हमेशा से ही ये माना जाता रहा है कि किसी इंसान के भविष्य को जाननें के लिए उसके हाथों की लकीरों का विशेष महत्व होता है। लेकिन इसके अलावा एक और बात है जिसके लिए हाथों की लकीरें अपनें अस्तित्व का महत्व बतलाती हैं वो ये कि किन्ही भी सरकारी व कानूनी दस्तावेज़ों (official and legal documents) को बनवाने से लेकर बैंकों में खाता खोलने, मोबाइल फोन कनेक्शन लेने सभी कामों में फिंगरप्रिंटस का इस्तेमाल किया जाता है। इन सब कामों के लिए हाथों या अंगूठे की छाप आवश्यक(mandatory) मानी जाती है। इन परिस्थितियों में यदि आपके हाथों से रेखाएं ही नदारद हों तो क्या होगा ? ऐसा ही एक मामला भारत के पड़ोसी देश बांग्लादेश से सामने आया है जहां एक ही परिवार के सात पुरुषों के हाथों की रेखाएं गायब हैं जिसके चलते उन्हें कई समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है।
एडर्मैटोग्लाफ़िया जेनेटिक डिस्ऑर्डर से जूझ रहा है बांग्लादेश का अपू सरकार परिवार
दरअसल, बांग्लादेश स्थित राजशनी जिले (Rajshani District in Bangladesh) के 22 वर्षीय अपू सरकार (Apu Sarkaar) परिवार के सभी पुरुष सदस्यों मे एक अनुवांशिक बीमारी देखनें को मिली है जिसका नाम एडर्मैटोग्लिफ़िया डिस्ऑर्डर (Adermatoglypia Disorder) है। जिसकी वजह से उनके हाथों की लकीरें गायब हैं और उन्हें कई समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है। पिछली चार पीढ़ियों से ही अपू परिवार इस समस्या का सामना करता आ रहा है।
सरकारी दस्तावेज बनाते हुए समस्याओं का सामना करना पड़ा सरकार परिवार को
BBC को अपनी समस्या बताते हुए अपू कहते हैं- साल 2008 में जब बांग्लादेश के सभी व्यस्कों के लिए राष्ट्रीय पहचान पत्र बनाये जा रहे थे जिसके लिए अंगूठा लगाना बेहद ज़रुरी था, लेकिन उनके परिवार के पास फिंगर प्रिंट्स न होनें का नतीजा ये निकला कि जब उन्हें पहचान पत्र दिये गये तो उन पर लिखा था ‘बिना फिंगरप्रिंट के’ (without fingerprints) जिसे देख स्वंय कर्मचारी तक हैरान थे। साल 2010 में जब बांग्लादेश में पासपोर्ट और ड्राइविंग लाइसेंस के लिए उंगलियों के निशान अनिवार्य कर दिये गये तो भी अपू के परिवार को परेशानियां झेलनी पड़ी थीं। इसी प्रकार 2016 में भी बांग्लादेश सरकार ने सिम कार्ड खरीदनें के लिए उपभोक्ता के फिंगरप्रिंट राष्ट्रीय डेटाबेस से मैच करवानें अनिवार्य कर दिये थे। ऐसे में अपू बताते हैं कि – “सिम कार्ड खरीदते समय जब भी मैं अपनी उंगलियां सेंसर पर रखता, उनका सॉफ्टवेयर हैंग हो जाता।“ इन तमाम हालातों के चलते अपू को अनेक कष्ट झेलनें पड़े थे।
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किस तरह निकला सरकार फैमिली की समस्या का हल
बांगलादेश में लगभग हर सरकारी दस्तावेज में फिंगरप्रिटस् को कम्पलसरी करने के बाद से सरकार फैमिली को रोज़ नई समस्याओ का सामना करना पड़ रहा था जिसका हल ये निकाला गया कि सरकार परिवार द्वारा मेडिकल सर्टिफिकेट पेश करनें के बाद अमल और अपू को एक नये प्रकार का राष्ट्रीय पहचान पत्र जारी किया गया जिसमें सत्यापन के लिए अन्य बायोमट्रिक डाटा जैसे आंख के रैटिना का स्कैन और अलग-अलग एंगल से ली गई चेहरे की छवियां(facial recognition) शामिल की गई।
