एक समय था जब भ्रूण हत्या या जन्म के बाद लड़की हुई तो उसे मार देना भी एक प्रथा थी। कुछ सालों पहले तक राजस्थान के कई इलाकों में ये आम बात थी। कुछ ऐसे ही एक परिवार में तीन भाई और तीन बहनों के बाद फिर लड़की हुई तो उसे मार देना ही बेहतर समझा गया। मनुष्यता का स्तर इतने नीचे तक गिर गया कि लड़की को जिंदा ही समाज के कुछ लोगों ने दफना दिया। एक ओर जन्म देने वाली बेसुध मां को कुछ पता ही नहीं और पिता घर पर मौजूद ही नहीं थे।
जिंदा मिट्टी में दफनाने के बाद भी चलती रही सांसे
बात खुलकर जब सामने आई तो समाज के ठेकेदारों से उस मां ने पूछा बस इतना बता दो मेरी बेटी को कहां दफनाया गया है। मैं देखना चाहती हूं वह जिंदा है या मर गई। कहते हैं न ऊपर वाले की मर्जी के बिना एक पत्ता भी नहीं हिलता है और यह तो एक नन्ही जान थी। ये एक चमत्कार ही था कि जब मां ने बेटी को मिट्टी से बाहर निकाला तब उसकी सांसे चल रही थी। आज आलम ये है कि वह बच्ची उसी समाज की पहचान बन गई है। वह और कोई नहीं बल्कि राजस्थान की प्रसिद्ध कालबेलिया कलाकार पद्मश्री गुलाबो सपेरा (Padmashree Gulabo Sapera) हैं।
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लोग ने नाम दिया रबर की गुड़िया
गुलाबों की बचपन से ही डांस का शौक था। पिता बीन बजाते थे और वह उस पर ऐसे थिरकती थी मानो उनका अंग – अंग उस धुन के वश में हो। सात साल की उम्र में वह पहली बार छिपकर पुष्कर मेला में डांस करने गई थी, तब संस्कृति विभाग के लोगों ने उन्हें देखा और बोले- ये तो रबड़ की गुड़िया का है।
कभी खुद को जयपुर तो कभी अजमेर का बताया
फिर क्या टैलेंट को प्लेटफॉर्म मिलने में देर नहीं लगती। इसी बीच उन्हें जयपुर के सरकारी कार्यक्रम में परफॉर्म करने का मौका मिला। वह भाई के साथ मिलकर रात के एक बजे अजमेर से जयपुर आ गई। जयपुर में ही रहकर प्रोग्राम करना शुरू किया। फिर जयपुर के लोग परेशान करने लगे। लेकिन समाज ने एक बार फिर सवालों की बौछार कर दी। गुलाबों ने इससे बचने के लिए खुद को अजमेर की रहने वाली बताया। वह जब अजमेर में होती तो खुद को जयपुर का बताती और जयपुर में होती तो अजमेर का।
इस मौके ने बदल दी ज़िन्दगी की तस्वीर
1985 में भारत सरकार की ओर से भारत महोत्सव में अपनी प्रतिभा दिखाने के लिए उन्हें अमेरिका जाने का चांस मिला। इस बार गुलाबों के लिए काफी खास मौका था। यूं कहे इसी मौके ने उनकी जिंदगी बदल दी। अमेरिका जाने से एक दिन पहले ही पिता का देहांत हो गया, पर उनका कहना था कि “पिता हमेशा मेरे लिए लड़ते रहे, मैं उनके लिए अमेरिका जाऊंगी। इसके बाद से कालबेलिया नृत्य (Kalbelia dance) विश्व विख्यात हुआ।
कालबेलिया समाज को ऐसे मिला बढ़ावा
दैनिक जागरण के अनुसार गुलाबो का कहना है कि कालबेलिया समाज (Kalbelia community)सदियों से है, पर जंगल में रहने के कारण लोग उन्हें जानते नहीं। लेकिन अब वें लोग घरों में रहने लगे हैं। वह खुद भी इसी समाज से आती हैं। समुदाय के बच्चों को अच्छी शिक्षा मिल सके इसलिए स्कूल भी खोलने का फैसला किया है जहां निशुल्क डांस सिखाया जाएगा । हाल ही में उन्हें सोनचिरैया संस्था (Sonchiraiya community) की ओर से एक लाख रुपये का लोकनिर्मला सम्मान’ मिला है। गुलाबो सपेरा पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी द्वारा पद्मश्री पुरस्कार (President Pranab Mukherjee awarded Padmashree to Gulabo Sapera) भी सम्मानित की जा चुकी हैं।