राजनीति दो शब्दों का एक समूह है राज+नीति। अर्थात् नीति विशेष के द्वारा शासन करना या विशेष उद्देश्य को प्राप्त करना राजनीति कहलाती है। दूसरे शब्दों में कहें तो जनता के सामाजिक एवं आर्थिक स्तर को ऊँचा करना राजनीति है । आज के समय में भारत (Bharat) में ऐसी नीति रखने वाले नेता बहुत कम ही मिलते हैं। आज हम बात करेंगे एक ऐसी लड़की की, जो देश की पहली महिला MBA सरपंच हैं।
कौन है वह लड़की?
आज हम बात करेंगे, राजस्थान (Rajasthan) की छवि राजावत (Chhavi Rajavat) की, जो आज के समय में लोगों के लिए मिशाल बनी हुई है। छवि राजावत गांव की भलाई के लिए एक लाख रुपए महीने की नौकरी छोड़ दी। छवि को अब हमसफर की तलाश है। इसका खुलासा उन्होंने बीते दिनों पानीपत में आयोजित एक सेमिनार में किया। छवि कहतीं हैं कि, उन्हें एक ऐसे हमसफर की तलाश है, जो जनसेवा में उनके साथ कदम से कदम मिलाकर चल सके।
छवि ने चार साल में ही बदल दी अपने गांव की छवि
छवि ने राजस्थान के गांव सोढ़ा (Sodha) की सरपंच बनकर चार साल में ही इसकी सूरत बदल दी। गांव सूखाग्रस्त था, पानी की जरुरत पूरी की, 40 से अधिक सड़कें बनवाई। सौर ऊर्जा पर निर्भरता बढ़ाते हुए जैविक खेती पर जोर दिया। उनके इन्हीं प्रयासों से आज गांव ही नहीं दूसरे गांवों के लोगों के लिए भी रोल मॉडल बन गई हैं।यह भी पढ़ें :-छवि ने राजस्थान के गांव सोढ़ा (Sodha) की सरपंच बनकर चार साल में ही इसकी सूरत बदल दी। गांव सूखाग्रस्त था, पानी की जरुरत पूरी की, 40 से अधिक सड़कें बनवाई। सौर ऊर्जा पर निर्भरता बढ़ाते हुए जैविक खेती पर जोर दिया। उनके इन्हीं प्रयासों से आज गांव ही नहीं दूसरे गांवों के लोगों के लिए भी रोल मॉडल बन गई हैं।
एमबीए करने के बाद सात साल तक की नौकरी, फिर बाद में लोगों ने उनको सरपंच बनाया।
छवि ने 2003 में पूणे से MBA किया। सात साल तक दिल्ली और जयपुर में कई कंपनियों में नौकरी की। नौकरी छोड़ी तब एक लाख रुपए महीना वेतन मिलता था। छवि का कहना है कि “गांव में सूखा पड़ा था, 2010 में होने वाले पंचायत चुनाव में सरपंच की सीट महिला के लिए आरक्षित थी। गांव वालों ने उन्हे सरपंच का चुनाव लड़ने कहा। उनके बाद उन्होंने नौकरी छोड़ करके सरपंच का चुनाव लड़ा और जीत भी हासिल की।
अपने प्रयासों से 4 दिन में जुटाए 20 लाख
छवि ने बताया कि, सरपंच बनने के बाद सबसे बड़ी चुनौती गांव में पानी की समस्या का हल कराना था, लेकिन इसके लिए पैसा चाहिए था। सरकार ने पैसा देने के लिए मना कर दिया, निजी कंपनियों ने भी मदद नहीं की। अंत में थक हारकर छवि ने अपने पिता, दादा और उनके तीन दोस्तों के प्रयास से चार दिन में 20 लाख रुपए इकट्ठे किए। इसके बाद उसका इंटरव्यू रेडियो पर हुआ। इसको सुनकर दिल्ली की एक महिला ने 50 हजार रुपए का चैक भेज दिया। इसके बाद छवि ने गांव के तालाब खुदवाया और जब बारिश हुई तो तालाब में पानी इकट्ठा हो गया। आज गांव में यह स्थिति है कि खेती और पशुपालन के लिए पर्याप्त पानी है।
