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ब्रम्ह कमल फूल: बहुत ही विशेष प्रजाति का यह पुष्प इस बार हिमालय में खिला है, जानिए इसकी विशेषता

मौजूदा वक्त में कोरोना के कारण सबका जीवन अस्त-व्यस्त हुआ है। लेकिन लॉकडाउन में हमारा पर्यावरण अच्छा नजर आया है। कुछ ही दिन पहले हिमालय भी लोगों को साफ नजर आया था और यमुना का पानी भी साफ हुआ। जुलाई-अगस्त में दिखने वाला ब्रह्मकमल फूल सबको इस महीने में भी नजर आया है।

ब्रह्म कमल(वानस्पतिक नाम : Saussurea obvallata) एस्टेरेसी कुल का पौधा है। सूर्यमुखी, गेंदा, डहलिया, कुसुम एवं भृंगराज इस कुल के अन्य प्रमुख पौधे है। वनस्पति विज्ञानी बताते हैं कि ब्रह्म कमल अन्य कमल की प्रजातियों की तरह पानी में नहीं बल्कि जमीन पर खिलता है।

58 तरह का ब्रह्मकमल

हालांकि इसका नाम ब्रह्मकमल(Brahmakamal) है पर यह तालाबों या पानी के पास नहीं बल्कि जमीन में होता है। ब्रह्मकमल 3000-5000 मीटर की ऊँचाई में पाया जाता है। ब्रह्मकमल उत्तराखंड का राज्य पुष्प(State flower of Uttarakhand) है भारत में इसकी लगभग 61 प्रजातियां पायी जाती हैं जिनमें से लगभग 58 तो अकेले हिमालयी इलाकों में ही होती हैं।

धार्मिक मान्यता

मान्यता है कि भगवान विष्णु की नाभि से निकला हुआ कमल ब्रह्म कमल कहलाता है, जिस पर ब्रह्माजी विराजते हैं। यह ब्रह्मा जी का प्रिय फूल है। ब्रह्म कमल मां नन्दा का प्रिय पुष्प है, इसलिए इसे नन्दाष्टमी के समय में तोड़ा जाता है और इसके तोड़ने के सख्त नियम भी हैं।

ब्रह्मकमल के औषधीय गुण

इस फूल का कई औषधीय उपयोग भी किया जाता है। इसमें औषधीय गुण समाहित रहता है। इस के राइजोम में एन्टिसेप्टिक होता है इसका उपयोग जले-कटे में राहत पाने के लिए किया जाता है। यदि जानवरों को मूत्र संबंधी समस्या हो तो इसके फूल को जौ के आटे में मिलाकर उन्हें पिलाया जाता है। गर्मकपड़ों में डालकर रखने से यह कपड़ों में कीड़ों को नही लगने देता है। इस पुष्प का इस्तेमाल सर्दी-ज़ुकाम, हड्डी के दर्द आदि में भी किया जाता है। इसे सुखाकर कैंसर रोग की दवा के रुप में इस्तेमाल किया जाता है। इससे निकलने वाले पानी को पीने से थकान मिट जाती है साथ ही पुरानी खांसी में भी यह लाभकारी होता है।

ब्रह्मकमल का पौराणिक उल्लेख

इस पुष्प की मादक सुगंध का उल्लेख महाभारत में भी मिलता है जिसने द्रौपदी को इसे पाने के लिए व्याकुल कर दिया था। राज्य पुष्प ब्रह्म कमल बद्रीनाथ, रुद्रनाथ, केदारनाथ, कल्पेश्वर आदि ऊच्च हिमालयी क्षेत्रों में पाया जाता है। किवदंति है कि जब भगवान विष्णु हिमालय क्षेत्र में आए तो उन्होंने भोलेनाथ को 1008 ब्रह्म कमल चढ़ाए, जिनमें से एक पुष्प कम हो गया था। तब विष्णु भगवान ने पुष्प के रुप में अपनी एक आंख भोलेनाथ को समर्पित कर दी थी। तभी से भोलेनाथ का एक नाम कमलेश्वर और विष्णु भगवान का नाम कमल नयन पड़ा।

एक और किवदंती के अनुसार ब्रह्म कमल के कारण एक बार भीम का गर्व चूर हुआ था। कहते हैं जब द्रोपदी ने भीम से ब्रह्म कमल लाने की जिद की तो भीम बद्रिकाश्रम पहुंचे। लेकिन बद्रीनाथ से तीन किमी पीछे हनुमान चट्टी में हनुमान जी ने भीम को आगे जाने से रोक दिया। हनुमान जी ने अपनी पूंछ को रास्ते में फैला दिया था। जिसे उठाने में भीम असमर्थ रहे। यहीं पर हनुमान जी ने भीम का गर्व चूर किया था। बाद में भीम हनुमान जी से आज्ञा लेकर ही बदरीकाश्रम से ब्रह्मकमल लेकर गए।

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