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प्राचीनकाल की बनी ‘बावड़ियां’, जल संरक्षण के लिए मशहूर पुराने जमाने का अनोखा इंजीनियरिंग मॉडल

प्राचीन काल से ही धरती पर जल की कमी को देखते हुए जल संरक्षण की परंपरा चलती आ रही है। हिंदु पौराणिक ग्रंथों, जैन व बौद्ध साहित्य में जनता को जल की नियमित प्राप्ति करवाने के लिए राजाओं व शासकों द्वारा कुओं, नहरों, तालाबों, बांधों, झीलों व बावड़ियों का विवरण मिलता आया है। प्राचीन समय में इन परंपरागत जल स्रोतों में से बावड़ियों का खासा महत्व था। क्योंकि इन बावड़ियों में बनाई गई सीढ़ियों के सहारे आसानी से जल तक पहुंचा जाता था। जहां एक ओर ये बावड़ियां अपनी खूबसूरत वास्तुकला व नक्काशी के लिये जानी जाती थी वहीं दूसरी ओर इनका अपना एक सांस्कृतिक महत्व भी था।

पहले समय में जल आपूर्ति के उद्देश्य से तकरीबन हर राज्य व कस्बों से बनाई गई यह बावड़ियां केवल जलउपयोग की चीज ही नही बल्कि सामाजिक और सांस्कृतिक जीवन का एक अभिन्न अंग हुआ करती थीं। साथ ही, हिंदु धर्म में जल को देवता के रुप में पूजे जाने की वजह से भी इन बावड़ियों पर आकर महिलाएं पूजा-अर्चना किया करती थीं।

ये अलग बात है कि वर्तमान में सही संरक्षण के अभाव में ये बावड़ियां पूरी तरह सूख चुकी हैं। लेकिन, आज भी इनकी खूबसूरती व बेहतरीन आर्किटेक्चर(Architecture) और इनके पीछे छिपे इतिहास को समझने के लिये दूर-दूर से पर्यटकों(Tourists) की भीड़ लगी रहती है। इनके निर्माण में बनाई गई ढ़ेरों सीढ़ियों यानी स्टेपस् के कारण ये बावड़ियां ‘स्टेपवेल्स’ (Stepwells) भी कहलाती हैं और एक बेहतरीन टूरिस्ट प्लेस के रुप में जानी जाने लगी हैं। इस लेख के माध्यम से हम आपको घूमने की दृष्टि से बेहतरीन भारत की कुछ प्राचीन खूबसूरत बावड़ियों के बारे में बताने जा रहे हैं

रानी की वाव(Rani ki Vav)

Rani ki Vav
रानी की वाव

अपने शानदार आर्किटेक्चर व वास्तुकला के चलते 2014 में नेस्को (NESCO) द्वारा विश्व विरासत स्थल (World Heritage Site) घोषित हो चुकी गुजरात स्थित ‘रानी की वाव’ बावड़ी इतिहास की सबसे पुरानी और फेमस बावड़ी है। लगभग नौ सौ साल पुरानी इस बावड़ी में 30 किलोमीटर लंबी सुरंग है। रानी उदयामति ने अपने पति और राजा भीमदेव प्रथम की याद में इस बावड़ी का निर्माण कराया था। इस स्टेपवेल की दीवारों पर भगवान विष्णु के अवतार कहे जाने वाले राम, वामन आदि भगवानों को बेहद रुचिकर ढ़ग से दर्शाया गया है।

अग्रसेन की बावड़ी(Agrasen ki Baoli)

अग्रसेन की बावड़ी

भारत की राजधानी दिल्ली के इतिहास को और खूबसूरत बनाने वाली ‘अग्रसेन की बावडी’ का इतिहास और बनावट दोनों ही बेहद रोचक हैं। इसमें 108 सीढ़ियां बनाई गई हैं। माना जाता है कि महाराजा अग्रसेन ने महाभारत काल के दौरान इस बावड़ी को बनवाया था, लेकिन इसके इतिहास को तुगलक व लोदी वंश के साथ भी जोड़कर देखा जाता रहा है क्योंकि उस दौरान इस बावड़ी में पूरे राज्य के लिए जल संग्रहित करके रखा जाता था। इतना ही नही अग्रसेन की बावड़ी को एक खूबसूरत लोकेशन के रुप में बॉलीवुड की कई जानी-मानी फिल्मों में भी दिखाया गया है।

नीमराणा की बावड़ी(Neemrana ki Baoli)

नीमराणा की बावड़ी

प्राचीन काल में पानी की प्राप्ति और कृषि में सिंचाई की दृष्टि से राजस्थान में बनाई गई ‘नीमराणा की बावड़ी’ का अपना एक खास महत्व रहा है। यह एक नौ मंजिला बावड़ी है जिसे राजस्थान के ही नीमराना महल के बगल में बनाया गया है। 355 साल पुरानी इस बावड़ी में राजपूत स्थाप्त्य कला का बेहतरीन नमूना देखने को मिलता है। बता दें कि राजस्थान के अलग-अलग शहरों में तीन सौ से भी अधिक बावड़ियां हैं।

