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70 वर्षीय किसान ने किया कमाल, धान के पुआल से बना रहे हैं साड़ी

खेतों से धान की फसल काट लने के बाद उसके पुआल को या तो पशुओं के चारे के रुप में इस्तेमाल कर लिया जाता है या फिर उसकी खाद बनाकर इस्तेमाल कर लिया जाता है। लेकिन क्या आपने धान की पुआल का उपयोग साड़ी बनाने के लिए होते सुना है? जी हां, आंध्र प्रदेश के प्रकासन जिले के प्रचरु मंडल के गांव विरन्ना पलेम(Virrana Palem Village of Prakasan District in Andhra Predesh) निवासी 70 वर्षीय किसान मोव्वा कृष्णामूर्ति(Mowwa Krishnamurthi)) धान की पुआल से साड़ी बनाकर काफी चर्चा में हैं, बेहद बारीकी से बनी इस साड़ी को देख आज हर कोई हैरान है।

कहां से मिली कृष्णामूर्ति को धान के पुआल से साड़ी बनाने की प्रेरणा

आंध्र प्रदेश के 70 वर्षीय किसान कृष्णामूर्ति BBC को बताते हैं कि – “जब मैं खेती–बाड़ी अथवा पशु पालन के दौरान पुआल देखा करता तो सोचता कि क्या इसके तिनकों से कपड़ा बनाया जा सकता है, सूखी घास को लेकर किये गये मेरे पहले प्रयोग को न केवल लोगों द्वारा काफी सराहा गया बल्कि मुझे इनाम भी मिला” प्रतियोगिता के दौरान सूखी घास से खेती में उपयोगी चीज बनाने को कहा गया था। जिसमें, कृष्णामूर्ति के प्रतियोगी व प्रथम पुरुस्कार विजेता जो तेराली निवासी थे, ने जूट से एक दुप्पटा बनाया था। हालांकि कम्पीटीशन में उन्होंने द्वितीय इनाम पाया लेकिन वहीं से कृष्णामूर्ति के दिमाग में ये विचार उपजा कि क्यों न पुआल से कपड़ा बुना जाये, जिसके बाद 40’20 का कपड़ा बुना जिसके लिए उन्हे नंदी अवार्ड मिला, यहीं से साड़ी बुनने की प्रेरणा पाकर उन्होंने साड़ी बनाने का प्रयास किया, जिसका बेहतरीन परिणाम सबके सामने है।

Mowwa Krishnamurthi making Saadi from Puwal

राष्ट्रपति से सम्मान प्राप्त कर चुके हैं

पुआल से साड़ी बनाने के अपने हुनर के लिए कृष्णामूर्ति भारतीय राष्ट्रपति समेत राज्य सरकार व अन्य कई लोगों से प्रशंसा प्राप्त कर चुके हैं।

कई प्रदर्शिनियों में शामिल हो चुकी है कृष्णामूर्ति की पुआल से बनी ये साड़ी

आंध्र प्रदेश निवासी मोव्वा कृष्णामूर्ति द्वारा पुआल से बनाई गई साड़ी अलग-अलग स्थानों पर लगने वाली कई एक्ज़ीबीशन्स में रखी जा चुकी है और दर्शकों से तारीफ बटोर चुकी है, आज इनका काम अपनी एक अलग पहचान बना चुका है।

धान के पुआल से साड़ी बनाने का वीडियो यहां देखें –

भविष्य में अपनी कला को संजोए रखना चाहते हैं कृष्णामूर्ति

कृष्णामूर्ति कहते हैं कि – “ज़्यादातर सरकार से ऐसे कामों के लिए सराहना के तौर पर केवल अवार्ड्स दे दिये जाते हैं, लेकिन मुझे सरकार से इस काम के लिए कलाकारों के कोटे से पेंशन के अलावा और कुछ नही चाहिए वो भी इसलिए कि आने वाली पीढ़ियों तक यह कला जीवित रह सके”

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5वीं तक पढ़ने के बाद खेती कर रहे हैं कृष्णामूर्ति

BBC की एक रिपोर्ट के मुताबिक- 70 वर्षीय किसान मोव्वा कृष्णामूर्ति के पिता चाहते थे कि वो अपनी पढ़ाई जारी रखते हुए उच्च शिक्षा प्राप्त करें लेकिन कृष्णामूर्ति का मन खेती-बाड़ी में था इसलिए उन्होंने पांचवी कक्षा के बाद यह कहकर पढ़ाई छोड़ दी कि इससे ने केवल मुनाफा अच्छा होगा बल्कि शादी के समय भी कोई परेशानी नही होगी।

अर्चना झा दिल्ली की रहने वाली हैं, पत्रकारिता में रुचि होने के कारण अर्चना जामिया यूनिवर्सिटी से जर्नलिज्म की पढ़ाई पूरी कर चुकी हैं और अब पत्रकारिता में अपनी हुनर आज़मा रही हैं। पत्रकारिता के अलावा अर्चना को ब्लॉगिंग और डॉक्यूमेंट्री में भी खास रुचि है, जिसके लिए वह अलग अलग प्रोजेक्ट पर काम करती रहती हैं।

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