परिवार का मिला सहयोग
छवि का कहना है कि, इस काम को वह तभी कर पाई जब परिवार वालों ने साथ दिया। गांव वालों ने जिस तरह उसे सरपंच बनाया, बहुत सालों पहले उसके दादाजी को भी इसी तरह सरपंच बनाया था। जब वह सरपंच बनी तो उससे 20 साल पहले तक गांव में कोई काम नहीं हुआ था। उन्होंने सरपंच का चुनाव जीतकर गांव के हालात बदल दिए। अब यहां लोगों को साफ पानी, टायलेट, सड़क और सभी सुविधाएं मिल रही हैं। वे बताती है कि उनके सरपंच बनने के पहले गाँव का शिक्षा स्तर 50% से भी कम था जो कि फिलहाल बहुत अच्छे स्थितिमें है। उनका लक्ष्य है कि उनके गाँव के शिक्षा स्तर को 100% तक पहुंचाया जाए। उनके प्रयास से गाँव के सरकारी स्कूलों तथा अस्पतालों की भी स्थिति बेहतर हो गया है।
सेलिब्रिटी जैसा लुक
आमतौर पर एक महिला ग्राम सरपंच की छवि हमारे लिए सिर पर पल्लू, चेहरे पर संकोच, शब्दों की हकलाहट, जैसी होती है। ऐसे में संयुक्त राष्ट्र के बहस में छवि भी शामिल हुई। उस बहस में शामिल लोगों के लिए भी यह सोच ऐसी ही थी। लेकिन हुआ इसका उलटा, जिसने भी छवि राजावत को देखा तो दंग रह गया। उनके सामने खड़ी वह सरपंच एक आकर्षक मॉडल की तरह लग रही थी। छवि राजावत (Chhavi Rajavat) को मॉर्डन अंदाज में देखकर ग्राम सरपंच मानना हर किस के लिए अचरज भरा था। जींस और स्टाइलिश टॉप में किसी भारतीय ग्राम सरपंच से मुखातिब होना विदेशियों के लिए एक अनूठा अनुभव था।
गाँव के लोगों के साथ बैठकर करती है चर्चा
छवि राजावत (Chhavi Rajavat) कहती हैं कि, वे अपने गाँव के लोगों के साथ बैठकर गाँव के विकास तथा समस्याओं पर चर्चा करती हैं। उनके दादा वहाँ के 3 बार सरपंच रहे हैं, इसीलिए उन्हेंअपने गाँव से विशेष लगाव है। उनके दादा का कहना था की वह सरपंच बनकर गाँव के लोगों के साथ रहे। यही कारण है कि वे अधिक समय अपने लोगों के बीच में बिताए।
भारत के लिए तेजी से विकास की पक्षधर है छवि
संयुक्त राष्ट्र के 11वें इन्फो पॉवर्टी वल्र्ड कॉन्फ्रेंस में छवि ने अपनी कुशल प्रतिभागिता दर्ज की। आखिर इसमें कोई नया कमाल नहीं था। लेकिन कमाल यह था कि 24 और 25 मार्च 2011 को संयुक्त राष्ट्र की ओर से हुई इस बहस में छवि ने ग्राम सरपंच के रूप में प्रतिनिधित्व किया। उनहोंने आज के समय में भारत के तेजी से विकास करने के पहलुओं पर चर्चा की बात कही।
महिलाओं के लिए प्रेरणा बनीं
ऐसे तो छवि राजावत की राजनीति विरासत वाली हैं, लेकिन इसके बावजूद भी उन्होंने विकास करके सबके सामने अपने आप को लोहा साबित कर दिया। वे महिला होते हुए उस प्रदेश में अपना नाम रौशन किया है जहाँ घूंघट प्रथा, दहेज प्रथा तथा बाल विवाह जैसे कुरीतिया का अड्डा है। उन्हें अपने शहरी जीवन छोड़ने का जरा भी अफसोस नहीं है और आज के समय में वह युवाओं के लिए तथा महिलाओं के लिए प्रेरणा बनी हुई है।