Wednesday, December 13, 2023

इन बुनकरों ने जुट और बांस जैसी चीज़ों से साड़ी बना दी, लिम्का बुक ऑफ रिकार्ड्स में नाम दर्ज हुआ

फैशन के इस नए दौर में अलग – अलग फैब्रिक, प्रिंट और कलर का बोलबाला है। 2011 में केले, जूट, बांस, अनानास और अन्य सहित 25 प्राकृतिक फ़ाइबर के इस्तेमाल से साड़ी बनाई थी। जिसे लिम्का बुक ऑफ रिकॉर्ड्स (Limca book of records) में भी शामिल किया गया था। खुद पीएम मोदी भी इसके मुरीद हुए थे।

अनाकपुथुर बुनकरों का मशहूर इलाका

इस फैब्रिक के पीछे चेन्नई के सी. सेकर का हाथ है। वो अनाकपुथुर की तीसरी पीढ़ी के बुनकर हैं। अनाकपुथुर चेन्नई में बुनकरों (Anakaputhur weavers) की मशहूर जगह है। आपको बता दें कि सी. सेकर (Weaver C. Sekar) एक पारंपरिक बुनकर हैं। उनका परिवार 1970 से नाइजीरिया में यहां के बने उत्पाद निर्यात करता आ रहा है।

made natural fibres to create sarees

समय के साथ सेकर ने खुद को ऐसे ढाला

बदलते ज़माने के साथ वहां के हैंडलूम और बुनकरों की संख्या में तेज़ी से गिरावट आने लगी है। एक ओर जहां लोग अनाकपुथुर के बुनकरों को भूलते जा रहे थे, वहीं सी. सेकर ने अपने काम से उस इंडस्ट्री को फिर आगे बढ़ाने की उम्मीद जगाई। कहते हैं कि मुख्य रूप से वो लोग मद्रास के चेक के कपड़े का उत्पाद करते थे। पर फिर राजनीति की वजह से आयात पर प्रतिबंध लगा और इस तरह अनाकपुथुर बुनकरों को नुकसान होने लगा। इसके बाद सी. सेकर ने अपने व्यापार को एक नया मोड़ देते हुए साड़ियों को केले के फ़ाइबर से बनाने की कोशिश की।

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बिना मॉडल के कर दी शुरुआत, केले के रेशो से बनती है साड़ी

रिपोर्ट के मुताबिक, सेकर के अनाकपुथुर बुनकर क्लस्टर में लगभग 100 लोग काम करते हैं, जिनमें से अधिकतर महिलाएं हैं। साड़ी बनाने की शुरूआत उन्होंने केले के रेशे से बने धागों से की थी। इस बारे में बात करते हुए सेकर ने मीडिया को बताया कि असल में उनके लिये बहुत बड़ी चुनौती थी। उनके पास कोई मॉडल नहीं था, फिर भी उन्होंने उस पर काम किया।

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1800 से दस हजार तक कीमत, दो बुनकर मिलकर बनाते हैं एक दिन में साड़ी

उन्होंने केले के तनों से निकले, केले के रेशों से धागा बनाने का काम किया। बीते कुछ सालों में उन्होंने केले की फ़ाइबर यानि यॉर्न से बनी बहुत सी साड़ियां बेची हैं। सी. सेकर कहते हैं कि दो बुनकर मिल कर दो दिन में एक साड़ी बना कर तैयार कर पाते हैं। वहीं अगर एक बुनकर साड़ी बना रहा है, तो इसे काम के लिये लगभग 4-5 दिन का समय लगता है। प्राकृतिक फ़ाइबर (Natural fibre saree) से बनने वाली साड़ियों की क़ीमत लगभग 1800 से शुरू हो कर 10 हज़ार रुपये तक होती है।

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क्या है सेकर का आगे का प्लान ?

वो कहते हैं मार्केट में साड़ियों की मांग ज़्यादा है, पर कोविड-19 (Affect of Covid 19 on weavers) की वजह से व्यापार पर काफ़ी असर पड़ा है। सी. सेकर कहते हैं कि वो अपने व्यापार को दुनियाभर में और फैलाना चाहते हैं। इसके साथ ही वो देश के हर शहर में अपना आउटलेट खोलना चाहते हैं।