Tuesday, December 12, 2023

सीखिए तरबूज की खेती: शुरूआत के 1 महीने का देखभाल आपको कर देगा मालामाल

यूं तो तरबूज गर्मियों में खाया जाने वाला सबसे पसंदीदा फलों में से एक है। जिसे खाने के बाद लोग अपने अंदर ठंड का एहसास करते हैं। आपको बता दूं कि तरबूज की खेती किसानों के लिए बहुत हीं लाभदायक होता है। तरबूज सभी फलों में खास इसलिए भी हो जाता है क्योंकि यह कम दिनों की फसल है और इसमें अच्छा खासा मुनाफा भी हो जाता है। लेकिन इसमें कीट और रोगों के फैलने का संभावना भी ज्यादा रहती है। कृषि वैज्ञानिकों के अनुसार जो इस फसल को 1 महीने तक संभाल के रख लेता है फिर उसके लिए मुनाफे होने की उम्मीद और भी बढ़ जाती है।

अगर हम तरबूज की बुआई और रोपाई की बात करें तो इसकी बुआई और रोपाई जनवरी से मार्च के महीने तक हो जाती है। अगर माहौल तरबूज की खेती के अनुकूल हो तो किसान इसे नवंबर और दिसंबर के महीने में भी बुआई कर देते हैं। हालांकि ज्यादातर किसान तरबूज के बीजों की सीधे बुवाई फरवरी में करते हैं। जबकि कुछ किसान जनवरी में पौधे तैयार करके जनवरी के आखिर या फिर फरवरी में पौधे लगाते हैं। तरबूज का फसल लगभग 75 से 90 दिनों में तैयार हो जाता है।

तरबूज के उत्पादन में हमारे देश में यूपी तरबूज उत्पादन में सबसे आगे है। कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय के तीसरे अग्रिम अनुमानों के आंकड़ों के मुताबिक साल 2020-21 में 115 हजार हेक्टेयर में तरबूज की खेती हुई है और अनुमानित उत्पादन 3205 हजार मीट्रिक टन है। जो की तरबूज की खेती के फायदे को दर्शाता है। वहीं खरबूजे की साल 2020-21 में 69 हजार हेक्टेयर में खेती हुई है और 1346 हजार मीट्रिक टन उत्पादन अनुमानित है। सामान्य परिस्थितियों में 20-30 टन प्रति हेक्टेयर का उत्पादन होता है लेकिन ये बीज, वैरायटी, जलवायु, किसान की कृषि पद्धति आदि के हिसाब से कम और ज्यादा हो सकता है।

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भारत के कृषि और प्रसंस्कृत खाद्य उत्पाद निर्यात विकास प्राधिकरण के मुताबिक भारत में सबसे ज्यादा तरबूज का उत्पादन यूपी में होता है। साल 2017-18 की रिपोर्ट में कहा गया है कि यूपी में करीब 619.65 मिलियन टन तरबूज का उत्पादन होता है जो, देश के कुल उत्पादन का 24 फीसदी है। दूसरे नंबर पर आंध्र प्रदेश था, जहां 360.08 मिलियन टन का उत्पादन हुआ था, तीसरे नंबर पर कर्नाटक (336.85 MT), चौथे पर पश्चिम बंगाल (234.30 MT) पांचवें पर ओडिशा (226.98 MT) था। इससे यह पता चलता है हमारे देश के ज्यादातर राज्य तरबूज की खेती पर अच्छे से ध्यान देते हैं और उत्पादन भी करवाते हैं।

आपको बता दूं कि तरबूज केवल भारत में ही नहीं पूरी दुनिया में बड़े हीं स्वाद के साथ खाया जाता है। संयुक्त राष्ट्र के खाद्य और कृषि संगठन (FAO) के मुताबिक साल 2019 में चीन की पूरी दुनिया में हुए तरबूज उत्पादन में 67.78 फीसदी की भागीदारी थी, जिसके बाद टर्की दूसरे और भारत तीसरे नंबर पर था, जिसकी पूरी दुनिया के उत्पादन में भागीदारी मात्र 2.78 फीसदी थी। यानि तरबूज उत्पादन में अभी बहुत संभावनाएं हैं।

