कहते हैं अगर हौसला बुलंद हो तो दुनिया की कोई भी ताकत आपको हरा नहीं सकता है। ऐसी ही एक हौंसले से भरपूर महिला छूटनी महतो (Chutni Mahto) की कहानी हम आपके साथ साझा करेंगे, जिन्हें हाल ही में भारत के राष्ट्रपति रामनाथ कोविन्द (Ram Nath Kovind) द्वारा पद्मश्री पुरस्कार (Padma Shri Award) से नवाजा गया है।
कौन है छूटनी महतो?
छूटनी महतो (Chutni Mahto) सरायकेला खरसावां जिले की रहने वाली वाली है। उनका जीवन बहुत संघर्ष भरा रहा है। उनके जीवन में सबसे बुरा वक्त तब आया जब इन्हे डायन बताकर घर से निकाल दिया गया था और उस समय इनका साथ कोई भी नही दिया था। इतने मुश्किलों का सामना करने के बाद भी उन्होंने कभी हार नही मानी और अपनी साहस से डायन विरोधी अभियान की शुरुआत किया।
डायन प्रथा है क्या?
डायन प्रथा में सबसे अधिक सहयोग ओझा का होता है
और इसकी सबसे बड़ी वजह शिक्षा की कमी होती है। आपको बता दें कि आज भी जब पिछड़े क्षेत्र के लोगों का स्वास्थ्य खराब होता था, तो लोग डॉक्टर के पास जाने के बजाए ओझा के पास इलाज के लिए जाते है और अगर ईलाज करते वक्त मरीज़ को कुछ हो जाता था, तब किसी निर्दोष महिला को डायन बताकर उसकी जिंदगी बर्बाद कर दी जाती है।
डायन प्रथा के कई कारण हो सकते है
डायन प्रथा के अनेकों कारण हो सकता है जैसे- सामाजिक संघर्ष, आर्थिक झगड़े, अंधविश्वास और इसके मुख्य कारण शिक्षा की कमी होती है। इस प्रथा की शिकार हुई छूटनी (Chutni Mahto) महतो ने इसकी बढ़ती हुई प्रचलन को जड़ से मिटाने का निश्चय किया, और आज वह लोगो को जागृत करने में सफल भी हो रही है।
12 वर्ष की उम्र में हीं कर दी गई शादी
छुटनी महतो का शादी 12 वर्ष की उम्र में ही कर दिया गया था। इनका शादी गम्हरिया थाना के महताडीह गांव में धनंजय महतो के साथ हुआ और इनके तीन बच्चे भी हैं। 2 सितंबर 1995 की बात है जब उसकी पड़ोसी भजोहरि की बेटी बीमार हो गई और लोगों को लगा के छुटनी ने ही कुछ जादू टोना कर दिया है।
इसके बाद गांव में इस बात को लेकर पंचायत हुई जिसमें इन्हें डायन करार दे दिया गया। इसके बाद लोगों ने घर में घुसकर इन पर अत्याचार करना शुरू कर दिया, फिर गांव के पंचायत में उन पर ₹500 का जुर्माना लगाया। छूटनी ने किसी भी तरह जुर्माना का भरपाया किया, परंतु गांव वालों का गुस्सा कम नहीं हुआ और उन्होंने उन्हें गांव से बाहर निकाल दिया।
अंधविश्वास का किया विरोध
छूटनी महतो को डायन करार देने के बाद ग्रामीणों ने ओझा गुनी को बुलवाया और उन्हें शौच पिलाने की कोशिश किया। ग्रामीणों में अंधविश्वास इतना फैल गया कि इंसानियत की सारी हदें पार हो गई। गांव वालों ने छूटनी को मानव मल पीने के लिए मजबूर किया परंतु छूटनी से यह बर्दाश्त नहीं हुआ और उन्होंने इसका विरोध किया। ऐसा करने पर गांव वालों ने इनके शरीर पर मल फेंका और और उन्हें बच्चों के साथ गांव से बाहर निकाल दिया।
इतना अत्याचार सहने के बाद छूटनी ने विधायक चंपई सोरेन के पास जाकर इस घटना के बारे में बताया परंतु इसका कोई असर नहीं पड़ा। इसके बाद उन्होंने आदित्यपुर थाना में मामला दर्ज करवाया। मामला दर्ज कराने के बाद कुछ लोगों को गिरफ्तार भी किया गया पर वह जल्द ही छूट गए।
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छूटनी महतो ने क्या कहा?
पद्मश्री सम्मान मिलने पर छूटनी महतो ने बताया कि वह इस कुप्रथा के खिलाफ अंतिम सांस तक लड़ेंगी। भारत सरकार से उन्हें इस योग्य समझा और पद्मश्री जैसे सम्मान से नवाजा। यह उनके लिए बहुत सौभाग्य की बात है। छूटनी देवी का कहना है कि डायन प्रथा को जड़ से खत्म करने के लिए सख्त कानून बनाना बहुत ही जरूरी है और वह चाहती है कि कहीं भी इस प्रथा के बारे में शिकायत मिले तो इस पर जल्द से जल्द कार्रवाई होना चाहिए। उन्होंने अपने भाषण में कहा कि ‘मेरे जैसी महिला को प्रधानमंत्री ने इतने बड़े सम्मान के लिए चुना, इससे यह साफ पता चलता है कि प्रधानमंत्री ‘नरेंद्र मोदी’ का नजर चींटी पर भी रहता है।’
डायन प्रथा के खिलाफ आज भी लड़ रही है लड़ाई
गांव से निकालने के बाद छूटनी महतो अपने मायके बीरबांस में रहने लगी, पर वहां भी लोग उन्हें डायन कह के बुलाते और उन्हें देखकर अपना दरवाजा बंद कर लेते थे। यह देख कर उन्हें बहुत बुरा लगता था परंतु उन्होंने अपनी हिम्मत नहीं हारी और वही अपना एक अलग घर बनाकर रहने लगी। साल 1995 से उन्होंने डायन प्रथा के खिलाफ लड़ाई शुरू कर दी। इस लड़ाई में वह अकेली थी परंतु आज 200 से भी अधिक महिलाओं को अत्याचार से बचाने और उनकी खोई हुई इज्जत वापस लौटाने में सफल रही है। आज कुप्रथा के खिलाफ लड़ाई में वह अपना पूरा जीवन न्योछावर करने के लिए तत्पर है। उन्होंने बीरबांस में डायन रिहैबिलिटेशन सेंटर भी खोल रखी है।
छूटनी महतो की यह कहानी ऐसी लाखों महिलाओं के लिए प्रेरणा का स्रोत है, जो इस प्रताड़ना से गुजर रही है।