स्मार्ट वर्क के लिए स्मार्ट तरीका
आरोग्या की टीम सबसे पहले इलाके और गांवों के बारे में रिसर्च करती है कि किन गांवों के आसपास प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों या फिर सरकारी अस्पतालों की सुविधाएं हैं। स्वास्थ्य केंद्र, सरकारी अस्पताल और प्राइवेट अस्पतालों के साथ भी वे टाई-अप करते हैं ताकि कैंसर या फिर कोई भी अन्य बीमारी डिटेक्ट होने पर मरीजों को तुरंत वहां रेफर किया जा सके।इसके अलावा गांवों में घर-घर जाकर लोगों से बात कर उन्हें रेग्युलर हेल्थ-चेकअप के लिए स्वास्थ्य केंद्रों में जाने के लिए प्रोत्साहित करती है।
ग्रामीण इलाकों में बातचीत के लिए भी परमिशन जरूरी
किसी भी काम को करने में कठिनाई तो आती ही है और जब आप कुछ अलग और बेहतर करने की ओर बढ़ते हैं तो चैलेंजेस लाजमी है। आरोग्य की टीम के साथ भी ऐसा ही है। रूरल इंडिया की सोच के साथ कदम से कदम मिलना इतना आसान भी नहीं। कई बार जब आरोग्य की टीम महिलाओं से बातचीत के किए ग्रामीण इलाकों में पहुंचती है तो उन्हें मनाही या तिरस्कार का सामना करना पड़ता है। किसी भी कैंप के लिए सरपंच की परमिशन जरूरी होती है इतना ही नहीं घर – घर पहुंचकर बातचीत करने के लिए भी परमिशन मांगनी पड़ती है। उसके बाद घर के पुरुषों का रवैया भी कड़क होता है। लेकिन तमाम मुसीबतों के बाद भी टीम का साहस कम नहीं होता।
इस बीच आरोग्या ने और दो पहल शुरू की हैं। एक तो वे युवा कॉलेज ग्रेजुएट्स को उनके साथ फ़ेलोशिप करने का मौका दे रहे हैं, दूसरा वे हर एक गाँव में एक ‘आरोग्या मित्र’ तैयार कर रहे हैं।
आरोग्य टीम की इस कोशिश से महिलाओं और युवाओं को काफी लाभ मिल रहा है।
The Logically इनके टीम की मेहनत और लगन को सलाम करता है। साथ ही भविष्य में ऐसे कार्य जारी रखने के लिए शुभकामनाएं।