आज हमारे समाज में जाति को लेकर भेदभाव करना एक बहुत बड़ी समस्या है। यहां लोग पहले जाति पूछते हैं और उसी आधार पर वो अपने लोगों को जज करते हैं। अगर जाति निचली कास्ट की हो तो उनसे बातचीत करना बंद कर देते हैं। और तो और उन लोगों को अपने घर के चौखट के अंदर तक आने नहीं देते।
आज पूरी दुनिया चांद तक पहुंच गई है। परंतु आज भी हमारे समाज में जाति को लेकर के काफी भेदभाव किया जाता है। आज हम एक ऐसी ही कहानी बताएंगे। जो जाति के भेदभाव के कारण मां को घर के चौखट के बाहर बैठाया जाता था। और आज इन्हीं मां की बेटी इस भेदभाव को दिमाग से हटा करके पीएचडी कर रही है।
अलका जिलोया (Alka Jiloya) का जन्म राजस्थान (Rajasthan) के चूरु (Churu) जिले के सुजानगढ़ (Sujangarh) में हुआ था। इन्होंने 12वीं तक की पढ़ाई सुजानगढ़ से ही पूरी की। इन्होंने जाति के आधार पर भेदभाव करना यह सब सामने से देखा। अलका जिस शहर में रहती थी वहां इन्हीं के समुदाय के लोग रहते थे परंतु आगे चलकर के धीरे-धीरे अन्य समुदाय के लोग भी वहां आकर बसने लगे उसके बाद यहां जाति के आधार पर भेदभाव होना शुरू हो गया।
अलका बताती हैं कि मुझे आज भी याद है कि हमारे घर में पीने के लिए पानी जब सामूहिक नल से पानी लाने जाते थे। तब हमें पानी लेने के लिए घंटो तक इंतजार करना पड़ता था। जब हम पानी लाने जाते थे तो वहां के लोग जो खुद को ऊंची जाति का मानते थे। वह अपना पानी का मटका जमीन पर नहीं रखते थे। हमें नलका पानी लेने के लिए काफी दूर खड़ा रहना पड़ता और काफी देर तक इंतजार करना पड़ता था। वे बताती हैं कि ऐसा काफी बार हुआ है। कि मेरा मटका उनके मटके से छू जाता था तो वे लोग अपने मटके का पूरा पानी बाहर फेंक देते थे। इसके बाद उस मटके को साफ करके फिर से अपने मटके में पानी भरते थे। उन्होंने बताया कि एक बार तो हमसे एक औरत के मटका गलती से छू गया। जब मेरा मटका उस औरत के मटके से छुआ तो उसने हम पर बहुत गुस्सा की और उसके बाद वह औरत अपने मटके का सारा पानी फेंक कर उसे मिट्टी से साफ करके फिर से पानी भरी। यह देख कर मुझे भी काफी गुस्सा आया फिर मैंने भी अपनी आवाज में जोर से बोली कि आप लोग जिस नल से पानी भरते हो। उस नल को साफ हम ही करते हैं और आप लोग हमें ही अछूत मानते हो।
अलका (Alka Jiloya) बताती हैं कि जब मैं आठवीं क्लास में पढ़ती थी तब मेरी मां एक स्कूल में खाना बनाती थी और मैं भी अपने पढ़ाई के साथ-साथ मां के कामों में हाथ बंटाती थी और खाना बनाती थी। मेरी मां स्कूलों में सबके लिए अपने हाथों से चाय बना कर खिलाती थी और खुद भी पीती थी परंतु एक बार की बात है उस स्कूल में एक स्वर्ण जाति का प्रिंसिपल बन गए तब उन्होंने मेरी मां के हाथ का बना चाय पीना बंद कर दिया और यह स्वर्ण जाति का प्रिंसिपल चाय बनाने का काम खुद से करने लगे। इसके साथ-साथ अगर घर में कोई पूजा पाठ होता तो मेरी मां पंडित के घर जब जाती थी तो मेरी मां को घर के अंदर जाने नहीं दिया जाता था उन्हें घर के बाहर चौखट पर बैठा करके ही बात की जाती थी और जो खाने पीने की चीज देना होता था वह घर के बाहर चौखट पर ही देती थी।
वे बताते हैं कि हम 12वीं की पढ़ाई कर लेने के बाद मैंने अपने पसंद के लड़के के साथ शादी कर ली परंतु इसके बाद भी हमें जाति के भेदभाव का पीछा नहीं छूटा जब हमने अपने हस्बैंड के साथ किराए का मकान लेने गई तो वहां मुझे अपनी जाति छुपाना पड़ा यहां कि सोसाइटी में अपने पसंद के लड़के या लड़की के साथ शादी करना गलत माना जाता है परंतु मेरी शादी तो मेरे से अलग जाति के लड़के के साथ हुआ था। मैं अपने पति के साथ बाड़मेर में रहने लगी और वहां भी हम इस शर्त पर कमरा मिला कि हम अपनी जाति नहीं बताएंगे परंतु मेरे पति के जाति से उन्हें कोई परेशानी नहीं थी उन्होंने बताया कि मेरे पति समाज के मुद्दों पर काफी जागरूक हैं और मुझे भी इन सब चीजों के बारे में काफी बताते हैं हमारे जीवन में जो भी बदलाव आया वह सिर्फ मेरे पति के कारण ही आया। शादी के बाद हमारे जिंदगी में काफी अच्छा बदलाव आया क्योंकि हमारे पति एक सकारात्मक सोच रखने वाले थे।
