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Cashew Farming: काजू की खेती के बारे में जानिए यह बातें, यह लखपति नही करोड़पति बना सकती है

जब भी हम ड्राई फ्रूट्स (Dry fruits) की बात करते है तो हमारे दिमाग में काजू का नाम पहले आता है। दिखने में सूंदर दिखने वाला यह काजू खाने में भी उतना ही लाजबाब होता है।
काजू में काफी पोषक तत्व पाये जाते है जैसे की पोटैशियम, कॉपर,जिंक,सीलियम,आयरन, मैगनीशियम आदि जो हमारे सेहत के लिए काफी अच्छे होते है। (Cashew Farming)

वैसे तो इसकी प्रमुख खेती गोवा, केरल, महाराष्ट्र, तामिलनाडु, आंध्र प्रदेश, बंगाल, उड़ीसा एवं कर्नाटक में की जाती है,लेकिन वर्तमान में झारखंड में कुछ जिले जो उड़ीसा और बंगाल के पास है वहाँ पर भी इसकी खेती की जा सकती है। इन सभी कारणों के वजह से इसकी खेती किसानों के लिए बहुत लाभदायक होती है। वहीं अगर किसानों को सही दिशा न मिलने के कारण कभी-कभी नुकसान होता है। आज हम आपको बताएंगे कि काजू की खेती करके आप किस तरह अच्छा मुनाफा कमा सकते हैं। (Cashew Farming)

सदाबहार वृक्ष है काजू (Cashew Farming)

काजू का पेड़ एक सदाबहार वृक्ष है। वहीं काजू बहुत तेजी से बढ़ने वाला पेड़ है इसमे पौधारोपन के तीन साल बाद फूल आने लगते हैं और उसके दो महीने के भीतर पककर तैयार हो जाता है। अगर इसके पेड़ की बात करें तो काजू का पेड़ 13 से 14 मीटर तक बढ़ता है। हालांकि काजू के विभिन्न प्रजाति 6 मीटर के ऊंचाई तक भी बढ़ सकते हैं। जल्दी तैयार होने और ज्यादा उपज देने की वजह से यह बहुत ही फायदेमंद होता है। इसके जल्दी तैयार होने के कारण ही इसके उपज से आप ज्यादा मुनाफा कमा सकते हैं।

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उपज के लिए जलवायु (Cashew Farming)

काजू उष्णकटिबंधीय फसल है और उच्च तापमान में भी अच्छी तरह बढ़ता है। इसका नया या छोटा पौधा तेज ठंड के सामने बेहद संवेदनशील होता है। समुद्र तल से 750 मीटर की ऊंचाई तक काजू की खेती जा सकती है।काजू की खेती के लिए तापमान 20 से 35 डिग्री के बीच होना चाहिए। वहीं अगर अच्छी पैदावार की बात करें तो काजू को तीन से चार महीने तक पूरी तरह शुष्क मौसम चाहिए। फूल आने और फल के विकसित होने के दौरान इसके विकास में तामपान का बहुत योगदान होता है।

Cashew farming in india

काजू के लिए मिट्टी (Cashew Farming)

काजू की खेती कई तरह की मिट्टी में हो सकती है क्योंकि यह अलग-अलग प्रकार की मिट्टी में खुद को समायोजित कर लेता है और वो भी बिना पैदावार को प्रभावित किये, हालांकि काजू की खेती के लिए लाल बलुई दोमट (चिकनी बलुई मिट्टी) मिट्टी सबसे अच्छी मानी जाती है। मैदानी इलाके के साथ-साथ600 से 750 मीटर ऊंचाई वाले ढलवां पहाड़ी इलाके भी इसकी खेती के लिए अनुकूल है। काजू की खेती के लिए कार्बनिक पदार्थ से भरपूर गहरी और अच्छी सूखी हुई मिट्टी चाहिए। अगर आप काजू की खेती कर रहे हैं तो का मिट्टी की जांच आप जरूर कराएंगे। वैसे बलुई मिट्टी काजू की खेती के लिए उपयुक्त मानी जाती है।

जमीन में काजू की रोपाई (Cashew Farming)

सबसे पहले जमीन को पूरा तैयार करना है। जहाँ पौधारोपन करना है वहां के जमीन की अच्छी तरह जुताई कर उसे बराबर कर देना चाहिए और समान ऊंचाई में क्यारियां खोदनी चाहिए। काजू के पौधों को 7 से 8 मीटर की दूरी पर वर्गाकार विधि में लगाएं। एक गड्ढा तैयार करें गड्ढों को 15 से 20 दिन तक खुला छोड़ने के बाद गोबर की खाद या कम्पोस्ट के मिश्रण को गड्ढे की ऊपरी मिट्टी में मिलाकर भर दें। गड्ढों के आसपास आपको ऐसी व्यवस्था करनी चाहिए कि वहाँ पानी न रूके।

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ज्यादा उपज की संभावना (Cashew Farming)

काजू के पौधों को वर्षा काल में ही लगाने से अच्छी सफलता मिलती है। तैयार गड्ढों में पौधा रोपने के बाद थाले बना देना चाहिए तथा थालों में खरपतवार की समय-समय पर निकाई-गुड़ाई करते रहें। काजू में पूरे फल की तोड़ाई नहीं की जाती है। केवल गिरे हुए नट को इकट्ठा किया जाता है और इसे धूप में सुखाकर तथा जूट के बोरों में भरकर ऊँचे स्थान पर रख दिया जाता है।प्रत्येक पौधे से लगभग 8 से 10 किलोग्राम नट प्रतिवर्ष प्राप्त होते है। इस प्रकार एक हेक्टेयर में लगभग 10 से 17 क्विंटल काजू के नट प्राप्त होते हैं। एक किलो का उत्पादन तकरीबन 1200 रुपये में बिकता है। ऐसे में सिर्फ एक पौधे से आप 12000 हजार का मुनाफा आसानी से कमा सकते हैं।

इस तरह आप कम खर्च करके ज्यादा की कमाई कर सकते हैं। काजू की खेती आपके लिए काफी लाभदायक साबित होगी।

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Shubham वर्तमान में पटना विश्वविद्यालय (Patna University) में स्नात्तकोत्तर के छात्र हैं। पढ़ाई के साथ-साथ शुभम अपनी लेखनी के माध्यम से दुनिया में बदलाव लाने की ख्वाहिश रखते हैं। इसके अलावे शुभम कॉलेज के गैर-शैक्षणिक क्रियाकलापों में भी बढ़-चढ़कर हिस्सा लेते हैं।

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