किसानों और सरकार के बीच नए कृषि कानून को लेकर अब तक कोई समझौता नहीं हुआ है लेकिन कुछ किसान नए कानून के आने से पहले ही मंडी व्यवस्था और एमएसपी सिस्टम के बाहर जाकर अपने फसल को बेचना शुरू किए जिसमें उन्हें सफलता भी मिली है। सरकार के मौजूदा सिस्टम को अधिकतर जैविक किसान इस्तेमाल हीं नहीं करते। आइए जानते हैं, इस नए कानून को लेकर सामाजिक कार्यकर्ता गौरी सरीन के विचार, इससे होने वाले लाभ और जैविक खेती की जानकारी….
नए कानून पर किसानों का विरोध
नए कानून का विरोध कर रहे किसानों को लगभग डेढ़ महीने होने जा रहा है। एक तरफ जहाँ सरकार नए कानून के फायदे बता रही है, वहीं दूसरी तरफ किसान उसे अपनाने से डर रहे हैं। सरकार का कहना है कि इस नए कानून से उत्पादन के व्यापार में सुविधा होगी, मूल्य आश्वासन और कृषि सेवाओं पर किसानों को संरक्षण समझौता अध्यादेश मिलेगा और आवश्यक वस्तु (संशोधन) अधिनियम भी उपलब्ध होगा। वहीं दूसरी ओर किसानों को डर है कि सरकारी मंडियां बेकार हो जाएंगी और सबसे बड़ी बात कि निजी कंपनियां इस क्षेत्र में आकर किसानों को बुरी तरह से प्रभावित करेंगी।
गौरी सरीन (Gauri Sarin)
गौरी सरीन एक सामाजिक कार्यकर्ता हैं और ”भूमिजा” नामक संस्था की संस्थापक (डायरेक्टर) भी हैं। भूमिजा संस्था जैविक खेती से जुड़े किसानों के लिए काम करती है। गौरी कहती हैं कि सरकार को किसानों के इस विरोध के लिए कोई उपाय करना चाहिए। न्यूज18 से बात करते हुए गौरी कहती हैं कि सरकारी हल व्यापक होने चाहिए। यह एक जरिया हो गरीब और अमीर किसानों के बीच अंतर कम करने का। एमएसपी वास्तविक बदलाव ला सकता है। सरकार के द्वारा बनाए गए कानून का सहयोग करना चाहिए और साथ ही इसे किसानों के लिए लाभकारी भी बनाना होगा।
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नए कानून से हो रहा है किसानों को लाभ
गौरी बताती हैं कि निजी क्षेत्र की कंपनियां जब मार्केट में आएंगी तो जरूरी नहीं कि वे मार्केट पर गलत ही प्रभाव डालेगी। बिहार और ओडिसा के किसानों को इससे बहुत लाभ भी हुआ है। उन्होंने विक्रेताओं का ऐसा प्रबंध किया है जिससे उन्हें डिमांड आधारित सिस्टम बनाने में सफलता मिली है। नए कानून के आने के पहले ही कुछ किसानों ने एमएसपी सिस्टम को छोड़ अपने कारोबार को आगे बढ़ाया है और इसमें सफल भी हुए हैं।
जैविक खेती की जानकारी
जैविक खेती के बारे में गौरी कहती हैं कि जैविक खेती करने वाले किसान ना तो मौजूदा सिस्टम का उपयोग कर रहे हैं और ना ही एमएसपी का। वे तो अपनी पैदावार मंडी में भी नहीं बेचते। वह अपना निजी नेटवर्क ही इस्तेमाल करते हैं। फसल तैयार होने के साथ ही खुद बेचने का काम भी शुरू कर देते हैं। यह एक उदाहरण पेश करता हैं, मंडी सिस्टम से अलग कारोबार करने का।
गौरी की राय
गौरी का कहना है कि सरकार को गरीब किसानों की जिम्मदारी अपने कंधो पर लेनी चाहिए। यह उनका कर्तव्य बनता हैं कि वे चाहे अमीर हो या गरीब सभी को एक जैसा वातावरण उपलब्ध कराए। गौरी अपनी राय देते हुए कहती हैं कि मुक्त अर्थव्यवस्था मॉडल सबके लिए अच्छा नहीं होता। जिनके पास कम जमीन हैं और खेती ही आमदनी का एकमात्र जरिया है, उनके लिए सरकार को कुछ करना चाहिए ताकि ऐसे लोगों को गरीबी से झूझना ना पड़े।
The Logically गौरी सरीन के विचार की प्रशंसा करता है और उमीद करता है कि सरकार जल्द ही इसका कोई समाधान निकालेगी।
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