यह बताते हैं कि हम अपनी जिंदगी में काफी संघर्ष करना पड़ा हमें पढ़ने लिखने का बहुत शौक था परंतु हमें एक अच्छा माहौल नहीं मिला। मेरे पास पढ़ने के लिए ना तो किताबें थी, ना हीं पैसा था और ना ही लाइब्रेरी। हमें सिर्फ सिलेबस की किताबें मिल जाती थी और जब परीक्षा का टाईम आता था तब “संजीव पास बुक” पढ़कर परीक्षा देने चल जाते थे। इसीलिए हमें 12वीं क्लास तक पढ़ने के लिए कुछ नहीं मिला। जब हम कॉलेज मैं दाखिला करवाया और पढ़ाई करने कॉलेज गई तब मैंने पहली बार लाइब्रेरी देखी वहां मैंने किताबें इश्यू करवा कर पढ़ें इसके बाद मैं बीए की पढ़ाई करने के लिए मध्य प्रदेश चली गई फिर मैं वहां की पढ़ाई पूरी कर लेने के बाद दिल्ली पढ़ने आ गई। उन्होंने बताया कि हमारे इस जिंदगी का सफर की शुरुआत एक खेजड़ी के नीचे धूप और छांव से शुरू हुआ था और आज दिल्ली विश्वविद्यालय जैसे बड़े प्रतिष्ठान संस्थान तक पहुंच गई।
अलका (Alka Jiyola) बताती हैं कि जाति को लेकर भेदभाव करना हर जगह होता है। जाति देख कर के लोगों से बात करना या फिर किसी के चेहरे को देखकर उनके पहनावे उड़ावे को देखकर जाति बताना । वे बताती हैं कि दिल्ली जैसे महानगर में स्वर्ण जाति के पढ़ी लिखी महिलाएं व लड़कियां यहां नौकरी करती हैं। जब उन्होंने मुझसे पूछा कि तुम्हें देखकर तो ऐसा नहीं लगता कि तुम ऐसी जाति से आती हो। तब हमने उन लोगों से पूछा की कैसी नहीं लगती हो। तब उन्होंने अपनी बात को छिपाते हुए बोला कुछ नहीं बस ऐसे ही पूछ लिया। परंतु तुम वैसी बिल्कुल नहीं लगती हो क्योंकि तुम्हारा रंग गोरा है, तुम कपड़े भी अच्छे पहनती हो और पढ़ाई भी अच्छी जगह करती हो। यह सब चीज तो एक स्वर्ण जाति की लड़कियां ही कर सकती हैं। यह सब सुनकर मुझे काफी बुरा लगा और अंदर ही अंदर हम घुटने लगे। हम उन लोगों से पूछना चाहती हूं कि जिस लड़की का गोरा रंग अच्छा रहन-सहन या फिर अच्छा खानपान हो। उन्हीं लोगों को वर्ग को विशेष एकाधिकार मिलता है। और जिनके पास इन सब चीज ना हो क्या उन्हें कोई अधिकार नहीं मिलता?
अलका बताती हैं कि इन जाति को लेकर के भेदभाव हमने काफी देखा और सहा भी। आजकल का पढ़ा-लिखा समाज भी इन सब चीजों पर विश्वास करता है। परंतु हमने इन सब चीजों को खुलकर जवाब दिया। अब मुझे अपनी जिंदगी का कुछ लक्ष्य है। हम कुछ अपने जिंदगी में करना चाहते हैं तथा हमारे बहुत से सपने हैं जिसे हम पूरा करना चाहते हैं। मैं प्रोफेसर बनना चाहती हूं और इस सपने को मैं आगे चलकर साकार करूंगी। मेरा पहला सपना पीएचडी और जेआरएफ था जो पूरा हो गया। अब मैं अपने आगे की सपने की तैयारी करके अपने सफलता के और बढ़ती रहूंगी।
अलका (Alka Jiyola) बताती हैं कि हमें किसी भी जाति से कोई मत भेज दिया। यह लड़ाई नहीं है बल्कि यहां सबका अधिकार है। हम अपने अधिकार के लिए जीना चाहते हैं हमें किसी की दी हुई अनुमति के अनुसार नहीं चलना है बल्कि हमारा संविधान ही हमारे लिए अनुमति है। वे बताती हैं कि हमारे जैसे बहुत सारी लड़कियां हैं। जिन्हें जाति को भेदभाव को लेकर काफी कुछ झेलना पड़ता है। मैं उन लोगों से यह कहना चाहती हूं कि वह जो अपने बड़े-बड़े सपने देखते हैं। उनके माता-पिता उनके सपने को साकार करें उन्हें अच्छी शिक्षा के लिए बाहर भेजें। तथा जिन लड़कियों को शादी बहुत छोटे से उम्र में कर दी जाती है। जिन लड़कियों के पैदा होते ही शादी में दहेज देने की चिंता सताने लगती है। मैं उन लोगों से यही बताना चाहती हूं कि वह अपनी बेटियों को होशियार बनाएं। अपनी बेटियों को पढ़ने के लिए बाहर निकलने दें। उनके जो सपने हैं उसे साकार करने में आप मदद करें। हमारे समाज में जो जाति जैसे भेदभाव की प्रथा चलती आ रही है। उसे जितना जल्द हो सके खत्म कर दें।