निःसंदेह बीते ज़माने से ही हमारे समाज में महिलाओं का योगदान अतुलनीय रहा है। आज भी महिलाएं हर क्षेत्र में अपनी भागीदारी सुनिश्चित कर रहीं है। एक महिला कभी दूसरी महिलाओं को रोजगार से जोड़ने का काम करती है, तो कभी बच्चों के लिए अकेले ही माता-पिता दोनों की जिम्मेदारियां उठाती हैं। कई महिलाएं तो खुद के दम पर पूरे समाज की जिम्मेदारी अपने सर पर ले लेती हैं। एक ऐसे ही महिला है बसंती बहन जिनका पर्यावरण संरक्षण में अतुलनीय योगदान रहा है जिसके लिए उन्हें 2016 में राष्ट्रपति द्वारा नारी शक्ति सम्मान से नवाजा गया है।
बसंती बहन का परिचय
बसंती बहन (Bsanti Bahn) उत्तराखंड (Uttrakhand) के पिथौरागढ़ की रहने वाली है। वह एक मध्यम वर्गीय परिवार में जन्मी और पली-बढ़ी। वहां के परंपरा के अनुसार उनका विवाह मात्र 12 वर्ष के उम्र में हो गया। उस समय महिलाओं को शिक्षा से वंचित रखा जाता था, महिलाओं के लिए शादी को ही सबसे बड़ी उपलब्धि समझी जाती थी।
बसंती बहन की शादी के 1 साल बाद ही उनके पति का निधन हो गया। एक विधवा औरत की जिंदगी से हम भली-भांति परिचित हैं। समाज उन्हें किस नजरिए से देखता है, ताने के सिवाय उनके जिंदगी में शायद ही कुछ शेष रह जाता है। बसंती बहन (Bsanti Bahn) के साथ भी यही हुआ। उनके अनुसार उन्हें भी ससुराल में बहुत ताने सुनने पड़ते थे। हर तरह से वे वहां प्रताड़ित की जा रही थी। लोग कहने लगे, “आते ही पति को खा गई।” औरत के दुख को नहीं समझा जाना हमारे समाज में आम बात है।
आगे वह ससुराल के प्रताड़ना से पीड़ित होकर मायके चली गई और वहीं रहने लगी। बसंती के पिता शहर में नौकरी करते थे। बसंती का मायके में भी केवल काम का ही रिश्ता था। पूरा समय उनसे काम ही करवाया जाता था। आस-पड़ोस वाले बसंती के पिता से कहते बेटी की दूसरी शादी करवा दो, लेकिन उन्होंने ठान लिया कि अब उनकी बेटी दूसरी शादी नहीं करेगी। वह पहले अपने पैरों पर खड़ी होगी। यहीं से शुरू हुआ समाज को बदलने का सफर।
बसंती के अनुसार उस समय घर पर पढ़ाई का माहौल नहीं था। अपने एक संबंधी के जरिए उन्हें कौसानी के लक्ष्मी आश्रम के बारे में पता चला। आश्रम में महिलाओं को कपड़े बुनने, सुत कातने जैसे कई तरह की शिक्षाओं का प्रशिक्षण दिया जाता था। बसंती उसी आश्रम में पढ़ाई करने के साथ-साथ कई तरह के हुनर को सीखी।
आगे वह बच्चों को शिक्षित करने का काम शुरू की। वह गांवों घर-घर जाकर बच्चों को पढ़ाने के साथ-साथ उनके माता-पिता को भी पढ़ाई को लेकर जागरूक करने लगी। सभी को शिक्षा का महत्व बताना शुरू की। इसके बाद उन्होंने बाल विवाह प्रथा के खिलाफ भी अभियान चलाया। लोगों को कम उम्र में अपने बच्चों की शादी नहीं करने के लिए प्रेरित की। यह सब बहुत मुश्किल था लेकिन इससे होने वाली समस्या को वह बहुत करीब से महसूस की थी, जिससे समाज के हित के लिए यह कदम उठाना उनके के लिए बहुत जरूरी था। बसंती बहन के हर कदम पर उनके पिता ने साथ दिया जिससे वह इतनी बड़ी सफलता हासिल कर पाई। धीरे-धीरे उनके साथ और भी लोग जुड़े। उनके कामों को जिला प्रशासन ऑफिसरों द्वारा भी खूब सराहाना मिली।