अपू सिम कार्ड व ड्राइविंग लाइसेंस लेने में अभी भी है असमर्थ
अपू बताते हैं –“उपरोक्त समाधान निकाले जानें के बाद मैं भी अभी तक न तो सिम कार्ड और न ही ड्राइविंग लाइसेंस पाने में समर्थ हो पाया हूँ और पासपोर्ट मिला तो है लेकिन वह भी किसी सपनें को पूरा करनें जैसा प्रतीत होता है, मैं सच मे अपनी व अपने परिवार की इस स्थित से परेशान हूं , मैंने बाहरी लोगों से भी कुछ सुझाव मांगे लेकिन कोई हल नही मिल सका, कुछ लोगों ने तो यह भी कहा कि हमें कोर्ट में अपने केस संबंधी याचिका लगानी चाहिए, भविष्य में यदि कोई हल नही मिलता है तो ऐसा ही करना पड़ेगा”
पहले समय में यह समस्या इतने मायने नही रखती थी
BBC से हुई बातचीत के दौरान अपू बताते हैं- “मेरे दादा व पिता के समय यह बीमारी कोई समस्या नही हुआ करती थी, लेकिन वर्तमान में जब हर बात के लिए फिंगरप्रिंट मेनडेटरी कर दिये गये हैं तो उन्हें कदम-कदम पर इस समस्या से जूझना पड़ता है”
क्या है डर्मैटोग्लिफ़िया (Adermatoglypia) डिस्ऑर्डर
इज़राइल के तेल अवीव सोरस्की मेजिकल सेंटर के डर्मेटालाजी डिपार्टमेंट( Dermatology Department of Tel Aviv Sourasky Medical Center)के डायरेक्टर प्रोफेसर एली स्प्रेटर (Eli Sprecher) के मुताबिक –“आमतौर पर गर्भावस्था के दौरान ही हमारी उंगलियों के निशान पूरी तरह से बन जाते हैं, हमारे हाथों पर लकीरें, 10 उंगलियों पर भंवर, लूप या मेहराब या तीनों का संयोजन विकसित होनें लगता है , लेकिन एडर्मैटोग्लिफ़िया (Adermatoglypia) होनें की स्थिति में दोनों हाथ एकदम चिकनें होते हैं, यानि कोई भी पैटर्न होनें की बजाये आपको हाथों में केवल एक धब्बा या चिकना दिखाई देगा”
अन्य कई देशों से भी सामने आ चुके हैं ऐसे केस
एडर्मैटोग्लिफ़िया एक दुर्लभ जेनेटिक डिस्आर्डर है जिसे पहली बार 2007 में एक स्विस त्वचा रोग विशेषज्ञ (Swiss Dermatologist) द्वारा एक महिला के संपर्क में आने के दौरान देखा गया। महिला नें डॉक्टर को बताया कि उसे अमेरिका में प्रवेश करने नही दिया गया क्योंकि कस्टम ऑफिसर उसके पासपोर्ट पर उसके फिंगर प्रिंटस को बायोमैट्रिक डेटा से मिलानें में अक्षम थे क्योंकि उस महिला को एडर्मैटोग्लिफ़िया था। इसी तरह कि आशंकाओ के कारण ही अपू सरकार पासपोर्ट होने के बावजूद विदेश यात्रा को अवाइड करते हैं।
इतना ही नही, बिना फिंगरफिंट्स के रोजगार पाना भी काफी पीड़ादायक हो सकता है इसका पता ब्रिटेन निवासी मेंन्यार्ड से पता चला जो अपनी पांच पीढ़ियों से इस बीमारी से जूझ रही थीं।
एडर्मैटोग्लिफ़िया शारीरिक परेशानियों को भी जन्म देता है
एडर्मैटोग्लिफ़िया पीड़ित व्यक्ति में एक परेशानी ये होती है कि उसमें पसीनें की ग्रंथियों की संख्या कम हो जाती है, जिसकी वजह से शरीर से पूरी तरह हीट रिलीज़ नही होती जो कि हीट स्ट्रोक से होनें वाली बिमारियों का कारण बनती है।