ऐसा वैज्ञानिकों के द्वारा सत्यापित की जाती है की अगर शुरुआती एक महीना रोग और कीट से तरबूज को बचा लिया तो मुनाफा भी लाजवाब होता है। अगर लागत ज्यादा लगती है तो मुनाफा भी होता है। लेकिन इसमें कीट और रोग बहुत लगते हैं। ऐसे में जरूरी हो जाता है की किसान सही समय पर फसल के बचाव के तरीके को जरूर अपनाएं।

भारत में तरबूज की खेती। साभार एपिडा तरबूज की खेती में शुरुआती एक महीना नाजुक तरबूज कुकुरबिटेसी” परिवार की फसल है। तरबूज की तरह ही कद्दूवर्गीय कुल की सभी फसलों (कद्दू, तरबूज, लौकी, तोरई, खबहा, खरबूज आदि) में शुरुआती एक महीना बहुत नाजुक होता है। क्योंकि इनमें तना गलक समेत कई रोग लग जाते हैं और कीट हमला करते हैं। जिसमें देखते हीं देखते पौधे सूख जाते हैं। ऐसे में जरूरी है कि शुरुआती दिनों में किसान ज्यादा सावधानी बरतें। सेंटर ऑफ एक्सीलेंस फॉर वेजिटेबल, कन्नौज, यूपी के वैज्ञानिक और सेंटर इंचार्ज डॉ. डीएस यादव कहते हैं, “तरबूज समेत कद्दूवर्गीय सभी फसलों को रोग से बचाने के लिए पानी की उचित मात्रा जरूरी है। इसलिए पौधे नाली में न लगाकर मेड़ पर लगाएं। ताकि पानी सिर्फ जड़ों को मिलें। अगर तना गलक रोग लग गया है तो मैंकोजेब और कार्बेन्डाजिम की 2 ग्राम प्रति लीटर पानी में मिलाकर जड़ों के पास ड्रिंचिंग करें। अगर भुनके और छोटे कीटों का प्रकोप हो तो नीम ऑयल (1500 पीपीएम) का 5 मिलीलीटर प्रति लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें।

पादप रक्षा वैज्ञानिक और कृषि विज्ञान केंद्र कटिया सीतापुर के कार्यकारी अध्यक्ष डॉ. डीएस श्रीवास्तव कहते हैं, “तरबूज समेत सभी कद्दू वर्गीय फसलों के शुरुआती दिनों में तीन समस्याएं आती हैं। सबसे पहले तना गलन का अटैक होता है। ये फफूंद से होने वाला रोग है, जिसमें जड़े पतली होकर पौधे सूख जाते हैं। दूसरी समस्या होती है व्हाइट ग्रब (सफेद गिडार) या दीमक की हो जाती है। तीसरी समस्या तब होती है जब तरबूज आदि के पौधों में इसके बाद जब तरबूज में 2 से 5 पत्तियां तक हो जाती हैं तो नर्म कोमल पत्तियों पर रस चूसने वाले छोटे और महीन कीट हमला करते हैं। इसमें थ्रिप्स, एफिड (चेपा या माहू) और जैसिड (लीफ हॉपर प्रमुख हैं।

तरबूज की खेती ज्यादातर बलुई मिट्टी, बलुई दोमट और दोमट मिट्टी में होती है। जिसमे कई बार जड़ में दीमक या व्हाइट ग्रब (सफेद गिडार) जैसे कीट का प्रकोप हो सकता है। डॉ. श्रीवास्तव ऐसा होने पर जैविक कीटनाशक में बेबेरिया और मेटाराइडिमय का 5-5 मिलीलीटर का मिश्रण प्रति लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव की सलाह देते हैं, इसमें भी गुड़ का थोड़ा घोल मिलाने से फायदे होता है। जबकि रासायनिक पेस्टीसाइड में वो ईमिडा क्लोपिड और फिप्रोनिल 2 ग्राम प्रति लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव की सलाह देते हैं। तो इस तरह से तरबूज की खेती कर सकते हैं और अच्छा लाभ भी पा सकते हैं।