बसंती बहन ने शिक्षा के क्षेत्र में काम करने के साथ-साथ जल संरक्षण, वन संरक्षण और जमीनी मुद्दों पर भी काम किया। लगभग 30 सालों तक शिक्षा के क्षेत्र में कार्य करने के बाद वह प्रकृति के लिए कार्य करना प्रारंभ की। एक समय वह अखबार में पढ़ी कि कोसी नदी कैसे दूषित होते जा रही है। इसका मुख्य कारण वनों की कटाई है। इसकी समस्याओं को जड़ से समझने के बाद वह कोसी नदी और जंगलों को बचाने के लिए काम करना शुरू की। साथ ही महिला सशक्तिकरण के लिए भी कदम बढ़ाया। यह सब कार्य उनके लिए एक बहुत बड़ी चुनौती था।
चुनौतियों का करना पड़ा सामना
वह गांव-गांव जा कर लोगों से मिलना शुरू की और पर्यावरण संरक्षण के प्रति जागरूकता फैलाने लगी। लोग कहते थे जो काम प्रशासन नहीं कर पाया उसे एक अकेली औरत कैसे करेगी। लेकिन बसंती बहन ने हार नहीं मानी और अपने फैसले पर अडिग रही। उन्होंने लगातार अपने प्रयास को जारी रखा। लगभग 10 दिनों बाद उन्हें महिलाओं का सहयोग मिलने लगा। उनके साथ और भी महिलाएं जुड़ गई जो उनके लिए बहुत बड़ा साहस बना। वह महिलाओं को समझाई कि अगर जंगल की कटाई हम नहीं रोकते हैं तो कोसी नदी को बचाना बहुत मुश्किल होगा, जिससे हम सबके लिए बड़ी समस्या खड़ी हो जाएगी। धीरे-धीरे लोग उनकी बात को समझने लगे और आसपास के गांव की महिलाएं भी इनसे जुड़ने लगी। ऐसा करते-करते एक समय यह महिलाओं का बहुत बड़ा समूह बन गया जिसमें 200 महिलाएं आ गई। इन सब ने मिलकर जल संरक्षण की शपथ ली।
राष्ट्रपति द्वारा मिला नारी शक्ति सम्मान
सबने मिलकर एक नियम बनाया कोई भी जंगल में हरे पेड़ नहीं काटेगा। लकड़ियों की जरूरत के लिए सूखे पेड़ ही काटे जाएंगे, यदि कोई हरा-भरा पेड़ कटेगा तो उसे जुर्माना भरना पड़ेगा। आगे बसंती ने पौधारोपण का भी अभियान चलाया। यदि कोई गैर कानूनी कार्य करते पकड़ा जाता तो इसकी खबर बसंती बहन को दी जाती थी। भले ही यह सरकारी संपत्ति है लेकिन इसे संजोए रखना आम जनता की ही जिम्मेदारी है। इस अभियान के तहत 168 किमी लंबी कोशी नदी को बचाया गया। यह सब बसंती बहन के संघर्षों का परिणाम था। इसके लिए बसंती बहन को 2016 में राष्ट्रपति द्वारा नारी सम्मान से सम्मानित किया गया।
आज बसंती बहन सभी महिलाओं के लिए प्रेरणास्रोत है। The Logically बसंती बहन के जज्बे को नमन करता है और अपने पाठकों से पर्यावरण संरक्षण में अपनी भागीदारी सुनिश्चित करने की अपील करता है। उम्मीद है कि बसंती बहन से प्रेरणा लेकर देश की और भी बेटियों को आगे बढ़ने का हौसला मिलेगा।