शाही बावड़ी(Shahi Baoli)

शाही बावड़ी

अवध के नवाब आसफ-उद्-दौला द्वारा उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में बनवाई गई ‘शाही बावड़ी’ को प्राचीन काल से ही इंडो- इस्लामिक वास्तुकला का बेजोड़ नमूना मना जाता है। इसके निर्माण का इतिहास इसलिए खास है क्योंकि आरंभ में इसे एक कुंए के रुप में खोदना शुरु किया गया था। लेकिन, बाद में शहर में पानी की कमी को देखते हुए इसे एक जल स्रोत के रुप में बावड़ी का आकार दे दिया गया। यहां जल को संरक्षित किया जाता था और जल न मिलने पर इस बावड़ी से पानी निकाल कर पूरे शहर को दिया जाता था। यूं तो यह बावड़ी तीन मंजिला थी लेकिन सही संरक्षण न मलने के कारण इसका काफी भाग नष्ट हो गया।

चांद बावड़ी (Chand Baoli)

चांद बावड़ी

राजस्थान के अभनेरी गांव में स्थित ‘चांद बावड़ी’ को 10वीं शताब्दी के प्रमुख स्मारकों में से एक दार्शनिक स्थल माना जाता है। 13 मंज़िलों से भी ज़्यादा गहरी इस बावड़ी में 3500 से भी ज़्यादा सीढ़िया हैं। इतना ही नही 1000 साल पुरानी होने के बाद भी भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण की निगरानी में इस स्टेपवेल को पहले की तरह ज्यों की त्यों रखा गया है। वास्तुशिल्प का एक अनूठा उदाहरण बन चुकी चांद बावड़ी में भुल-भूलैया, द फॉल, द डार्क नाइट राइज़ जैसी मूवीज़ की शूटिंग भी हो चुकी है। ये सुंदर संरचना आज भी पर्यटकों को मोहित करने में समर्थ है।

दादा हरी बावड़ी (Dada Hari Baoli)

दादा हरी बावड़ी

अहमदाबाद से 15 किलोमीटर दूर असरवा में स्थित ‘दादा हरी बावड़ी’ का निर्माण 1499 ईस्वीं में सुल्तान बेगरा की हरम की एक महिला द्वारा करवाया गया था। इस सात मंजिला बावड़ी में बीगोन युग की वास्तुकला को बेहद रोचक ढ़ंग से दिखाया गया है। बेशक इस बावड़ी की तस्वीर को देखकर ही आप यहां जाने के लिए बैचेन हो उठेंगे।

सूर्या कुंड बावड़ी(Suryakund Baoli)

सूर्या कुंड बावड़ी

गुजरात के प्रसिद्ध सूर्य मंदिर के प्रांगण में स्थित सूर्या कुंड बावड़ी को 11 वीं शताब्दी में चालुक्य शासनकाल में बनवाया गया था। आयताकार इस स्टेपवेल में चार छते हैं जो पानी तक पहुंचने में मदद करती हैं। पानी के भंडारण के साथ ही इस बावड़ी पर धार्मिक समारोहों का आयोजन भी किया जाता है।

पुष्करणी हम्पी(Pushkarani Hampi)

पुष्करणी हम्पी

पुष्करणी कर्नाटक के हम्पी के मंदिरों में बावड़ियों के रुप में शानदार संरचनाये देखने को मिलती हैं। जिन्हे प्राचीन काल में जल स्रोतों के अलावा पूजा स्थलों के रुप में भी माना जाता था। यहां तक कि हम्पी के मंदिरों में वार्षिक जल- महोत्सव का आयोजन भी इन्ही बावड़ियों में किया जाता था। भले ही ये बावड़ियां आज जर्जर अवस्था में हों लेकिन ये बावडियां अभी भी पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित करने में बेहद सक्षम हैं।

प्राचीन काल में जल आपूर्ति के साथ-साथ अपने भीतर भारतीय परंपरा को समेटे इन बावड़ियों का बेहद खूबसूरत व व्यापक इतिहास रहा है। कोई भी पर्यटक इनकी नक्काशी व वास्तुकला से सम्मोहित हुए बिना आज तक नही रह सकता। घूमने की द़ष्टि से ही सही आपको भी एकबार जाकर इन बावड़ियों वास्तुकला को समझने का प्रयास ज़रुर करना चाहिए।

अर्चना झा दिल्ली की रहने वाली हैं, पत्रकारिता में रुचि होने के कारण अर्चना जामिया यूनिवर्सिटी से जर्नलिज्म की पढ़ाई पूरी कर चुकी हैं और अब पत्रकारिता में अपनी हुनर आज़मा रही हैं। पत्रकारिता के अलावा अर्चना को ब्लॉगिंग और डॉक्यूमेंट्री में भी खास रुचि है, जिसके लिए वह अलग अलग प्रोजेक्ट पर काम करती रहती हैं।

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