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आंवला के खेती से लिख डाली सफलता की कहानी, आज कर रहे सलाना 10 लाख रुपए की कमाई

कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष के नौवें दिन आंवला नवमी मनाया जाता है, जिसे अक्षय नवमी के नाम से भी जाना जाता है। हिन्दू धर्म में इसका खास महत्व है। इस बार साल 2021 मे यह 12 नवंबर शुक्रवार को मनाया गया। इस दिन दान-धर्म का खास महत्व है तथा आंवला के वृक्ष की पूजा करने से व्यक्ति के सभी पापों का नाश होता है। साथ ही लक्ष्मीनारायण की अपार कृपा से सुख-समृद्धि की प्राप्ति होती है। – Amar Singh of Bharatpur got the idea of ​​Amla cultivation from the newspaper, from which he is earning lakhs annually.

यह पर्व प्रकृति के प्रति आभार जताने के लिए मनाया जाता है। ऐसा माना जाता है कि इस दिन आंवले के पेड़ के नीचे बैठने और भोजन करने से बीमारियों का नाश होता है। आमतौर पर महिलाएं परिवार की सेहत और सलामती के लिए यह पूजा करती हैं। आज हम आपको राजस्थान के भरतपुर जिले के एक ऐसे किसान के बाड़े में बताएंगे, जिसने आंवले के बागान को विकसित कर खूब नाम कमाया।

आज हम बात कर रहे है भरतपुर जिले की कुम्हेर तहसील का एक गांव पैंघोर नगला सुमन के रहने वाले अमर सिंह (Amar Singh) का। आपको बता दे कि यह एक ऐसा गांव है, जिसके ज्यादातर लोगों के पास घर पर हीं काम है। यहां के हर घर के लोग किसी न किसी राेजगार या धंधे से जुड़े हैं। सन् 1996-97 के दौरान अमर की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं थी। वह अपने परिवार का पेट पालने के लिए गेहूं-सरसों की पारंपरिक खेती करते थे और माल ढुलाई के लिए छोटे वाहन चलाते थे।

Amar farms of Amla and earns 10 lakh per year

पूरे परिवार की जिम्मेदारी अमर पर थी

अमर किसी तरह अपने परिवार का पेट तो भर लेते थे, परंतु वह बच्चों की पैंघोर, नगला पढ़ाई-लिखाई जैसे दूसरे खर्चों के लिए पैसे नहीं बचा पाते थे। अक्सर अमर इसी सोच में डूबे रहते थे, एक दिन जब अपनी गाड़ी लेकर निकले तो काफी समय बीत गया और उन्हें अचानक भूख लगी, तो वह कुम्हेर बाजार में एक दुकान पर बैठ गए और वहां बैठी दुकानदार से समोसे खरीदे और उसे खाने लगे। – Amar Singh of Bharatpur got the idea of ​​Amla cultivation from the newspaper, from which he is earning lakhs annually.

अखबार से मिला आंवले की खेती करने का आईडिया

अमर को एक बड़ी पुरानी आदत थी, वह जब भी कुछ खाते तो उस कागज को जरूर पढ़ते हैं। उस दिन भी उन्होंने ठीक वैसा ही किया, समोसा खाने के बाद अमर उस अखबार के टुकड़े को पढ़ने लगे, जिससे उन्हें आंवले के फायदे के बारे में पता चला और बस फिर क्या था अमर आंवले की खेती करने का फैसला कर लिए। अमर अपने इस आइडिए के बारे में जब अपनी मां और पत्नी को बताया तो वह राजी नहीं हुई और उन्हें ऐसा करने से मना किया।

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हार्टीकल्चर डिपार्टमेंट के सुपरवाइजर ने की मदद

अमर के बहुत मनाने के बाद वह तैयार हो गए और उनकी पत्नी उर्मिला ने कहा-आपने अगर सोचा है तो जरूर करिए, जो भी होगा हम झेल लेंगे। आंवले की खेती शुरु करने में अमर को सबसे पहली समस्या उसके पौधों का इंतजाम करने में हुआ। अमर जब हार्टीकल्चर डिपार्टमेंट के लोगों से बात किए तो उन्होंने कहा-बकरी पालन कर लो, मछली पालन कर लो, मगर यह न करो क्योंकि राजस्थान में आंवला कोई नहीं उगाता, परंतु अमर अपने फैसले से पीछे नहीं हटे तो डिपार्टमेंट में तत्कालीन सुपरवाइजर रहे सुबरण सिंह (Subaran Singh) ने उनकी मदद की और 19 रुपए प्रति पौधे के हिसाब से आंवले के पौधों का इंतजाम करवाया।

मां और पत्नी ने भी दिया अमर का साथ

अमर के अनुसार इनमें जल्दी कीड़े नहीं लगते और ना हीं जानवर इन्हें नुक्सान पहुँचाते है। जब अमर आंवले के पौधे को घर लाए तो उनकी मां और पत्नी ने बड़ी जतन और उत्साह से उसे खेतों में लगाने का काम शुरू किया। सभी ने दिन-रात मेहनत कर 6 बीघा जमीन पर आंवले का पौधा लगाया। जब यह पौधे बड़े हो गए तो बॉर्टीकल्चर डिपार्टमेंट के लोग पौधे देखने उनके घर तक पहुँच गए। उसके बाद तो हर कोई यह देखने आने लगा। – Amar Singh of Bharatpur got the idea of ​​Amla cultivation from the newspaper, from which he is earning lakhs annually.

सालाना 3 से 4 लाख रुपए तक की करते थे कमाई

शुरूआत में अमर आंवलों को कच्चा ही बेचा करते थे, जिससे उन्हें सालाना 3 से 4 लाख रुपए तक की कमाई होती थी। जब आंवले की फसल नहीं होती थी तो अमर इन खेतों में सब्जियों की खेती करते हैं, जिससे उन्हें अच्छी-खासी कमाई होती थी। अक्सर लोग अमर से आंवले का मुरब्बा और अचार खरीदने की डिमांड करते थे। इसी से प्रेरित होकर उन्होंने इसे बनाने का काम का शुरू किया।

अब सलाना करते है 10 लाख रुपए की कमाई

अमर मुरब्बा और अचार बनाने के लिए अमर गांव की 25 महिलाओं को काम पर रखे, जो देशी तरीके से बिना किसी केमिकल का इस्तेमाल किए आंवले को उबालने से लेकर उसे चाशनी में डुबाने तक का काम करती हैं। लॉकडाउन के समय में जब दिक्कतें बढ़ी तो उन्होंने ज्यादातर काम मशीनों के हवाले कर दिया है, जिससे अब केवल 10 से 12 महिलाएं ही काम करती है। अमर के अनुसार आंवले की प्रॉसेसिंग के बाद उन्हें सलाना करीब 10 लाख रुपए तक कमाई हो जाती है। पूरे इलाके में उनके मुरब्बे की काफी डिमांड रहती है। – Amar Singh of Bharatpur got the idea of ​​Amla cultivation from the newspaper, from which he is earning lakhs annually.

बिहार के ग्रामीण परिवेश से निकलकर शहर की भागदौड़ के साथ तालमेल बनाने के साथ ही प्रियंका सकारात्मक पत्रकारिता में अपनी हाथ आजमा रही हैं। ह्यूमन स्टोरीज़, पर्यावरण, शिक्षा जैसे अनेकों मुद्दों पर लेख के माध्यम से प्रियंका अपने विचार प्रकट करती हैं !

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