भारत….एक कृषि प्रधान देश ! जिसका लगभग 70 प्रतिशत आबादी गाँवों में रहती है और उन 70 प्रतिशत लोगों में से अधिकत्तर लोगों का मुख्य पेशा कृषि हीं है ! आज जब खेतों की उपज बढाने और अधिक फसल उपजाने की मची होड़ में लोग रसायनिक खादों और केमिकल्स का प्रयोग तेजी से कर रहे हैं वहीं पर आज एक दम्पति अंजलि रूद्राराजू करियप्पा और कबीर करियप्पा ने जैविक खेती को ना सिर्फ बढावा दिया बल्कि उसे अपनाकर कृषि के क्षेत्र में अपनी उपलब्धियों से प्रेरणा का संचार किया है !
दोनों का अलग-अलग परिवेश से होने के बावजूद एकरूपता
कबीर एक गाँव से संबंध रखते हैं ! उनका बचपन खेतों में बीता है ! कबीर के माता-पिता किसान थे ! अपने अभिभावक के साथ कबीर भी खेती की बारीकियाँ सीखते रहते ! उनके माँ-बाप लगभग तीस वर्षों से ऑर्गेनिक खेती का अभ्यास करते आ रहे थे ! कबीर को कृषि और उससे जुड़ी जानकारियाँ घर से हीं मिल जाती थीं ! चूकि अपने माता-पिता द्वारा सिर्फ और सिर्फ ऑर्गेनिक खेती करने के कारण उन्हें कृषि के दूसरे विधियों के बारे में पता नहीं चल पाया ! वहीं दूसरी ओर जब बात अंजलि की करें तो वह कबीर से बिल्कुल विपरीत एक शहर में पली-बढी लड़की हैं ! गाँव और खेती से उनका कोई नाता नहीं था ! अंजलि हैदराबाद से स्नातक की पढाई पूरी कर आगे की पढाई हेतु विदेश चली गईं और न्यूयॉर्क से मास्टर्स की डिग्री पूरी कीं ! उसके बाद वे वहीं फाईनांशियल सर्विस क्षेत्र की कम्पनी में काम करने लगीं ! पर ज्यादा दिनों तक उनका मन उस काम में नहीं रमा और उनका रूझान प्रकृति की ओर बढने लगा तत्पश्चात उन्होंने अपनी नौकरी छोड़ दी और स्वदेश आ गईं ! आने के बाद अपने परिवार के साथ मिलकर हीं छोटे स्तर पर जैविक खेती की शुरुआत की ! कृषि में कोई अनुभव ना रहने की वजह से उन्हें ढेर सारी दिक्कतों का सामना करना पड़ा ! अंजलि ने भारत के कई ग्रामीण क्षेत्रों का भ्रमण भी किया जिससे उन्हें गाँव व कृषि से संबंधित कई अनुभव प्राप्त हुआ और उन्हें काफी प्रसन्नता भी हुई ! अंजलि और कबीर दोनों को गांवों में रहना , प्रकृति के करीब रहना बेहद पसन्द था और वे दोनों वहीं रहकर प्रकृति से जुड़ी चीजें हीं करना चाहते थे ! कृषि के लिए अंजलि और कबीर में एकमत था और दोनों ने गाँव में हीं रहकर जैविक खेती करने की योजना बनाई !
कृषि फार्म की स्थापना कर कृषि कार्य
कबीर और अंजलि दोनों ने शहरी आरामदायक जिंदगी को छोड़कर गाँव में अपनी जिंदगी व्यतीत करने की ठानी और वहीं रहकर जैविक खेती करके प्रकृति की छांव में रहने का निर्णय किया ! उन्होंने कर्नाटक के मैसूर शहर के नजदीक कोटे तालुका के हलासुरू गाँव में लोगों की मदद से 50 एकड़ खेत का प्रबंधन किया और एक वृहद कृषि फार्म की स्थापना की जिसका नाम उन्होंने “यररोवे फार्म” रखा ! इस फार्म के माध्यम से उनदोनों ने बेहद संजीदगी से कृषि कार्य आरंभ कर दिया !
इन चीजों का होता है उत्पादन
फार्म में रोजमर्रा की जिंदगी में उपभोग करने वाले चीजों के उत्पादन के साथ उन चीजों का भी उत्पादन किया जाता है जो उन्हें चाहिए होता है ! वे अपने खेतों में गन्ना , कपास , तेलहन(सरसों , तिल , सूरजमुखी , मूंगफली) का उत्पादन करते हैं ! इसके अलावा रागी ,बाजरा , चावल, गेहूँ व दलहन(मसूर, मूंग, अरहर) व मसालों(हल्दी ,धनिया, अदरक, मिर्च, मेथी) का भी उत्पादन करते हैं ! इन फसलों के अलावा फार्म में एक से एक ऑर्गेनिक फलों व सब्जियों का भी उत्पादन होता है !
उस फार्म से उपजने वाले फल और सब्जियों को मैसूर और बंगलुरू के बाजारों में भी भेजा जाता है ! कबीर और अंजलि को अपनी जिंदगी की अधिकत्तर आवश्यकताओं की पूर्ति अपने यहाँ उपजाए फसलों , फलों और सब्जियों से हो जाती है ! बाजार से खाने हेतु मात्र नमक , पास्ता, आदि और अन्य जरूरतों के लिए सर्फ-साबुन व ईंधन आदि सामान हीं खरीदने पड़ते हैं !